इंस्टंट बुद्धिजीवी मेकर

संजय तिवारी

बुद्धि हो न हो, बुद्धिजीवी दिखने में कुछ लोग कोई कसर नहीं छोड़ते। जैसे, कुछ समय पहले तक, जब मोबाइल कैमरा नहीं आया था तब स्टुडियो जाते थे। बाकायदा ड्रेस कोड बनाते थे। इस ड्रेस कोड में चाहे पैंट शर्ट हो या फिर पाजामा कुर्ता। उस पर सदरी जरूर होती थी। फिर एक हाथ में कलम लेकर उसी हाथ को ढुड्डी से टिकाकर बैठते थे। फिर होता था क्लिक और बन जाते थे बुद्धिजीवी।

मोबाइल कैमरा आ गया तो थोड़ा तरीका बदल गया है। अब चिंतक, विचारक की भी अलग अलग मुद्राएं भी चलन में आ गयी हैं। एक खास अंदाज में बैठने से आप विचारक लगते हैं। किसी और खास अंदाज में बैठने से आप चिंतक हो जाते हैं। फिर आसपास के किसी व्यक्ति को निर्देश मिलता है कि इस पोज में एक फोटो निकालो। कोई न मिला तो आत्मनिर्भर भारत तो हो ही रहा है। खुद सेल्फी सेट कर लेते हैं। इस तरह फोटो निकलता है। किसी एप्प के सहारे थोड़ा टीप टॉप किया जाता है और फिर सोशल मीडिया पर शेयर हो जाता है, “फलाना मुद्दा पर गंभीर चिंतन” करते हुए।

जिन लोगों को लगता है कि इक्कीसवीं सदी में विचारक, बुद्धिजीवी, चिंतक इत्यादि कैसे बना जाए उन्हें ऐसे लोगों से प्रशिक्षण लेना चाहिए। इंस्टंट बुद्धिजीवी मेकर भी होते हैं ऐसे लोग।

 

संजय तिवारी के फेसबुक वाल से






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