दिलीप मंडल
लोकतंत्र, ओपनियन मेकिंग और जाति!
हर पार्टी के नेता ब्राह्मणों को खुश इसलिए नहीं करना चाहते कि उनकी संख्या ज्यादा है. बात संख्या की नहीं है. संख्या सबकुछ नही है.
एक ब्राह्मण पूरे गांव या मोहल्ले की ओपिनियन बनाने की क्षमता रखता है. वह पान दुकान में खड़ा होता है, तो अपनी बात आत्मविश्वास से कहता है. बस और ट्रेन में होता है, तो अपनी बात दम के साथ कहता है. झूठ भी आत्मविश्वास के साथ बोलता है.
उसकी बात सुनी और मानी जाती है. वह मीडिया में है, फिल्मों में है, किताबों में है, लाइब्रेरी में है, वाइस चांसलर की कुर्सी में है, प्रोफेसर है, पुजारी है, अफसर है.
वहां से वह जो बोलता है, उसका मतलब होता है.
उनकी ये क्षमता सदियों की ट्रेनिंग से आई है. उसकी बात मान लेने की बाकी जातियों की ट्रेनिंग भी पीढ़ियों से आई है.
इसलिए संख्या पर मत जाइए.
लोकतंत्र पब्लिक ओपिनियन से चलता है. सिर्फ संख्या से नहीं.
(दिलीप मंडल के फेसबुक टाइमलाइन से साभार )
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