काल निर्धारक : भारतीय संस्कृति के पौरुष – पराक्रम का ललाट बिम्ब ‘विक्रम’ .

काल निर्धारक  :  भारतीय संस्कृति के पौरुष – पराक्रम का ललाट बिम्ब ‘विक्रम’ .
मर्यादा पुरषोतमश्री राम और श्री कृष्ण के पश्चात जिस शासक को भारत ने अपने ह्रदय सिंहासन पर आरूढ़ किया है वह विक्रमादित्य है। जिसका गरुड़ध्वज वर्तमान अफगानिस्तान में स्थित हिन्दू कुश के पार बलख से लेकर ईरान इराक तक लहराता था। कुल 4 में से 3 समुद्र की लहरें भी जिसकी पराक्रम की गीत गाती थी। देवश्री , विक्रम , नरेन्द्रचंद्र , सिँहविक्रम ,नरेन्द्रसिंह ,सिंहचन्द्र ,परमभागवत ,अजितविक्रम ,विक्रमांक, परमभट्टारक , महाराज , देवराज तथा अप्रतिरथ आदि उपाधियाँ भी जिसकी पराक्रम के आगे नतमस्तक हों, जिसकी भुजाओं पर तलवार से यश लिखे गए, जिस राजा के शासन काल के आधार पर ही हिन्दू समुदाय अपना पंचांग और काल का निर्धारण विक्रम संवत के रूप में करता है , उसी परम भागवत भारत काल निर्धारक ‘विक्रमादित्य’ को नमन।

इसे दैवयोग कहा जाय या संयोग हिंदुस्तान का प्रथम विक्रमादित्य भी जहाँ बनिया था वहीँ अंतिम विक्रमादित्य ‘हेमू’ भी. हिंदुस्तान के इतिहास में हुए कुल 6 या 7 विक्रमादित्य में से 4 उस जाति से थे जिसे सर्व समाज अपनी हेय दृष्टि से देखते हुए बनिया बक्काल कहता है.
और दोनों ही बिहारी थे।

साभार : सुबोध गुप्ता
आखिर कौन था हेमू ?






Comments are Closed

Share
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com