कोसी में रहना है तो देह चलाना सीखो !

पुष्यमित्र
नदियों का इलाका है। छोटे छोटे काम के लिए नाव से दो नदी, तीन नदी पार करना, दियारा के इलाके में कई कई कोस पैदल चलना यहां आम बात है। औरतें रोज घास काटने के लिए इतना सफर दौड़ते कूदते कर लेती हैं। थकती नहीं हैं, सफर में खूब बतियाती हैं, अजनबी लोगों को रास्ता दिखाती हैं। घुटने भर कीचड़ में पांव डालने में घबराती नहीं हैं। सिर पर घास का गट्ठर लादे फोन पर दूर देस में रोजगार कर रहे अपने बेटे से बतियाती हैं। घर की मुसीबतें, बहू की शिकायतें, पोते पोतियों का हाल और अपनी बीमारी बताती हैं।
मगर इनके बीच एक औरत ऐसी भी है जिसका मायका दूर है। बचपन में जिसने नदी, दियारा, बाढ़ नहीं देखा। न जाने किस मजबूरी में मां बाप ने उसका ब्याह इस इलाके में कर दिया। पति बाहर कमाता है, वह खुद को इस इलाके में रहने लायक बनाने की कोशिश कर रही है। गठरी की तरह घाट पर उदास बैठी है। नाव के आने का इंतजार है।
नाव आयेगी तो वह धीरे से उठेगी और निगाह नीचे किए किसी तरह नाव पर चढ़ेगी। इधर नाव वाले चढ़ने के लिए बांस की सीढी नहीं लगाते। पानी में घुसकर खुद कूदते हुए नाव पर चढ़ना उतरना पड़ता है। वह पहले मदद के लिए लोगों का इंतजार करेगी, फिर खुद कोशिश करेगी। कहेगी कुछ नहीं। जानती है, वह कुछ कहेगी तो दूसरी औरतें हंसेंगी।
कहेंगी, केतना सुकुमार है? देह नहीं चलता। यहां रहना है तो देह चलाना सीखो।
मगर वह क्या करे। बचपन में उसे किसी ने देह चलाना सिखाया ही नहीं।
(सफर की डायरी)
पुष्यमित्र के फेसबुक टाइम लाइन से साभार
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