भारत के एक मदरसे से है तालिबान के वैचारिकता का आधार 

संजय तिवारी
तालिबान ने युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दिया है। बिना किसी खास विरोध के तालिबान के लड़ाके काबुल में प्रविष्ट हो गये और राष्ट्रपति सहित पूरा अफगान प्रशासन काबुल से भाग खड़ा हुआ। करीब 20 साल बाद अब काबुल पर तालिबान का दोबारा कब्जा हो गया है। लेकिन ये तालिबान हैं कौन? कहां से पैदा हुए? इनकी विचारधारा किस इस्लाम से प्रेरित है?
तालिब का अर्थ होता है विद्यार्थी। तालिबान का अर्थ हुआ विद्यार्थियों का समूह। आज अफगानिस्तान में “विद्यार्थियों के जिस समूह” के कारण तालिबान चर्चा में हैं इनका जन्म पाकिस्तान के एक मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया में हुआ था। पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा मुजाहिद (मजहबी योद्धा) तैयार करने का आदेश और डॉलर मिला था जिसे पूरा करने के लिए पाकिस्तानी फौज ने दारुल उलूम हक्कानिया को चुना। इसी मदरसे से एक तालिब पढकर निकला था जिसका नाम था मुल्ला उमर जो उस समय कराची में कुरान पढाता था।
दारुल उलूम हक्कानिया के उस समय प्रिंसिपिल थे मौलाना समी उल हक उर्फ मौलाना सैंडविच। मौलाना समी उल हक मुल्ला उमर से बहुत प्रभावित थे। उन्हें जब पाक फौज का आदेश मिला कि अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ जिहाद करना है तो उन्होंने कराची में रह रहे मुल्ला उमर से संपर्क किया। अफगानिस्तान में पैदा हुआ मुल्ला उमर अफगान लैंडलार्ड से छापामार लड़ाइयां लड़ता रहा था इसलिए यह मौका मिलते ही वह अफगानिस्तान में जिहाद के लिए तैयार हो गया और इस तरह तालिबान का जन्म हुआ।
दारुल उलूम हक्कानिया देओबंदी इस्लाम की शिक्षा देने वाला मदरसा है इसलिए वहां से जो तालिबान निकले वो देओबंदी इस्लाम की शिक्षाओं को मानने वाले हैं। देओबंद भारत में सहारनपुर जिले का एक कस्बा है जहां हनफी इस्लाम पर आधारित एक मदरसा संचालित होता है जिसका नाम है दारुल उलूम। दारुल उलूम देओबंद दुनिया की सबसे कट्टर इस्लामिक विचारधाराओं में से एक है। इसकी कट्टरता के कारण ही इस मदरसे की तुलना मिस्र की अल अजहर युनिवर्सिटी से की जाती है जिसने अल कायदा को जन्म दिया।
दारुल उलूम देओबंद को माननेवाले देओबंदी मुसलमान कहे जाते हैं। ये देओबंदी मुसलमान अपनी मान्यताओं को लेकर बहुत कट्टर होते हैं और अपने नबी की सुन्नत को बहुत कड़ाई से पालन करते हैं। उनकी सबसे आसान पहचान ये होती है कि वो एक खास तरह का ड्रेस पहनते हैं जिसे सलवार कमीज कहा जाता है लेकिन उनका सलवार उनके टखने के ऊपर ही रहता है। इसके अलावा वो सिर पर पगड़ी बांधते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टर इस्लाम का सबसे बड़ा प्रचार दारुल उलूम देओबंद ही करता है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में देओबंदी इस्लाम को मानने वाले कट्टर और आक्रामक माने जाते हैं। ऐसा अनुमान है कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 20 प्रतिशत मुसलमान इस समय देओबंदी इस्लाम को अनुसरण करते हैं।
दारुल उलूम देओबंद एक ऐसे इस्लामिक स्टेट का स्वप्न देखता है जिसमें शिर्क न हो। शिर्क का अर्थ हुआ जहां अल्लाह के अलावा और किसी को मानने और पूजनेनाले न रहते हों। इसके लिए उनके मदरसों से तालिबान तैयार किये जाते हैं जो ये मानते हैं कि शासन करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ देओबंदी मुसलमान के पास है। बाकी जो गैर मुस्लिम या फिर गैर देओबंदी मुस्लिम भी शासन कर रहे हैं उनको शासन से बाहर निकाल देना उनका इस्लामिक दायित्व है। इसलिए आज अफगानिस्तान में तालिबान इस्लामिक शासन के खिलाफ ही लड़ रहा है।
आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा लेकिन सत्य यही है। अफगानिस्तान में अफगान सेना और तालिबान के बीच जारी ताजा लड़ाई के लिए गोला बारुद और हथियार भले ही पाकिस्तान और चीन दे रहे हों लेकिन उसका वैचारिक आधार भारत ने दिया है। भारत के एक मदरसे ने दिया है जिसका नाम दारुल उलूम देओबंद है। पाकिस्तान का पूरा आतंकी नेटवर्क देओबंदी और जमाती विचारधारा ही चलाती है। अब इस उपलब्धि पर हम भारतीय चाहें तो शर्म कर सकते हैं या फिर चाहे तो गर्व। लेकिन जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है, वह कल पाकिस्तान में होगा और वही परसों हिन्दुस्तान में भी होगा। आज काबुल ढहा है। कल इस्लामाबाद ढहेगा। परसों नई दिल्ली भी जमींदोज हो जाएगा। (संति)






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