बहुरूपिया कोरोना वायरस हार मानने को तैयार नहीं

भारत में अभी तक कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन या प्रकार के मिलने की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन विशेषज्ञ नए वायरस के भारत पहुंचने की आशंका को खारिज भी नहीं कर रहे.
– राजेश जोशी
देशभर में कोरोना वायरस संक्रमण के घटते मामलों और जनवरी से टीकाकरण की तैयारी की खबरों से मिलती राहत को ब्रिटेन में कोरोना वायरस संक्रमण की सूनामी ने बहा दिया है. ब्रिटेन में आए संकट की वजह है म्यूटेशन से बना नए तरह का कोरोना वायरस, जो मूल वायरस से काफी अलग है. नए लोगों को संक्रमित करने की इसकी रफ्तार भी ज्यादा है. दिक्कत यह है कि वायरस के नए रूप की हमको बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. किसी को नहीं पता कि वायरस दुनियाभर में बनाई जा रही वैक्सीन को लेकर क्या प्रतिक्रिया देगा या जो लोग पहले संक्रमित हो चुके हैं, उनके शरीर में बनी एंटीबॉडी वायरस के नए रूप को रोक पाएगी या नहीं. एेसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब बाकी है. इसके बीच एक और बड़ा डर वायरस की भारत में एंट्री को लेकर भी है. ब्रिटेन में यह वायरस सितंबर की शुरुआत में पहचाना गया था. दिसंबर मध्य तक तीन चौथाई मामले इसी वायरस से हुए संक्रमण के हैं.
2 दिन पहले जब ब्रिटेन ने हाथ खड़े कर दिए, तब सारे देशों की नींद खुली. भारत समेत 40 से ज्यादा देशों ने ब्रिटेन से हवाई और सड़क संपर्क पर रोक लगा दी है. पूरी दुनिया की चिंता यही है कि सितंबर से लेकर दिसंबर के मध्य तक ब्रिटेन से दुनियाभर में गए लोग कहीं इस संक्रमण को तो साथ में लेकर नहीं गए. ब्रिटेन में अब तक सामने आये संक्रमण के ज्यादातर मामले बिना लक्षण वाले हैं. भारत सहित कई देशों ने ब्रिटेन के साथ एयर बबल करार कर रखा था. भारत में अभी तक कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन या प्रकार के मिलने की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन विशेषज्ञ नए वायरस के भारत पहुंचने की आशंका को खारिज भी नहीं कर रहे हैं. नए वायरस की मौजूदगी का पता लगाने बड़े पैमाने पर जीनोम सिक्वेंसिंग करनी होगी. वायरस में म्यूटेशन का सवाल है, तो यह कोई अजूबा नहीं है. हर वायरस खुद को वैक्सीन या दूसरे एंटीबॉयोटिक से बचाने और अपनी संख्या बढ़ाने के लिए स्वरूप में बदलाव करता रहता है. एक्सपर्ट इस बात को लेकर भी आशंकित हैं कि कोरोना वैक्सीन कितने महीनों तक कोरोना वायरस से हमें बचाएगी.
पिछले एक साल में वायरस में करीब-करीब चार हजार बार म्यूटेशन हो चुका है, लेकिन ब्रिटेन जैसी गंभीर स्थिति और किसी म्यूटेशन के बाद नहीं आई. ब्रिटेन के अलावा कई और देशों में इसी तरह के वायरस पाए गए हैं. यह साफ नहीं है कि ब्रिटेन में यह वायरस कैसे और कहां से आया. लगातार रूप बदलते इस वायरस पर नजर रखना जरूरी है, ताकि हम उसकी काट तलाश कर पाएं. यह आशंका भी है कि हमें फ्लू की तरह कोरोना वायरस की वैक्सीन भी हर साल बेहतर करनी पड़े.
एक बात साफ है कि हमें अगले कई सालों तक खुद को बेहद अनुशासित रखना पड़ेगा. जब तक 60 से 70 फीसदी आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता या ये आबादी इम्यून नहीं हो जाती, तब तक कोविड-19 वायरस का खतरा बना रहेगा.






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