गोपालगंज की राजनीति में वंशवाद की वेल
विजय तिवारी. गोपालगंज.
राजनीति में वंशवाद की विष वेल केन्द्र और प्रदेश में तो है ही ! गोपालगंज जिला में भी कम नहीं है ! आज भले ही अपने मेहनत व गुणों के बल पर कई नेता विशेष पहचान बना चुके हैं ! लेकीन राजनीति में प्रवेश तो वंशवाद की विष वेल के सहारे ही हुआ ! जिसके कारण तत्कालिन कई निष्ठावान कार्यकर्ताओं की राजनीतिक महत्वकांक्षा की बलि चढ़ी ! बैकुण्ठपुर से चर्चा करें तो स्व ब्रजकिशोर नारायण सिंह के पुत्र मंजीत सिंह आज भले ही अपने कुशल प्रयास व मेहनत से विशेष छाप छोड़ने में सफल रहे हों ! लेकीन क्या कोई इससे इंकार कर सकता है कि इनका राजनीति में प्रवेश वंशवाद की डार के सहारे नहीं हुआ था ! स्व देवदत्त प्रसाद के पुत्र प्रेम शंकर या आनंद शंकर का राजनीतिक जन्म किस समाजवादी आन्दोलन के जड़ से हुआ ? सिवाए इसके कि वे एक समाजवादी पुरोधा स्व देवदत्त जी के बेटा थे ! आम कार्यकर्ता के राजनीतिक महत्वकांक्षा को अनुशासन की बलि कैसे चढ़ाई जाती है ! इसका ताजा उदाहरण बरौली में चितलाल प्रसाद के रूप में अभी-अभी सामने आया है ! जिसके कारण लगी राजनीतिक आग की ताप अभी ठंढी भी नहीं हुई है ! क्योंकि वहां भी शायद पुर्व मंत्री रामप्रवेश राय के पुत्रों राकेश या अमित को वंशवाद के विष वेल के सहारे मंच पर लाना है ! जैसे की चर्चा है ! स्व० कमला राय व स्व० राजमंगल मिश्र जैसे युग पुरूष भी जिला में हुए ! यदि वे भी चाहे होते तो वंशवाद को बढ़ा सकते थे ! उनके वंशज राजनीति में सफल होते कि असफल ! यह तो बाद की बात थी ! लेकीन स्व० कमला राय व स्व० राजमंगल मिश्र ने वंशवाद को बढ़ावा नहीं दिया ! पुर्व सांसद काली प्रसाद पाण्डेय के पुत्र के राजनीति में आने व चुनावी रंग में रंगने की चर्चा वंशवाद नहीं तो और क्या है ? श्री पाण्डेय के अनुज भ्राता आदित्य नारायण पाण्डेय का राजनीतिक जन्म वंशवाद नहीं तो क्या जन आन्दोलन की खेती का फल है ? विधायक अमरेन्द्र कुमार पाण्डेय उर्फ पप्पू पाण्डेय के बाद उनकी भाभी स्व० उर्मीला पाण्डेय और अब मुकेश पाण्डेय का जिला परिषद अध्यक्ष बनना वंशवाद का ही राजनीतिक खेल था ! जो शायद अभी आगे अन्य चेहरों के रूप में सामने आए ! कटेया से विधायक रही किरण राय के बाद उनके बेटा अंकु राय का जिला परिषद उपाध्यक्ष बनना वंशवाद नहीं तो और क्या है ? राजनीति में वंशवाद किसी एक दल या व्यक्ति की बात नहीं ! यह कमोवेश सभी राजनीतिक दलों की बीमारी बन चुका है ! यही कारण है कि किसी भी दल में कार्यकर्ताओं का घोर अभाव दिखने लगा है ! कार्यकर्ताओं की नई पौध तैयार नहीं हो रही ! आखिर कार्यकर्ता बने कौन ? जब उन्हें पता है कि वंशवाद की विष वेल उन्हें फलने-फुलने नहीं देगी ! मैं जहां तक समझता हूं –बिना किसी दलगत राजनीति, छात्र राजनीति, किसान,मजदूर राजनीति आदि के अनुभव के–परिवार के सदस्य के बल पर सिधे-सिधे किसी पद का लाभ लेना ही वंशवाद है ! हालाकि कई लोग वंशवाद का लाभ लेने के बावजुद खुद अपनी प्रतिभा को भी साबित करते हैं और अपनी प्रतिभा का डंका बजवाते हैं ! वंशवाद की परिभाषा भी सभी राजनीतिक दल अपनी सुविधा के मुताबिक गढ़ने में माहिर हैं ! तुम करो तो वंशवाद और मैं करूं तो अपनी प्रतिभा के बल पर आया !
{आलेख विजय तिवारी के फेसबुक बॉल से साभार}
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