(सीवान) शहीद स्मारक स्थल आज बाजारों के नाम से बेशुमार

*अताउर रहमान सिद्दीकी/लारा*

सीवान:- हिंदुस्तान कि आजादी के लिए अहिंसा कि राह पर चलकर 1942 में महात्मा ग़ांधी ने जो लड़ाई अंग्रेजो के विरुद्ध छेड़ी उस लड़ाई में सीवान का अविस्मरणीय योगदान रहा ! इसके चप्पे-चप्पे में आजादी के मतवालों ने आजादी के लिए परचम लहराया ! फलस्वरूप अनेक लोग शहीद हुए! उसी शहादत कि निसानी सीवान शहर का शहीद सराय है । आई हम बतादे कि शहीद सराय क्या है, कहा है और उसकी वास्तविकता कहाँ खो गई?
13 अगस्त, 1942 दिन गुरुवार समय पूर्वाह्न11 बजे सीवान शहर के मध्य स्थित शहीद सराय स्वतंत्रा के दीवाने तीन किशोरों कि कुर्बानी का गवाह बना। और आगेके दीन वह स्थान शहीद सराय कहा जाने लगा। दो दिन पूर्व पटना सचिवालय पर गोली चलने कि घटना सेंसर होने के बावजूद सीवान में फ़ैल चुकी थी और अगले दिन प्रातः से ही हजारो युवकों,किशोरों और स्कूली बच्चों कि टोलियों नगर कि गलियों चौक चौराहे पर एकत्र हो कर सरकारी दफ्तरों कि और झुंड बढ़ने लगी थी डाकघरों,कचहरी, और अनुमंडल कार्यलय पर लगे अंग्रेजी झंडे उतार कर जला दिए गए और तिरंगा लहराने लगा। उस दिन हुकूमत कि और से कोई प्रतिरोध नही उभरा। पुनः 13 अगस्त को तिरंगा उतरा हुवा पाया गया गया जिसकी खबर पाकर आक्रोशित भीड़ पूनः एकत्र होने लगी और अपना झंडा वापास लगाने कि बात करने लगी । सुचबुझ का परिचय देते हुए अधिकारी ने झंडा तो नही लगाया लेकिन भारतीय तिरंगा सभी युवको को वापस दे दिया । लेकिन भीड़ ने उसी दफ्तर पर झंडा लहराने के लिए आमादा थी,और वैसा हुवा भी । लेकिन इस दिन प्रशासन सख्त और चौकस था लाठी चार्ज कर भीड़ को हटाया । इस क्रम में सात युवक गिरफ्तार भी कर लिए गए। इसी गिरफ्तारी के विरोध में शहीद सराय में स्फूर्त आंदोलन का नेतृत्व एक रिक्शा चालक झगडू साह,एक सातवीं कक्षा का छात्र 13 वर्षीय बच्चन प्रशाद और 20 वर्षीय किशोर छठु गिरी जैसे अल्पवायु के युवक कर रहे थे जाने पहचाने सभी आंदोलनकारी भूमिगत हो गए थे ।
सभा आरम्भ हुई थी कि ब्रिटिश सिपाही ए.सी मिश्रा मजिस्ट्रेट के कमान में सराय पहुँचे और सभा बंद करने कि चेतावनी देने लगे। लेकिन कोई असर नही होते देख बौखलाए सिपाहियों ने लाठी चार्ज कर दिया। भीड़ भागकर छिपकर पथराव करने लगी और पत्थरों कि चोट से घबराये सिपाहियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दिया । इस बर्बरता के शिकार तीन किशोर झगडू शाह,बच्चन प्रशाद, और झठठु गिरी वीरगति को प्राप्त हूए और अन्य लगभग 50 से अधिक छात्र घायल हुए । आजादी के दीवानगी का आलम था कि शहर का चप्पा-चप्पा क्रांति और शहादत के नारों से गूंज उठा । इन शहीदों कि अंत्येष्टि दूसरे दिन वी0एम0 उच्च विधालय के पास दहा नदी के किनारे की गई और हजारों लोगो ने चिता कि राख माथे पर लगाकर बगावत का संकल्प लिया । इन शहीदों में पहला नाम झगडू साह का नाम लिया जाता है जो तीतरा के पास निश्र्रवली गाँव का था प्रतिदिन रिक्शा लेकर सीवान आना और सवारी ढोना इस 20 वर्षीय युवक कि आजीविका थी। लेकिन देश दुनिया में कहा क्या हो रहा ग़ांधी जी और नेहरू ने क्या कहा, आंदोलन कहाँ किस तरह चल रही है इसका पूरी खबर पर वह नजर रखता था दूसरा किशोर 13 वर्षीय बच्चन प्रशाद जीरादेई के पास ठेपहाँ गाँव का था जो स्थानीय डी.ए.वीं मध्य विधालय में सातवीं कक्षा का छात्र था तीसरा शहीद सपूत सराय जिले के दाऊदपुर का युवक छठु गिरी था, जो सीवान में हो रहे आंदोलन कि खबर पकार यहा शामिल हुवा था ।
गुलाम मुल्क कि आजादी के लिए अपनी शहादत देनेवाले इन किशोरों के स्वर्णिम इतिहास से आज के बच्चे ना वाकिफ है वह कैसा दौर था दीवानगी और जवानी था जिसमें कुर्बानी के लिए होड़ सी लगी थी जिले का चप्पा-चप्पा धधक रहा था। महाराजगंज,दरौली,अन्दर,मैरवा,जीरादेई,अदि जगहों पर भी बगावत पर उतरे शहीद युवाओ कि टोलिया देखी जा सकती थी ।
आज उनकी शहादत दिवस है आज उनकी स्मृति में कही कुछ नही है वर्षो पूर्व नगर परिषद् ने शहीद सराय स्मारक बनाने का कार्य आरम्भ किया लेकिन देखते ही देखते वह एक मार्केट काम्प्लेक्स बन गया । आजादी के दीवानो को शहीद हुए 76 वर्ष बीत गए । उनके यादों को सजाने का सपना सपना ही रह गया । आखिर इस स्थल का मालिक कौन है आज तक पता नही चला ।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंदर प्रशाद इसी जिले के रहनेवाले थे बहुत दिनों तक उन्होंने स्वतंत्रा संग्राम का अगुवाई किया । सीवान कि गलियो में घुमाते रहे ।12वर्षो तक राष्टपति के उच्च आसन पर विराजमान रहने के बाद भी सीवान के इन शहीदों पर उनकी नजर नही पड़ी। समय गुजरात गया बहुत समय बीत गए आज के नेताओ,रहनुमाओ,समाजसेवी, संस्थानों अदि से सादर अनुरोध है कि वे इस तथ्य को गहराई से सोचें और इस रहस्य से पर्दा हटा कर पुनीत कार्य करे । सीवान के “शहीदों कि मजरों पर लगेंगे हर वर्ष मेले। वतन पे मरने वालों का यही अंजाम होता है”।






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