खेल और राजनीति : बेवकूफ नहीं हैं पश्चिम बंगाल वाले

खेल और राजनीति : बेवकूफ नहीं हैं पश्चिम बंगाल वाले
-नवल किशोर कुमार
सच कहिए तो खेल और राजनीति में कुछ अधिक अंतर नहीं है। जहां राजनीति होगी वहां खेल होगा ही और जब खेल होगा तो राजनीति होगी ही। दोनों के बीच संबंध है। अब देखिए कि क्या हो गया भारतीय क्रिकेट में। सौरव गांगुली बन गए हैं भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष और सचिव के रूप में अमित शाह का बेटा जय शाह।

जय शाह के बारे में कोई टिप्पणी करने का मतलब नहीं बनता है। बाप मेहरबान तो बेटा पहलवान बनेगा ही। इसमें उसकी क्या गलती है अगर पूरे देश में उसके बाप का राज है। यह तो बहुत कम है कि उसे सचिव बनाया गया है। उसका बाप इतना पावरफुल है कि देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी उसके चरण धो-धोकर पीये।

हां, सौरव गांगुली के बारे में बात की जा सकती है। मैंने वह दृश्य नहीं देखा जब सौरव गांगुली ने इंग्लैंड को वन डे मैच में हराने के बाद अपना दीशर्ट खोलकर अपने भद्रपन का प्रदर्शन किया था। शायद वह मैच लार्ड्स में हुआ था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके इस व्यवहार की आलोचना की गयी थी। लेकिन भारत में उनके समर्थक आह्लादित थे। भारतीय मीडिया के मुताबिक उस समय कप्तान रहे सौरव गांगुली की आक्रामकता का परिचायक जो कि भारतीय क्रिकेट के लिए जरूरी अवयव था और भारतीय टीम इससे वंचित थी। 1983 में जब भारत ने विश्वकप जीता था तब कपिलदेव यह चूक कर गए। यदि उन्होंने और उनके साथियों ने अपने कपड़े उतारकर मैदान के फेरे लगाए होते तो क्या होता।

वैसे मेरा तो मानना है कि देश भर के लोग यह समझ रहे हैं कि सौरव गांगुली को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे खेला क्या है। चूंकि पश्चिम बंगाल में चुनाव है और भाजपा को ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल कर भगवा झंडा फहराना है तो सौरव गांगुली को मोहरा बनाया गया है। हालांकि मुझे अब भी यकीन है कि पश्चिम बंगाल के लोग इतने बेवकूफ नहीं हैं जितना बेवकूफ उन्हें भाजपा समझ रही है।

(आलेख परिवर्धित : Amar Nath जी को साभार)






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