बिहार विधानसभा भंग होने के बाद इस्तीफा देना चाहते थे डा. कलाम

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एपीजे अब्दुल कलाम ने बिहार विधानसभा भंग किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस्तीफा देने का मन बना लिया था. और तो और उन्होंने पत्र भी तैयार कर लिया था. हालाँकि बाद में उन्होंने ऐसा नहीं किया. दरअसल मई 2005 में बिहार विधानसभा भंग कर दी गई थी. लेकिन पाँच महीने बाद अक्तूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बिहार विधानसभा भंग करना असंवैधानिक था.

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एपीजे अब्दुल कलाम वर्ष 2002 से 2007 तक राष्ट्रपति रहे। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2005 में अपने पद से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था और उन्होंने कभी भी सोनिया गांधी को ऐसी सलाह नहीं दी थी कि वे प्रधानमंत्री न बनें. यह कहना है कि एपीजे अब्दुल कलाम से सचिव रहे पीएम नायर का. नायर ने ए बातें अपनी किताब ‘द कलाम इफेक्ट: माई ईयर्स विद द प्रेसिडेंट’ में लिखी हैं. ये किताब सोमवार से बाजार में आएगी. लेकिन इसके कुछ अंश समाचार एजेंसी पीटीआई को मिले हैं. नायर के मुताबिक एपीजे अब्दुल कलाम ने बिहार विधानसभा भंग किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस्तीफा देने का मन बना लिया था. और तो और उन्होंने पत्र भी तैयार कर लिया था. हालाँकि बाद में उन्होंने ऐसा नहीं किया. दरअसल मई 2005 में बिहार विधानसभा भंग कर दी गई थी. लेकिन पाँच महीने बाद अक्तूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बिहार विधानसभा भंग करना असंवैधानिक था.
अपनी किताब में पीएम नायर ने लिखा है, “सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रपति भवन का माहौल अच्छा नहीं था. हमेशा बातचीत करने वाले एपीजे अब्दुल कलाम काफी चुप रहते थे.”
नायर के मुताबिक कुछ दिनों बाद कलाम ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया और कहा, “मिस्टर नायर, मैंने कुछ फैसला किया है. मैंने ए फैसला अपनी अंतरात्मा से किया है.”
नायक की किताब में कहा गया है कि एक समय कलाम ने उनसे कहा था कि वे इस मामले में कुछ अलग भी कर सकते थे. बिहार मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रपति भवन का माहौल अच्छा नहीं था. हमेशा बातचीत करने वाले एपीजे अब्दुल कलाम काफी चुप रहते थे उन्होंने नायर से कहा था- मैं दो चीजें कर सकता था. मैं इस प्रस्ताव को फिर से विचार के लिए कैबिनेट के पास भेज सकता था या फिर कम से कम अगली सुबह का इंतजार तो कर ही सकता था.

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राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एपीजे अब्दुल कलाम को वर्ष 2005 में सबसे मुश्किल दौर झेलना पड़ा था. जब उन्होंने मई 2005 में बिहार विधानसभा भंग करने की सिफारिश को मंजूरी दी थी. उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी.
नायर ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि कलाम सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त करना चाहते थे. हालाँकि अभी भी इस पर अटकलबाजिÞयाँ होती हैं कि क्या राष्ट्रपति सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करना चाहते थे या नहीं. सोनिया ने राष्ट्रपति भवन के बाहर पत्रकारों को संबोधित किया था, लेकिन नायर की किताब में इन अटकलबाजिÞयों को विराम देने की कोशिश की गई है. पीएम नायर ने अपनी किताब में लिखा है कि तत्कालीन राष्ट्रपति को सलाह दी गई थी कि वे सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर करें.
मई 2004 में चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. राष्ट्रपति ने पूछा था कि इस स्थिति में क्या करना चाहिए. नायर के मुताबिक राष्ट्रपति को सलाह दी गई कि वे इस पर विचार कर लें कि कौन सी पार्टी या गठबंधन स्थाई सरकार दे सकता है और इसके बाद पत्र भेज दें. अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श करने के बाद कलाम ने 17 मई को सोनिया गांधी को राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता दिया. कलाम को ए भी बताया गया कि सोनिया गांधी अन्य पार्टियों के समर्थन वाला पत्र लेकर आएँगी.
बाद में नायर ने कलाम को सलाह दी थी कि वे सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर कर दें. नायर ने स्पष्ट किया है कि कलाम ने कभी भी सोनिया गांधी से प्रधानमंत्री न बनने की बात नहीं कही थी. उस समय सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा खूब उठा था और मीडिया के एक वर्ग में ऐसी अटकलें थी कि कलाम ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को सलाह दी थी कि वे प्रधानमंत्री पद पर न बैठें.
18 मई को सोनिया गांधी को कलाम से मिलने आना था. इस बैठक का उद्देश्य यही था कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति का पत्र सौंपा जाए. सोनिया गांधी उस दिन मनमोहन सिंह के साथ पहुँची. नायर के मुताबिक वे दूसरे कमरे में पत्र के साथ तैयार थे, ताकि सूचना मिलते ही वे राष्ट्रपति को वह पत्र दे आएँ. उस समय राष्ट्रपति ने उस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे. नायर ने अपनी किबात में बताया है कि कुछ मिनट बाद जब उन्हें बुलाया गया तो उन्होंने देखा कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह वहाँ से जा रहे हैं.
कलाम ने उनसे कहा, “आपने तो कहा था कि सोनिया गांधी अन्य पार्टियों के समर्थन वाला पत्र लेकर आएँगी लेकिन वे तो सिर्फ़ विचार विमर्श के लिए आईं थी और उन्होंने कहा कि वे कल पत्र के साथ आएँगी.” नायर के मुताबिक कलाम ने सोनिया गांधी से कहा था कि आप अगले दिन का इंतजार क्यों करना चाहती हैं…मैं आज शाम को ही आपसे मिल लूँगा.
दूसरे दिन यानी 19 मई 2004 को ए संदेश आया कि सोनिया गांधी रात सवा आठ बजे राष्ट्रपति से मिलने आएँगी. एक बार फिर एक दूसरे कमरे में नायर बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे थे कि कब उन्हें कलाम पत्र के साथ हाजिÞर होने को कहें. नायर को बुलाया भी गया लेकिन कलाम ने उनसे कहा कि मनमोहन सिंह को कांग्रेस संसदीय पार्टी का नेता चुना गया है और अन्य पार्टियों का पत्र भी आ गया है. नायर अपने पत्र के साथ वापस आए क्योंकि उस पर सोनिया गांधी का नाम लिखा हुआ था. नाम बदला गया और फिर मनमोहन सिंह को नियुक्त पत्र सौंपा गया.
(- रविवार, 20 अप्रैल, 2008 को 11:55 को बीबीसी हिंदी पर प्रकाशित आलेख)






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