कब तक बदहाली में रहेंगी थावे की भवानी
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थावे भवानी मंदिर के आसपास बदहाली और अव्यवस्था के जिम्मेदार सरकार की बजाय लालची पंडे पूजारी ज्यादा हैं.दर्जनों पंडे पुजारियों यहां हाथ में कलेवा और पूजा करवाने के नाम पर दान दक्षिणा के ऐवज में अच्छी-खासी रकम वसूलते हैं..मंत्र भी अशुद्ध रूप से बुदबुदाते हैं. जो गरीब थावे मंदिर में शादी करने की सोचते हैं, वे ऐसा करने के बाद दूसरी बार अपने परिवार के दूसरे सदस्य की शादी यहां नहीं करवाने के लिए कान पकड़ कर कसम खाते हैं ओर बोलते हैं कि यहां तो महाठग लोग बैठे हैं.थावे की भवानी कलकत्ता से चल कर थावे तक पहुंची हैं. कलकत्ता वाली भवानी मंदिर के आसपास भी ऐसा ही नजारा होता है. कम पैसे वाले भक्त श्रद्धा पूर्वक कुछ दान देने की इच्छा भी रखते हो तो वे पंडे पुजारियों के ठगे होने के बाद मन बदल देते हैं. मंदिर के गर्भगृह में तो जाने के लिए जेब ओर ढीली करनी पड़ती है. यहां के प्रसाद बेचने वाले दुकानदार भी कम ठग नहंी है, वे पता नहीं कितने महीने का पुराना पेड़ा प्रसाद के रूप में बेच देते हैं
किसका है यह मंदिर : सबसे पहला सवाल यह कि यह मंदिर है किसका? इस मंदिर पर हथुआ राज अपना अधिपत्य होने का दावा करता है. इसकी अधिपत्यता को लेकर बिहार सरकार की ओर से पूर्व आईपीएस कुणाल किशोर ने मुकदमा किया था, फिलहाल अब वे उस विभाग से इस्तीफा दे चुके हैं. इस केस के मुदई और मुद्दाय किसी को कोर्ट की तारीख से ज्यादा मतलब नहीं होता है. मामला पेडिंग हैं.
व्यवस्था तो ऐसी होनी चाहिए : यदि इस मंदिर की बदहाली सुधारती है तो सबसे पहले यहां के अनगिनत पंडे पुजारियों के चंगुल से थावे की भवानी को बाहर निकालना चाहिए. जैसे बिहार के बाहर दूसरे राज्यों के मंदिर में होता है, आप प्रसाद लेकर जाइए, पूजारी प्रसाद चढ़ाएगा, और उसे वापस करेगा, आपको उसे दान दक्षिणा देना हो तो आपकी मर्जी, बाकी चंदा या दान आप वहां की दान की पेटी में डालिए…ऐसी ही व्यवस्था मुंबइ्र के प्रसिद्ध श्रीणेश मंदिर में है, प्रसिद्ध साईं बाबा के मंदिर में हैं. जो चंदे की रकम या दान दक्षिणा की रकम होती है, उसी से पुजारियां को निर्धारित वेतन दिया जाता है और मंदिर के आसपास की व्यवस्था की जाती है. इस तरह मंदिर दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करते है और वहां भक्तों को भी आने का फिर मन करता है, लेकिन कोलकत्ता की कालीवाड़ी वाली भवानी हो या थावे वाली भवानी दोनों जगह पंडे पुजारियों ने ऐसा कचरा कर रखा है कि मन करवाईन हो जाता है….इसलिए इस मंदिर और इसके आसपास की कुव्यवस्था के लिए प्रशासन को दोष देने के बजाय मंदिर के अधिस्वामी (चाहे हथुआ राज हो या प्रशासन की कोई स्थानीय संचालन कमेटी) को माल बटोरने के बजाय आगे आना चाहिए और बताना चाहिए कि हर महीने या हर साल कितना दान आया और उससे क्या क्या काम मंदिर परिसर के विकास के लिए किया गया?
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