165 वर्षों से आस्था व वैभव का प्रतीक बना हथुआ का गोपाल मंदिर
सुनील कुमार मिश्र .हथुआ ( गोपालगंज ) । हथुआ के बीचो-बीच स्थित ऐतिहासिक गोपाल मंदिर पिछले 165 वर्षो से लोगों की आस्था का केन्द्र तो है ही साथ ही साथ प्राचीन हथुआ राज के गौरवशाली अतीत व वैभव को भी समेटे हुए भी है। मंदिर व इसका परिसर अदभूत नक्काशी,वास्तुकला व कलाकृति का बोध यहां आने वाले पर्यटकों को कराता है। गोपालगंज जिले का नाम करण भी हथुआ के इस ऐतिहासिक गोपाल मंदिर के नाम पर ही हुआ है। इस मंदिर की नींव स्व. महाराज बहादुर राजेन्द्र प्रताप शाही की पत्नी महारानी श्यामसुन्दरी कुंवर ने वर्ष 1850 में रखी थी। कुल 13 बीघा,3 कट्ठा 14 धुर में फैले इस मंदिर को बनने में दस साल लगे थे। लंबे समय बाद 15 अप्रैल 1866 को इस मंदिर में श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति स्थापित की गयी थी। मंदिर को बनाने में उस जमाने में कुल 4 लाख,50 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए थे। अर्थात उस खर्चे का आकलन वर्तमान समय में करें तो कुल लागत 54 करोड़ आयेगी। परिसर में मंदिर के अलावा तीन कोठी,विशाल चबूतरा व तालाब के अलावा भव्य मुख्य द्वार है। मुख्य द्वार के छत पर कभी शहनाई बजती थी। इस मंदिर के रख रखाव में स्थापना के समय 30 हजार रुपया प्रति वर्ष खर्च होते थे। इस मंदिर का निर्माण महारानी ने स्त्री धन से किया था। सभी खर्च महारानी द्वारा स्त्री धन से ही किया जाता था। महारानी मंदिर के बगल में स्थित कोठी में रहती थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि मंदिर परिसर में ही अंतिम संस्कार हो। इसी लिए मंदिर के पीछे बैलहट्टा में उनकी समाधी बनायी गयी। वर्ष 1878 में महारानी के निधन के बाद हथुआ राज ने इस मंदिर को टेक ओवर किया था।
मंदिर से चोरी हुए थे 108 सोने के कलश गुंबज
इस मंदिर के उपर छोटे-छोटे 108 गुंबजों में लगे सोने के कलश गुंबज की चोरी वर्ष 1984 में हो गयी थी। मंदिर के परिसर में स्थित तालाब में गंगा,यमुना,सरयू,शिप्रा,नर्मदा सहित विभिन्न नदियों के जल को डाल कर भरा गया था। यह तालाब हथुआ पैलेस स्थित तालाब,टैक्सी स्टैड स्थित पड़ाव के तालाब व नया बाजार स्थित पश्चिम मठिया तालाब को जमीन के अंदर से सुरंग द्वारा एक दूसरे को जोड़ता है। पोखरे के अंदर सोने की नथिया पहने मछलियों को छोड़ा गया था।
मार्बल इटली से तो शीशा लगा बेल्जियम से
गोपाल मंदिर में स्थित भगवान श्री कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति का निर्माण बनारस में हुआ था। वहीं मंदिर की दरवाजों व खिड़कियों पर लगे शीशा को बेल्जियम से मंगाया गया था। इन शीशों पर इचिंग विधि द्वारा काफी खूबसूरती से कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है। वे अभी भी जीवंत लगते हैं। मंदिर के ठीक सामने स्थित पानी के फौव्वारे को लंदन के ग्लैसगो से मंगाया गया था। मंदिर में लगे मार्बल इटली से मंगाये गये थे।
मंदिर का हो रहा कायाकल्प
मंदिर के परंपरा को पुन: जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। मंदिर में सुबह-शाम बांसुरी बज रही है। इसके अलावा परिसर में कदम के वृक्ष के नीचे कोलकाता के कारीगरों द्वारा कृष्ण लीला की मूर्तियों को बनाया जा रहा है। तालाब में शेषनाग की मूर्ति व वोटिंग की व्यवस्था भी की जा रही है। प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी व छठियार महोत्सव भी मनाया जा रहा है।
मंदिर की परंपरा व इसके इतिहास को आधुनिकता के साथ महारानी पूनम शाही की प्रेरणा से पुर्नजीवित किया जा रहा है। पर्यटन स्थल के रूप में गोपाल मंदिर को बिहार के मानचित्र पर स्थापित करने का भी प्रयास किया जा रहा है।
–महाराज बहादुर मृगेन्द्र प्रताप शाही , वंशज,हथुआ राज परिवार
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