सेक्शन-497 : सेक्स करके पांच-दस मिनट में फारिग हो सकते हैं, विवाह में नहीं!

पुष्यमित्र
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हैरत की बात है कि कल से पहले मुझे इस बात का इल्म तक नहीं था कि देश में ऐसा भी कोई कानून है. कोई कानून है जो किसी स्त्री के पति को अधिकार देता है कि वह अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति से यौन संबंध बनाने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सके. मैं यही समझता था कि कानूनन हर व्यक्ति का अपने शरीर पर पूरा हक है. यौन संबंधों के मामले में भी, अगर कोई स्त्री-पुरुष या किन्नर चाहे तो सामने वाले की इच्छा के मुताबिक उससे यौन संबंध बना सकता है. बशर्ते उसने यौन संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र की सीमा पार कर ली हो. फिर वह चाहे अविवाहित हो, विवाहित हो, तलाकशुदा हो या विधवा-विधुर हो. इसलिए कल का फैसला मेरे लिए शॉकिंग था. आजादी के इतने सालों बाद भी हमारे देश में स्त्रियों को उनके अपने शरीर पर अब तक पूरा अधिकार नहीं था, उस शरीर का अधिकारी उसका पति था. यह सचमुच हद से भी अधिक हद है.

दरअसल दिक्कत यह है कि आज भी हमलोग इस बात को समझ नहीं पाते कि प्रेम, विवाह और यौन संबंध तीनों बिल्कुल अलग चीज हैं. जहां सेक्स का संबंध बमुश्किल पांच मिनट से आधे घंटे तक का होता है, विवाह अमूमन का ताउम्र एक साथ जीवन गुजारने का समझौता होता है. सेक्स करके आप पांच-दस मिनट में फारिग हो सकते हैं. विवाह से फारिग होने की बात हर जोड़ा साथ रह पाने की तमाम संभावनाओं के चूक जाने के बाद ही सोचता है.

यहां तक कि मैं विवाह को प्रेम से भी अलग मानता हूं. प्रेम भी एक क्षणिक अनुभूति है. प्रेम के भरोसे विवाह नहीं चल सकता. प्रेम तो एक क्षण में कपूर बनकर उड़ जाता है. नोबेल विजेता कवियत्री विस्साव शिम्बोर्शका लिखती हैं-

उस रोज किसी ने लिया था तुम्हारा नाम
ऐसा लगा मेरे कमरे में गुलाब ही गुलाब खिले उठे
कल तुम बैठे थे मेरे सामने और
मेरी निगाह बार-बार घड़ी पर पड़ रही थी

अगर प्यार के भरोसे ही दाम्पत्य चले तो हो गया दाम्पत्य का काम. हालांकि पति-पत्नी एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं और अनिवार्य रूप से सेक्स पार्टनर भी होते हैं. मगर यह दाम्पत्य का आधार नहीं है. दाम्पत्य का आधार वह समझौता है जो विवाह के वक्त होता है. कि दोनों को मिलकर एक गृहस्थी को खड़ा करना है. हम साथ मिलकर चलना है. हम अलग हैं, मगर हमें एक दूसरे का पूरक बनना है और एक दूसरे को वक्त-बेवक्त सहारा देना है. और दुनिया को अपनी संतति से आगे बढ़ाना है.

हालांकि गृहस्थी इतनी भर नहीं है. इसकी छांव में बूढ़े मां-बाप और छोटे बच्चे सुरक्षित रहते हैं और इस गृहस्थी से उपजे संसाधन का थोड़ा लाभ गांव-समाज को भी होता. इस लिहाज से गृहस्थी इस मानव समाज की अद्भुत उपलब्धि है. इसका आधार समझौता और समर्पण है. पति की हुकूमत और पत्नी की गुलामी नहीं. कभी नहीं कहा गया है कि दोनों में कोई बड़ा है, कोई छोटा. दोनों को एक ही गाड़ी के दो पहिये कहा गया है.

