महिलाओं की बदहाली के खिलाफ सावित्री बाई फुले ने फूंका था क्रांति का बिगुल
हथुवा में मानी सावित्री बाई फुले की जयंती
हथुआ, गोपालगंज।दलित ओबीसी जनजागरण संघ की ओर से सावित्री बाई फुले की जयंती मनाई गई। इस मौके पर सावित्री बाई फुले के कार्यों को याद किया गया। संघ से संयोजक संजय कुमार ने कहा कि देश मे जिस दौर में स्त्रियों की शिक्षा प्रतिबंधित थी, तब एक महिला ने लड़कियों को पढ़ाने का जोखिम लिया. उन्होंने देश का पहला बालिका विद्यालय 1 जनवरी 1848 को खोला था. यह क्रांति करने वाली महिला सावित्री बाई ही थी।
जाति के खिलाफ महाराष्ट्र के पुनर्जागरण की अगुवाई शूद्र और महिलाएं कर रही थीं. इस पुनर्जागरण के दो स्तंभ थे- सावित्री बाई फुले और उनके पति जोतिराव फुले. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म, समाज व्यवस्था और परंपरा में शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के लिए तय स्थान को आधुनिक भारत में पहली बार जिस महिला ने संगठित रूप से चुनौती दी, उनका नाम सावित्री बाई फुले हैं. वे आजीवन शूद्रों-अतिशूद्रों की मुक्ति और महिलाओं की मुक्ति के लिए संघर्ष करती रहीं. उनका जन्म नायगांव नाम के गांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था. यह महाराष्ट्र के सतारा जिले में है, जो पुणे के नजदीक है.
फुले दंपत्ति ने 1 जनवरी 1848 को लड़कियों के लिए पहला स्कूल पुणे में खोला. जब 15 मई 1848 को पुणे के भीड़वाडा में जोतिराव फुले ने स्कूल खोला, तो वहां सावित्री बाई फुले मुख्य अध्यापिका बनीं. इन स्कूलों के दरवाजे सभी जातियों के लिए खुले थे. जोतिराव फुले और सावित्री बाई फुले द्वारा लड़कियों की शिक्षा के लिए खोले जा रहे स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही थी. इनकी संख्या चार वर्षों में 18 तक पहुंच गई.
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