कॉरपोरेट की मजबूरी बनी क्षेत्रीय भाषा में विज्ञापन

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लेखक अम्ब्रेश रंजन कुमार बिहार के हैं और इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार रहे हैं.)

अम्ब्रेश रंजन कुमार
बदलते दौर एवं तकनीक के विकास ने कॉर्पोरेट जगत की मार्केटिंग के स्वरूप को बिल्कुल बदल दिया है. इनसे कंपनियों के लिए जहां ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने का मार्ग आसान हुआ है वहीं नई चुनौतियां एवं संभावनाएं भी उभर कर सामने आई हैं. ऐसा माना जाता है कि मार्केटिंग ऐसा क्षेत्र है जहां उन्हीं की पकड़ बरकरार रहती है,जिनके पास भविष्य की योजना बनाने की दूरदर्शिता हो, जो परिवर्तन को तेजी से स्वीकार करे और वर्तमान प्रवृति को पहचानते हुए उसपर तत्काल अमल करे, इससे पहले कि प्रतिस्पर्धी इस दिशा में आगे बढ़ जाएं. तभी मार्केटिंग में सफलतापूर्वक पैठ बनी रह सकती है.
भारत जैसे विकासशील देश जहां संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं. इसके अतिरिक्त अनेक भाषाएं एवं बोलियां बोली जाती है. भारत के संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि कोस कोस पर यहां पानी बदलता है और प्रत्येक चार कोस पर बानी. पिछले दिनों एक मशहूर मोबाइल कंपनी का विज्ञापन बहुत ही लोकप्रिय हुआ – ‘यह इंडिया है यहां एक भाषा से काम नहीं चलता’. ऐसे में कॉर्पोरेट जगत विशेष कर विदेशी कंपनियों की बात करें तो यहां के ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए मार्केटिंग की भाषा अंग्रेजी होना उपयुक्त नहीं है. तीन-दशकों पूर्व की बात करें तो अधिकांश कंपनियों के प्रोडक्ट्स की खरीददार का केन्द्र मुख्य रूप से नगरी एवं शहरी इलाकों को माना जा सकता है. ग्रामीण इलाकों में इनकी पहुंच वर्तमान स्थिति की तुलना में बहुत कम थी. उदारीकरण के बाद कॉर्पोरेट जगत के आकार को व्यापक बनाया. इसके साथ-साथ टीवी, इंटरनेट, मोबाइल, स्मार्टफोन ने तो मानो मार्केटिंग के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. टेलीविजन एवं समाचारपत्रों के माध्यम से विज्ञापन गांवों तक पहुंचा, ध्यान देने वाली बात यह है कि इन विज्ञापन की भाषा हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाएं ही रहीं. वर्ष 2000 के बाद इंटरनेट के प्रयेाग में वृद्धि से कंपनियों ने दूर-दराज के ग्राहकों तक पहुंचने के लिए ऑनलाइन माध्यम का सहारा लेना शुरू किया. परंतु इंटरनेट का प्रयोग साइबर कैफे यह कंप्यूटर पर होने के कारण इसका दायरा भी सीमित रहा. हाल के वर्षों में सामान्य मोबाइल फोन का स्थान स्मार्टफोन ने ले लिया है तो कंपनियों द्वारा उनके प्रोडक्ट्स की जानकारी गांव-गांव एवं घर-घर तक पहुंचाना सरल हो गया है.इसमें विभिन्न मोबाइल एप्स की भूमिका भी अहम है. इससे यह स्पष्ट है कि कंपनियों के लिए ग्राहकों तक पहुंचने की दूरी मिट गई है. अब ये अपने प्रोडक्ट्स के विज्ञापन स्मार्टफोन के जरिए भी कर रही हैं जो कि आज लगभग प्रत्येक घर में उपलब्ध है. देशी और विदेशी कंपनियां इन संभावनाओं के उपयोग में लगातार अग्रसर हैं.
