ये फेसबुक पर जो जिंदगी दिखती है न !!

Vineet Kumar
कोई बार-बार अपनी डीपी बदल रहा है. अपनी दोस्त-गर्लफ्रेंड-पत्नी के साथ घूमने-फिरने, हैंगआउट की तस्वीरें अपडेट कर रहा है. कोई ताबड़-तोड़, बैक टू बैक अपनी इवेंट को लेकर पोस्ट लिख रहा है. कोई खाने-पीने की तस्वीरें लगा रहा है. यही काम एक महिला, एक स्त्री भी कर रही है. बहुत संभव है कि कई बार आपको ये सब शो ऑफ, शोशेबाजी लगे. लेकिन उन्हें बचकाना, फूहड़, सो फनी बताकर व्यंग्य मत कीजिए, ताने मत मारिए, उपहास मत उड़ाइए और जलिए तो बिल्कुल भी नहीं. बहुत संभव है कि वो इन्हीं सब में अपनी जिंदगी के बहाने ढूंढ रहे हो ? कई बार हमारी जिंदगी से बहाने एकदम से गायब हो जाते हैं, हमें खोजने और पैदा करने पड़ते हैं. ये सब करने की कोशिश में कुछ लोग पा भी लेते हैं.
आप उनकी इन कोशिशों के साथ मौजूद रहिए. वो जो आपकी नज़र में एब्नॉर्मल है, बहुत संभव है उन्हें अपनी नॉर्मल जिंदगी में लौटने के लिए जरूरी लगे.
टाइमलाइन पर हर खुश और नॉर्मल दिखता इंसान अपनी असल जिंदगी में नॉर्मल हो, जरूरी नहीं. आपको जरूरत लगे और उन्हें ऐसा लगे तो उनकी टाइमलाइन से इनबॉक्स में और फिर जिंदगी में उतरकर उनकी कोशिशों को मजबूती दीजिए. सोशल मीडिया से मीडिया शब्द हटाकर बस सोशल हो जाइए. लाइक, कमेंट्स, हिट्स की लालच से दूर और उनके करीब.
किसी के भीतर ये भरोसा पैदा करना कि कोई नहीं तो मैं हूं, तुम अकेले नहीं हो, एक असरदार ईलाज़ है. आप इंसान के भीतर पसर रहे अकेलेपन को कम करने के लिए आगे आएं, उसकी जिंदगी में महज एक संख्या, एक नंबर बढ़ाने के लिए नहीं.
कोई खुश है तो आप खुश हो जाइए कि किसी की जिंदगी से दुख के बादल छंट रहे हैं. खुश हो जाइए कि आपका काम थोड़ा आसान हो गया है.
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