पनिया के जहाज से ले कर रेल के पलटनिया तक
कभी पनिया जहाज से पटना से गंगा पार किया जाता था. 1982 में पहली बार महात्मा गांधी सेतु बना और अब उत्तर दक्षिण बिहार को जोड़ने वाला रेलमार्ग बिहार वासियों के हवाले कर दिया गया है. मंगलवार 9 फरवरी का दिन बिहार के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय के रूप में जुड़ गया जब पहली बार पटना से उत्तर बिहार के बीच रेल सेवा बहाल हुई.इस रेल सेवा के बहाल होने से बदहाल महात्मा गांधी सेतु पर अब जनभार कम होगा.
अनूप नारायण सिंह
आजादी के बाद 1982 में महात्मा गांधी सेतु के निर्माण के बाद उत्तर बिहार का सड़क संपर्क राजधानी पटना से हुआ था. उसके पहले स्टीमर से लोग पहलेजा(सोनपुर ) से महेंद्रू (पटना ) तक आते थे.उस दौर में पनिया के जहाज से पलटनिया बन ऐहा पिया वाला गीत काफी हिट था जो स्टीमर को केंद्र में रख कर लिखा गया था. आज जब रेल यातायात सुरु हुआ तो जेहन में रेलिया बैरन पिया को लिए जाइ रे वाला गीत था .ट्रेन की प्रथम यात्रा करने वाले लोगो में आज गजब का उत्साह था .इस सेतु पर सड़क मार्ग का भी निर्माण चालू है जो तीन बरसों में तैयार होगा
मोकामा पुल 1959 में
यह बिहार में गंगा पर बना दूसरा रेल पुल है। इससे पहले मोकामा में राजेंद्र पुल 1959 में शुरू हुआ था। गंगा पुल और आंदोलन सोनपुर और आसपास के लोगों ने पहलेजा घाट में ही रेल पुल बनाए जाने को लेकर आंदोलन किया। इसमें एक आंदोलनकारी की गोली लगने से मौत भी हो गई। जून 1996 में पुलिस फायरिंग में आंदोलन के दौरान अभिषेक नामक युवक की मौत हो गई थी।
राजनीति का फेर
तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान चाहते थे कि पुल गुलजारबाग और हाजीपुर के बीच बने। पर किसी जमाने में सोनपुर से पहलेजाघाट तक रेल जाती थी। वहां से महेंद्रू घाट के लिए रेलवे की स्टीमर सेवा चलती थी। इसलिए सोनपुर को लोग चाहते थे कि पुल सोनपुर से पटना के बीच ही बने। 22 दिसंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगोडा ने सोनपुर में रेल पुल की आधारशिला भी रख दी। पर बाद में इस पुल को गुलजारबाग के तरफ बनाने की खींचतान चलने लगी। इस क्रम में कई साल की देरी हुई। कई इस दौरान आईआईटी कानपुर और रूड़की ने दीघा सोनपुर के बीच रेल पुल के मॉडल को बेहतर पाया। 22 दिसंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगोडा ने सोनपुर में रेल पुल की आधारशिला भी रख दी।
पहलेजा-दीघा फिर गुलजार
पर बाद में इस पुल को गुलजारबाग के तरफ बनाने की खींचतान चलने लगी। इस क्रम में कई साल की देरी हुई। कई इस दौरान आईआईटी कानपुर और रूड़की ने दीघा सोनपुर के बीच रेल पुल के मॉडल को बेहतर पाया। कई साल बाद वह घड़ी आई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने 3 फरवरी 2002 में गंगा नदी पर रेल पुल के निर्माण का शिलान्यास किया। इस मौके पर तब के रेलमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे। हालांकि तब यह सिर्फ रेल पुल था लेकिन 2006 में इसके निर्माण के रूपरेखा में बदलाव कर इसे रेल कम रोड ब्रिज में परिवर्तित किया गया। इसमें नीचे रेल और ऊपर सड़क मार्ग बनाया गया है। ठीक वैसे ही जैसे वाराणसी और मुगलसराय के बीच का रेल पुल है। दीघा-पहलेजा रेल सह सड़क पुल में कुल 36 स्पैन हैं। साल 2002 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 2007 तक निर्माण कार्य करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन इसके निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने की अवधि बढ़ÞÞती गई। मार्च 2015 में इसे पूरा हो जाना था लेकिन समय पर काम पूरा नहीं हो सका। रेल बजट में पहलेजा-दीघा पुल के लिए आवंटन का प्रावधान करने के साथ मंत्रालय के आदेश पर काम में तेजी आई।
पहलेजा-दीघा रेल सह सड़क पुल का निर्माण नवीनतम के-ट्रस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस तकनीक से अब तक अमेरिका में पांच रेल सह सड़क पुल, सर्बिया और नेपाल में एक और भारत में पहला पुल बने हैं। इस तकनीक से पुल के निर्माण में कम खर्च में हल्का और मजबूत पुल बनता है। पहलेजा-दीघा रेल सह सड़क पुल की लंबाई 4.55 किलो मीटर है। निर्माण में बड़े पैमाने पर स्टील का इस्तेमाल किया गया है। हम यह कह सकते हैं कि स्वतंत्र भारत के सबसे बेहतरीन पुलों में से एक है। from naukarshahi.in
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