85,000 करोड़ रुपये की योग इंडस्ट्री ; राजनीति का औजार

Sanjay Shriwastava

राजनीति चमकाने और पैसा बनाने में योग का अतिरेकी इस्तेमाल इसके मूल सत्य को भुला और गरिमा को गिरा देगा

ऐसा नहीं है कि सर्वग्राही योग पर किसी खास दल का कब्जा या वह किसी खास बाबा की बपौती हो। जदयू जैसे तमाम दलों की इससे दूरी का क्या मतलब
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सफल रहा, मीडियाई कवरेज से तो ऐसा ही लगता है, संसार भर के तमाम देशों में, समुद्र की सतह पर, बर्फीले पहाडों की ऊंचाइयों पर,मैदानों, स्कूलों, गलियों तक योग की धूम रही।
इस सारे क्रियाकलापों के बीच कुछ चेहरे इस कदर सामने आये जैसे योग के पर्याय वही हों। बाबा रामदेव ने योग का सरलीकरण किया उसे जन जन तक पहुंचाया और प्रधानमंत्री मोदी ने अंतराष्ट्रीय योग दिवस प्रदान कर विश्व पटल पर उसे पहचान दिलाया इस आशय को स्थापित करते हुये ये दोनों चेहरे योग दिवस के प्रतीक बने रहे।
कार्यक्रमों के आयोजन देश में व्यापक स्तर पर हुये। हर आयु,वर्ग जाति के लोग इसमें शामिल हुये पर जिस तरह भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों ने इन कार्यक्रमों को कराने में अपना दबदबा कायम रखा, दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग पूरी उत्साह से इन कार्यक्रमों के आयोजन के लिये आगे आते दिखे वैसा दूसरे विचारधारावलंबियों और दीगर राजनीतिक पार्टियों अथवा उनके अनुषांगिक संगठनों में कहीं नहीं दिखा।

एनडीए की साथी जद यू ने इससे यह कह कर किनारा किये रखा कि यह तो 365 दिन का और निजी मामला है इसे एक दिन और वह भी सार्वजनिक तौर पर मनाने का क्या तुक।

ऐसा लगा कि सर्वग्राही योग की भी अपनी एक पार्टी हो या फिर किसी दल ने उस पर अपना अधिकार जमा लिया हो।

योग के नाम पर राजनीति का आरोप भाजपा पर पहले भी लगता रहा है पर उसने किसी दूसरी पार्टी को योग की दिशा में कोई कार्य करने का विरोध किया हो ऐसा कभी नहीं हुआ लेकिन दूसरे दल इस तरह के आयोजन से तकरीबन उदासीन दिखे।

योग राजनीति का एक औजार हो सकता है यह प्रधानमंत्री को खूब पता है और इसके आर्थिक पहलू के बारे में बाबा रामदेव से बेहतर कौन जान सकता है। अपने देश में योग से जुड़े शिक्षक, प्रशिक्षु, छात्र और पेशेवर योग दिवस की सफलता से खुश होंगे तो इस उद्योग से जुड़े कारोबारी भी।

देश से लेकर विदेशों तक अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया ही नहीं बहुतेरे छोटे देशों में भी योग का अरबों डॉलर का कारोबार है। अमेरिका ही नहीं अपने देश में भी योग स्टूडियो बनने लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के दौरान योग स्टूडियो से लेकर योग के तमाम केंद्रों में योग शिक्षकों की मांग बढ़ जाती है।

इस साल अभी 3 लाख योग्य योग शिक्षकों की कमी बतायी जा रही है. विभिन्न प्रकार की योगा स्टाइल विकसित की गई हैं। योगा क्लॉथ, योगा मैट्स,योगा बैंड, योगा एक्सेसरीज़, योगा स्टूडियोज़ की डिजाइनिंग और निर्माण अब एक बेहद लाभकारी पेशा है।

योग से जुड़ी वेलनेस इंडस्ट्री 85,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। अमेरिका में योग का बाजार तकरीबन 12 अरब डॉलर तक पहुंच रह है तो दुनियाभर की बात करें यह 80 अरब डॉलर का है।