इस लिहाज से सेक्स और प्रेम बहुत छोटी चीज है. और जहां तक सेक्स का सवाल है, वह दो कामातुरों की बराबर इच्छा की वजह से ही उचित है और आनंद दे सकता है. ऐसे तमाम सेक्स जिसमें किसी का एक अनिच्छा हो, रेप ही हैं. इसलिए स्वाभाविक रूप से मेरिटल रेप की भी मान्यता ने आकार लिया. क्योंकि सेक्स के लिए दो शरीर और दो मन को समान रूप से सहमत होना चाहिए.par

कल का फैसला मेरे लिए कहीं से इस बात की छूट जैसा नहीं है कि पति और पत्नी चाहे तो विवाह के इतर सेक्स कर सके. क्योंकि कल के फैसले में विवाहेतर सेक्स को तलाक का आधार रहने दिया गया है. कल के फैसले का महत्व महज इस बात में है कि वह स्त्री और पुरुष दोनों को सेक्स के मामले में बराबरी का अधिकार देता है. पत्नी भी अपने शरीर की मालकिन है. वह अगर विवाह के इतर सेक्स करती है तो पति को कोई हक नहीं बनता कि वह कोई कानूनी दावा कर सके, हां, वह इस आधार पर तलाक भले ही मांग सकता है. मगर पत्नी रूपी स्त्री को यह तय करने का अधिकार है कि वह अगर किसी अन्य पुरुष से सेक्स करना चाहे तो कर सकती है. और अपने पति को मना भी कर सकती है.

यह बहुत स्वाभाविक सी बात है. हालांकि कई लोगों को यह बात समझ में नहीं आ रहा. मगर ऐसे लोगों को यह देखना चाहिए कि अमूमन स्त्रियां इस फैसले से सहमत हैं. पिछले कई दशकों में स्त्रियों ने इसी तरह टुकड़े में अपने शरीर पर अपना हक हासिल किया है. आप समझिये कि एक जमाने में स्त्रियों को यह तय करने का भी अधिकार नहीं था कि वह गर्भवती होना चाहती है या नहीं. जबकि एक स्त्री के गर्भवती होने का मतलब है उसका कम से कम पांच साल किसी ऐसे काम में फंसना जो उसे दुनिया के किसी भी काम के बारे में सोचने नहीं दे सकता है. गर्भ धारण भी कम खतरनाक प्रक्रिया नहीं है, आज भी कई औरतें बच्चों को जन्म देते हुए मरती हैं. बच्चे के जन्म के बाद उसे पालने की 80 फीसदी जिम्मेदारी औरत की ही होती है, उसके दिन का चैन और रात की नीद सचमुच तबाह होती है. मगर आज भी कई औरतें यह तय नहीं कर पातीं.

पुराने जमाने की तो बात ही छोड़िये, हर सेक्स ऐसी ही समस्या लेकर आता था. जिस मुमताज महल की याद में उसके प्रेमी शौहर शाहजहां ने ताजमहल जैसा सबसे खूबसूरत मकबरा बनवाया, उसकी मौत चौदहवें बच्चे को जन्म देते हुए हुई. आप उसके जीवन का अंदाजा लगा सकते हैं. जब बर्थ कंट्रोल के सटीक उपाय नहीं था, स्त्रियों को हर प्रेम, हर सेक्स की कीमत चुकानी पड़ती थी. मगर इसके बावजूद स्त्रियों को हर सेक्स से पहले ना कहने तक का अधिकार नहीं था. इन्हीं अनुभवों ने स्त्रियों को प्रेम के मामले में इंसिक्योर बना दिया. वे हम पुरुषों की तरह आज भी वन नाइट स्टैंड के लिए सहजता से तैयार नहीं हो सकतीं. क्योंकि आज भी बर्थ कंट्रोल का कोई ऐसा साधन नहीं है जो सौ फीसदी प्रूफ हो और जिसमें गर्भ धारण का खतरा न हो. इसलिए यह मत सोचिए कि इस कानून ने स्त्रियों को अय्याशी की छूट दी है.

स्त्रियां अगर इस तरह की अय्याशी भी करे तो यह उतना आसान नहीं होगा, जितना पुरुषों के लिए होता है. इसलिए इस दुनिया में पुरुषों ने हरम बनाये हैं, वेश्यालय बनाये हैं. दुनिया की मजबूत से मजबूत औरत ने हरम नहीं बनाया. क्योंकि उसे मालूम था कि हर सेक्स उसके शरीर से एक कीमत वसूलेगा. उनके लिए यह सब इतना आसान नहीं है. फिर भी सेक्स जीवन का एक हिस्सा है. भारतीय समाज में उसे चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना गया है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. और मेरा मानना यह है कि हमारी दुनिया तभी सबसे खूबसूरत होगी, जब हर किसी को इनमें से हरेक के पालन की पूरी स्वतंत्रता होगी. इसे स्वतंत्रता का सवाल समझिये, अय्याशी का अधिकार नहीं.






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