क्या बाहरी उम्मीदवार पचा पाएंगे बरौली के वोटर !
बरौली में नेमतुल्ला के प्रति पब्लिक में भारी आक्रोश
राजद और कांग्रेस से दावा करने वाले अधिकतर उम्मीदवार बाहरी
विशेष संवाददाता, बिहार कथा, गोपालगंज.
बिहार विधानसभा चुनाव नजदकी है. राजनीतिक सरगर्मियां शुरु हो चुका है. गोपालगंज में बरौली विधानसभा की सीट को लेकर काफी राजनीतिक चर्चाएं और सस्पेंस है.इसका स्वाभावित कारण भी है. गोपालगंज जिला राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का गृह जिला है. इस जिला में 2015 में जदयू गठबंधन के साथ केवल बरौली विधानसभा क्षेत्र से ही राजद का उम्मीदवार नेमतुल्ला ने जीत दर्ज की थी. जीत का अंतर महज 322 वोट का अंतर रहा. विधायक बनने के बाद से नेमतुल्ला इस एरिया में गायब रहे. बाढ में जब बरौली की जनता फंसी तब नेमुतुल्ला बरौली विधानसभा क्षेत्र में जनता का दर्द जानने पहुंचे. पब्लिक ने विरोध से स्वागत किया. एक दो जगह तो आक्रोशित भीड ने नेमतुल्ला के साथ धक्का मुक्की भी की. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया में खूब बायरल हुआ. इसके साथ ही जहां बरौली में नेमतुल्ला को लेकर भारी एंटीइकंबेसी है. जिसका एक मात्र कारण है जीत के बाद पब्लिक का हमदर्द होने के बजाय दूर रहना. वहीं जानकार बताते हैं कि नेमतुल्ला पिछली बार इस लिए जीत गए क्योंकि इसका एक ऐसा कारण था, जो बाहरी क्षेत्र के लोग शायद ही समझ पाएं. सबसे पहली बात तो यह कि यह मुस्लिम बाहुल्य एरिया है. इस एरिया में बिहार को पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को दिया. इस एरिया में जाति मजहब से उपर उठ कर पूर्व सीएम अब्दुल गफूर के प्रति काफी श्रद्धा है. वे बरौली से चार बार से लगातार विधानसभा के लिए चुने जाते रहें. यहां के मुस्लिम समाज समेत दूसरे लोग भी यह नहीं चाहते थे कि अब्दुल गफूर जैसे सदाचारी नेता का यहां रिकार्ड टुटे. इसलिए यहां मतदाताओं का एक वर्ग दिवंगत गफूर साहब की श्रद्धा और उनके रिकार्ड को बनाये रखने के लिए एकजुट हुआ. इसलिए कांटे की टक्कर में दूसरे जिले के निवासी नेमतुल्ला गोपालगंज के बरौली में बहुत की मामूली वोटों से बाजी मार गए और इतने कम वोटों के अंतर से हार कर पूर्व मंत्र रामप्रवेश राय काफी सदमें में आए. हालांकि एनडीए से उम्मीदवारी को लेकर उनकी सक्रियता बढ गई है. लेकिन बरौली विधानसभा क्षेत्र ऐसा हैं जहां राजद और राजद के गठबंधन पार्टी के नेता यहां से टिकट के लिए दावा ठोक रहे हैं. जब इस संवाददाता ने गांव गांव में लोगों से बातचीत की तो सबसे कॉमन बात यही थी कि बरौली का विधायक कोई भी बने लेकिन वह हो इसी क्षेत्र का. वे नेमतुल्ला को जीता कर उनसे दूर रहने का दर्द जैसा दर्द फिर किसी बाहरी को जीता कर नहीं सहना चाहती है. मजेदार बात है कि राजद हो या कांग्रेस, यहां दमखम से उम्मीदवारी का हक जताने वाले अधिकतर नेता बाहरी हैं. लेकिन कहते हैं कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढती और जीत का संयोग हर बार नहीं बनता है. इस बार युवा मतदाताओं की संख्या तेजी से बढी हैं. बीते पांच साल में सोशल मीडिया से वह काफी अपडेट हो चुकी है. इसलिए इस बार पांच साल पुराना सयांग बनेगा यह जरूरी नहीं.
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