योग पहले जैसा नहीं रहा, बड़े शहरों में इसे सीखना अब महंगा सौदा है। योग शिक्षक विदेशों में सेलिब्रिटी हैं और हजारों डॉलर लेकर योग सिखाते हैं तो देश में भी योग केंद्रों ने मौका देख कर फीस बढा दी है।

मशहूर योग विशेषज्ञों के वर्कशॉप उनके नाम से बिकने लगे हैं. इस सारे प्रकरण में सबसे बड़ी दुर्गति योग की होनी है। इस तमाशे में यह महज कसरत बन के रह जायेगा।

भारतीय दर्शन में योग के जटिल अभ्यास सामुच्य के आठ अंग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे आठ अंग बताये गये हैं। संक्षेप में कहें तो योग को जीवन में उतारने से पहले या योग में उतरने के साथ आवश्यक है कि हम नैतिक, जिम्मेदार, शारीरिक अनुशासन में आबद्ध अपनी श्वास निश्वास पर नियंत्रण करें जो प्राणायाम है।

इस अवस्था को प्राप्त करने के बाद गहन मनन, चिंतन करना धारणा है। ध्यान अपने भीतर आंतरिक चिंतन है और अंतिम स्थिति समाधि है। समाधि को ज्ञानोदय या अंग्रेज़ी शब्द एनलाइटेनमेंट के जैसा कहा सकता है।

योग के ब्रांड एम्बेसडर बने अधिकांश योग गुरू आसन और प्रणायाम तक ही अटक कर रह जाते हैं। यम, नियम प्रत्याहार वे करते नहीं और जब इतने से ही बाजार बन जाये तो धारणा, ध्यान की उनको जरूरत नहीं, समाधि किसी पड़ी है।

बाजार बनाने के चक्कर को छोड़ सीधे आसन और ध्यान पर आना योग का ऐसा सरलीकरण है जो उसके लिये शुभ नहीं है।

योग मानसिक, शारीरिक और भौतिक सेहत के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है लेकिन अपने व्यापार के लिये इसे महज व्यायाम में बदल देना उचित नहीं है। आज हालात यह हैं कि किसी भी आसन या प्राणायाम को लोकप्रिय करने के लिये उसे तमाम बीमारियों का रामबाण इलाज घोषित कर दिया जा रहा है।

बेशक योग से पेट की जटिल बीमारियां, मोटापा, रक्तचाप और डिप्रेशन अथवा अवसाद जैसी बीमारियों पर असर पड़ता है लेकिन अब कुछ योग गुरू इससे एचआईवी, कैंसर और समलिंगी व्यक्ति को सामान्य बनाने का दावा तक कर रहे हैं।

योग में लोग, सामान्य कसरत, आयुर्वेद, घरेलू नुस्खों और प्राकृतिक चिकित्सा का भी घाल मेल कर बेच रहे हैं। योग का यह सरलीकरण सरकारी बसों या कचहरी में मजमा लगाकर 5 रुपए में हर मर्ज़ का इलाज वाला नुस्खा या दवा बेचने जैसा है।

एक योग शिक्षक बाबा लोकप्रिय हुआ तो कई उसी होड़ में चल पड़ते हैं, योग को राजनीति या बाजार का आश्रय मिला तो सभी बाबा और योगी उसी ओर लपक पड़ते हैं।

शिव और कृष्ण से जुड़े प्राचीन भारतीय योग का नासमझी भरा यह सामान्यीकरण और पैसा और राजनीतिक लाभ कमाने के लिये उसका अतिरेकी इस्तेमाल भविष्य में योग की गरिमा का छीछालेदर कर के मानेगा।

भय है, श्रेय लेने की होड़ और व्यक्तिगत अथवा संस्थागत प्रशस्तिगान में मूल योग की सच्ची पहचान कहीं धुंधली न पड़ जाए।

राजनीति और योग के व्यापारी जो भी करें बेहतर है जनता योग को महज कसरत या व्यायाम से परे अनुशासन और तर्क के साथ जीने का तरीका समझ कर एक दिन नहीं साल भर के लिये स्वीकारें।






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