चीन की पीली नदी और कोसी

Pushy Mitra
दो-चार दिन पहले यह खबर पढ़ी कि बिहार सरकार चीन की येलो रिवर के बाढ़ नियंत्रण के मॉडल पर कोसी नदी का बाढ़ नियंत्रण करना चाहती है. हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है. कोसी नदी को येलो रिवर या ह्वांगहो के मॉडल पर नियंत्रित करने की कोशिश पहले भी हो चुकी है. इसी आधार पर 1960 के दशक में कोसी बराज और तटबंध बने थे. हालांकि इसके बाद भी बाढ़ आने का सिलसिला बंद नहीं हुआ. दिलचस्प है कि 58 साल बाद फिर से सरकार चायनीज मॉडल को अपनाने की तैयारी में है.

क्या है ह्वांगहो नदी का बाढ़ नियंत्रण का मॉडल

जिस तरह बिहार एक बाढ़ प्रभावित राज्य है, उसी तरह चीन एक बाढ़ प्रभावित मुल्क है. य़हां की आपदाओं में से 60 फीसदी बाढ़ की वजह से ही होती है और इसमें दुनियां की दूसरी सबसे लंबी नदी और सबसे अधिक गाद लाने वाली नदी ह्वांगहो की सबसे बड़ भूमिका है. दिलचस्प है कि चीन के पास इस नदी से आने वाली बाढ़ का 600 ईपू से इतिहास है. तब से अब तक इस नदी में तकरीबन 15 सौ बार बाढ़ आ चुकी है. 26 बार यह अपनी धारा बदल चुकी है और हर एक सौ साल में इस नदी में भयावह किस्म की बाढ़ आती है, जिसमें मरने वालों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है.

दिलचस्प है कि इस नदी पर तीन हजार साल पहले से तटबंध बनते आये हैं. ये तटबंध अक्सरहां टूटते रहते हैं. गाद की वजह से तटबंध भरने लगते हैं तो इन्हें और ऊंचा कर लिया जाता है. पुरातत्वविदों ने तटबंध का भी अध्ययन किया है और बताया है कि ये काफी गहरे हैं. तटबंध के अंदर की धरती तटबंध के बाहरी इलाके से 15 से 40 फुट ऊंची हो गयी है. कोसी वाले इस स्थिति को समझ सकते हैं.

चीन के आजाद होने के बाद इस नदी को आधुनिक तरीके से कंट्रोल किया गया. अब जानिये कैसे? 5464 किमी लंबी इस नदी पर सोलह डैम बनाये गये. इनमें से एक जिआओलंगदी डैम का निर्माण तो नदी को सिल्ट मुक्त करने के लिए किया गया. इसके रिजर्वायर में पानी जमा किया जाता है. फिर हर साल पानी को खाली किया जाता है ताकि रिजर्वायर को सिल्ट मुक्त किया जा सके. बांकी तटबंध तो हैं ही.

एक और उपाय है. बाढ़ प्रभावित लोगों को उनके इलाके से उठाकर दूसरी जगह बसा देना. एक तो चीन में पहले से ही खूब शहरीकरण हो रहा है, इस वजह से ज्यादातर लोग गांव छोड़कर शहर में रहने लगे हैं. दूसरी योजना पिछले साल आयी है, जिसके तहत नदी के दोनों तटबंधों के बीच बसे 13 लाख लोगों को दूसरे राज्यों में बसाने की योजना. उनके लिए आवास बनाये गये हैं वहां वे रह सकते हैं. अगर वहां नहीं रहना चाहते तो उन्हें मुआवजा दिया जायेगा, मुआवजे के पैसे से वे जहां चाहें घर खरीद सकते हैं.

इसके बावजूद इस नदी के बाढ़ का खतरा बना हुआ है. सरकार से लेकर लोग तक हमेशा डरते रहते हैं. तटबंध टूटने से जो बाढ़ आती है, उसे तो लोग बाढ़ मानते ही नहीं है.

हां, एक बार जरूर हुई है कि अब बाढ़ कम आती है. मगर इसकी दूसरी वजह है. 16 डैम बनाने के बाद से नदी सूखने लगी है. आप समझिये कि 1971 के बाद से नदी 30 बार सूख चुकी है. 1996 और 1997 में तो नदी क्रमशः 136 और 226 दिनों तक सूखी रही. पानी डैम में रोक लिया जाता है, उद्योगों को बेच दिया जाता है, नहरों में बहा दिया जाता है. जाहिर सी बात है कि नदी अपने निचले इलाके में जो बाढ़ प्रभावित इलाका था, अक्सरहां पहुंच ही नहीं पाती. लिहाजा बाढ़ नियंत्रण भी हो ही गया है.

अब सवाल यह है कि बिहार सरकार आखिरकार इनमें से किस उपाय को कोसी पर लागू करना चाहती है. क्या तीन हजार साल पुरानी तटबंध प्रणाली जो आज कोसी में लागू है. या वह कोसी पर जगह-जगह डैम और रिजर्वायर बनाना चाहती है. कोसी के पेट में बसे लाखों लोगों को मुआवजा देकर उनका पुनर्वास करना चाहती है या ह्वांगहो की तरह कोसी को भी सुखा देना चाहती है. यह बात तो अब जल संसाधन विभाग के कर्मचारी ही दे सकते हैं.

मगर हमारा सवाल यह है कि क्या समाधान से पहले एक बार सरकार को उन लोगों से भी पूछ नहीं लेना चाहिए जो कोसी के पेट में और कोसी के किनारे सदियों से रहते. उसकी बाढ़ को झेलते और उसके पानी के बीच झझरी खेलते आये हैं?






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