मौजूदा परिप्रेक्ष्य में तमाम देशी और विदेशी कंपनियों ने अपना ग्राहक आधार मात्र नगरों एवं शहरों तक सीमित नहीं रखा बल्कि ग्रामीण इलाकों पर भी फोकस कर रही हैं. वजह स्पष्ट है कि शहरों के साथ-साथ गांवों में भी लोगों की क्रय-शक्ति बढ़ी है. आज कंपनियों का रूझान मध्यमवर्ग एवं ग्रामीण इलाकों के ग्राहकों के बीच अपनी पैठ बनाना और इसे बरकरार रखना भी उनके लिए एक चुनौती है. इस चुनौती के समाधान में उनके द्वारा बेहतर विज्ञापन एक अहम आवश्यकता है. बाजार में अपने प्रोडक्ट्स को उतारने के लिए सर्वप्रथम अनिवार्यता यह है कि पहले लक्ष्य ग्राहक की पसंद को जानें फिर ग्राहक की ही भाषा में उन्हें अपने प्रोडक्ट्स की विशेषता उन्हें बताएं तभी बाजार में इनकी खपत की संभावना है. भारत जिसे दुनिया भर में एक विश्व बाजार के रूप में देखा जा सकता है. यहां के अधिकांश खरीददारों की भाषा क्या है इसे कंपनियों द्वारा प्राथमिकता दी जा रही है. दरअसल यह प्राथमिकता उनके लिए अनिवार्य भी है. मसलन आज हम विदेशी कंपनियों जैसे केएफसी, मैक्डोनॉल्ड, माइक्रोसॉफ्ट, कॉलगेट आदि के द्वारा विज्ञापन एवं होर्डिंग आदि हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में देख सकते हैं. मोबाइल कंपनियां, वित्तीय एवं अन्य संस्थाएं भी अपने ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं से हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषा में संप्रेषण में पीछे नहीं हैं. आशय स्पष्ट है कि उपभोक्ता को अपनी बात समझाने और दिल तक पहुंचाने का कार्य उनकी भाषा ही कर सकती है.कहना गलत न होगा कि उन्हें भी अपनी भाषा के विज्ञापन भी अधिक अच्छे लगते हैं. यही वजह है कि कर लो दुनिया मुट्ठी में, और क्या चल रहा है, फॉग चल रहा है, चाहे जितना भी खाओ स्वाद से पचाओ आदि जैसी पंक्तियां लोगों के ज़ेहन में बैठ गयी हैं. सोशल मीडिया के इस दौर में भाषाओं के ऑनलाइन प्रयोग को भी सरल किया है. अब फेसबुक, ट्वीटर पर बहुत ही आसानी से अपनी भाषा में हम अपनी बात व्यक्त कर सकते हैं. वास्तव में यह स्थानीय भाषा के प्रयोग में वृद्धि के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ है. सर्च इंजन गूगल के आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि वर्ष 2015 में वेब पर हिन्दी सामग्री में वर्ष-दर-वर्ष 94% की वृद्धि हुई है वहीं अंग्रेजी भाषा में यह वृद्धि 19%  वृद्धि हुई है. गूगल की कई सेवाएं आज क्षेत्रीय भाषाओं विशेष कर हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं. कंपनियों को भी अपने ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट्स की ओर खींचने में नया और सरलतम माध्यम बहुत भा रहा है. देखा जा सकता है कि कहीं सफर करते लोग आजकल होर्डिंग्स और बैनर के बनिस्पद अपने मोबाइल की ओर अधिक नज़र रखते हैं.
कंपनियों के लिए ग्राहकों से संबंध स्थापित करने में भाषाई प्रयोग का पहलु आज महत्वपूर्ण है. तकनीक के विकास ने इसे और आसान कर मार्केटिंग के नए आयाम को जन्म दिया है. देखना होगा कि आने वाले दिनों में न्यू मीडिया एवं विज्ञापन के क्षेत्र में भाषा और कितनी सशक्त हेाती है और विज्ञापन कितना सरल और प्रभावी रूप लेता है. (लेखक अम्ब्रेश रंजन कुमार बिहार के हैं और इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार रहे हैं. mob 9634885718)






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