कलंकित बिहार!

ध्रुव गुप्त
मुजफ्फरपुर में समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार द्वारा संचालित बालिका गृह में रहने वाली उनतीस बालिकाओं के यौन शोषण का खुलासा पूरे बिहार के लिए शर्म का विषय है। यौन शोषण की शिकार सभी लड़कियों की उम्र अठारह साल से कम है। शर्म का विषय यह भी है कि सालों से चल रहे बच्चियों के साथ बलात्कार और प्रताड़ना का यह खुलासा इस बालिका गृह का समय-समय पर निरीक्षण करने वाले किसी दंडाधिकारी या सरकार के किसी अधिकारी ने नहीं किया। संस्थान के बारे में ऐसी शिकायतें मिलने के बाद जब बिहार सरकार ने मुंबई की संस्था ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ से इसकी ऑडिट कराई तो पहली बार यह रहस्योद्घाटन हुआ कि यहां की लड़कियां संस्थान के लोगों द्वारा निरंतर यौन-शोषण का शिकार हुई हैं। इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के आधार पर जिला बाल कल्याण संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक ने बालिका गृह का संचालन करने वाले स्वयंसेवी संस्था ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ के पदाधिकारियों पर केस दर्ज कराया है। बालिका गृह की लड़कियों की मेडिकल जांच के बाद उनमें से उनतीस लड़कियों के साथ बलात्कार और शारीरिक हिंसा की पुष्टि हो चुकी है। पुलिस को लड़कियों ने यह भी बताया कि बलात्कार के दौरान एक लड़की की मौत भी हो गई थी जिसकी लाश शायद परिसर में ही कहीं गाड़ दी गई। पिछले पांच सालों में यहां से छह लड़कियों के गायब होने की भी सूचना है। इस घटना के संबंध में दस लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई है और पुलिस इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार ग्यारह लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही है। मीडिया और आमलोगों में यह चर्चा ज़ोरो पर है कि ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ के लोगों द्वारा कुछ अधिकारियों और दबंग नेताओं की अय्याशी के लिए लड़कियों को बाहर भी भेजा जाता था। अनुसंधान में इस संदेह की पुष्टि नहीं हुई। मुजफ्फरपुर की एस.एस.पी हरप्रीत कौर के अनुसार इस मामले में किसी भी लड़की ने यह नहीं बताया कि उसे कभी हॉस्टल से बाहर ले जाया गया था। अब इस मामले का एक ही पक्ष उपेक्षित है कि सरकार द्वारा बालिका गृह का समय-समय पर निरीक्षण करते आ रहे दंडाधिकारियों और बिहार सरकार के बाल कल्याण विभाग के अधिकारियों पर बलात्कार के साक्ष्य छुपाने के आरोप में कोई कारवाई क्यों नहीं की जा रही है। ये अधिकारी यह कहकर नहीं बच सकते कि निरीक्षण के दौरान बलात्कार पीड़ित लड़कियों ने उन्हें इस बाबत कुछ नहीं बताया। किसी बालिका गृह के निरीक्षण के दौरान लड़कियों से यह सवाल सबसे पहले पूछा जाना चाहिए था। ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ के लोगों ने जब यह सवाल पूछा तो लड़कियों ने अपने साथ घटी बर्बरता की तमाम कहानियां सुना दीं।
मेरी नज़र में मुजफ्फरपुर पुलिस के अनुसंधान की दिशा सही है। कुछ लोगों की मांग पर सरकार ने इसकी जांच सी.बी.आई को सौंपने का फैसला किया है। इस फैसले के पीछे की नीयत सियासत में गहरी पैठ रखने वाले रसूखदार अभियुक्तों के हित में अनुसंधान को लंबे अरसे तक लटकाकर और स्पीडी ट्रायल को विलंबित कर उन्हें पीड़ितों पर दबाव बनाने का अवसर मुहैय्या कराना भी हो सकता है। जो लोग ‘सरकारी तोते’ के नाम से कुख्यात सी.बी.आई से अब भी निष्पक्षता की उम्मीद रखते हैं, उनके भोलेपन को सलाम ही किया जा सकता है !

( ध्रुव गुप्त भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर्ड अफसर हैं. यह आलेख उनके फेसबुक टाइमलाइन से साभार )






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