नेट पास उम्मीदवार घूमेंगे, पीएचडी वालों की होगी मौज…!

राहुल पटेल
करीब दो दशक पहले शिक्षकों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए शुरू किए गए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को अब शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चत करने के नाम पर ही गैर-जरूरी बनाया जा रहा है. वर्ष 2021 से लागू होने जा रही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता संबंधी नई नियमावली के तहत पीएचडी धारक उम्मीदवार बिना नेट उत्तीर्ण किए असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे!
अभी हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उच्च शिक्षा के संवर्धन हेतु प्रोफेसर की योग्यता के मापदंड में परिवर्तन किया है वह इतना श्रेष्ठ परिवर्तन है की जो लोग नेट उत्तीर्ण हैं उनको विश्वविद्यालयों में चयन नहीं किया जाएगा बल्कि जो कैंडिडेट Ph.D कर लेंगे यह पीएचडी किए हुए होंगे उनकी योग्यता को समझते हुए सरकार उन्हें सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्रदान करेगी व उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगी। तब प्रश्न ये उठता है कि आखिर नेट का एग्जाम क्यो शुरू किया गया था ? उच्च शिक्षा की गुणवत्ता गिराने के लिए या बढ़ाने के लिए, इससे भी बड़ी बात कि अधिकतर यह वह लोग हैं जो कभी अपनी अयोग्यता के चलते नेट उत्तीर्ण नही हुए या कर पाये, थक हार कर के किसी प्रकार से पीएचडी कर लिए हैं । सरकार की नजर में वह योग्य हो गए हैं । 95% लोग पीएचडी कैसे होती हैं जानते हैं। यह किसी भी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति से छिपा हुआ नहीं है लेकिन अब यह महाविद्वान लोग जो नेट नहीं उत्तीर्ण कर पा रहे हैं लेकिन सरकार की नजर में यह महायोग्य हैं वह ही विश्वविद्यालय हेतु पात्र भी होंगे क्यो? और विडंबना देखिए इस देश में लगभग 5 से 8 लाख नेट उत्तीर्ण लोग मारे मारे फिर रहे हैं । नेट क्या है? राष्ट्रीय स्तर की एक राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा जिसका उद्देश्य था प्रत्येक शिक्षक में विषय के समुचित ज्ञान का होना। पीएचडी क्या है?किसी एक टॉपिक पर रिसर्च शोध अर्थात शोध करने से व्यक्ति की अध्यापन हेतु सम्पूर्ण विषय पर एप्रोच अच्छी नहीं हो सकती। तब वह अध्ययन-अध्यापन उस विषय पर बेहतर कैसे कर पाएगे, लेकिन जो नेट उम्मीदवार होगा उसने पूरा सिलेबस पढ़ा होगा पूरे पाठ्यक्रम को तैयार किया होगा उसके अनुरूप राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण होगा, वह भी लिखित परीक्षा । लेकिन वह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने के योग्य नहीं है घालमेल यहां पर इतना ही नहीं है और भी है कि शिक्षकों की नियुक्ति हेतु कॉलेजो की ही भांति हैं राज्य व केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी एक पारदर्शी चयन आयोग हो उस पर किसी का ध्यान नही है। वर्तमान में विश्वविद्यालयो में में भाई-भतीजावाद, नाते रिश्तेदारी, गुरु शिष्य परम्परा, के प्रोफेसर ही अधिकतर पाए जाते हैं । आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कालेजो का चयन प्रकरण चर्चा का विषय भी है। सबक भी। यानी अब मान लिया जाए कि , अर्थात कुछ लोग अपनी निकम्मी औलादों और नाते रिश्तेदारों को विश्वविद्यालयों और कालेजों में पहुँचाने के लिए ये कुचक्र रच रहें हैं । यही जिम्मेदार लोग देश और शिक्षा के दुश्मन हैं । आखिर किसी भी विद्वान को NET पास करने दिक्कत नहीं होनी चाहिए। दूसरी बात यह कि NET+Ph.D दोनो योग्यता को ही अनिवार्य क्यो नही कर दिया जाता जिससे इस तरह के प्रश्न चिन्ह ही समाप्त हो जाए। आखिर पीएचडी किये हुए लोग नेट क्यो न पास करें।
देश के होनहार युवाओ सावधान…! सरकार और ब्यूरोकेट में शामिल उच्च वर्ग नही चाहते कि हम युवा भी ऊपर जाए । यही कारण की केंद्र सरकार ( UGC NET ) की पात्रता परीक्षा पास युवा बेरोजगार घूम रहे है और ये सरकार कह रही है कि उसे योग्य कैंडिडेट नही मिल रहे है । अरे कोई पूछे इनसे की इन्ही के द्वारा निर्धारित परीक्षा पास करने वाला युवा अगर योग्य नही है तो फिर कौन योग्य है ।
कहीं यह पूरी साजिश आपने बच्चों को रोजगार दिलाने के लिए रची जा रही है क्योंकि विदेशों में पीएचडी तो इन्ही अधिकारियों और नेताओं के बच्चे कर सकते है ना कि एक मिडिल क्लास परिवार । हमे इसका जमकर विरोध दर्ज करना होगा। तभी यह निकम्मी सरकार और अफसरशाही जागेगी।
(आलेख गोपालगंज के राहुल पटेल के फेसबुक टाइम लाइन से साभार)






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