बिहार के नियोजित शिक्षक का समान वेतन : कितने दूर कितने पास

सुरजीत श्यामल
पुरे बिहार में समान काम का समान वेतन के #ऐतिहासिक फैसले की खबर से ख़ुशी की लहर दौड़ गई. नियोजित शिक्षकों के घर में फैसले वाले रात से ही लोग जग-जग कर हिसाब लगाने में लग गए कि एरियर कितना मिलेगा, मासिक सैलरी कितनी हो जायेगी आदि-आदि. मगर इसके ठीक उलट उनके घर के पड़ोसी जल भून गए. अब चाहे आपको यह झूठ लगे या सच मगर पहले ही बता चूंकि हूं. यह मानव का स्वभाव है कि लोग जितना दु:खी अपने दु:ख से नहीं होते उतना दु:खी अपने पास-पड़ोसियों के ख़ुशी से हो जाते हैं. उसके बाद छोटे से लेकर बड़े नेताओं का इस मुद्दे पर बयान आना शुरू हो गया. जहां एक तरफ विपक्ष ने इसको ऐतिहासिक फैसला बताकर लागु करने की वकालत की, तो सत्ता समर्थक ने इससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट होने की बात कही. वह तो धन्य मनाइये कि बिहार में अभी बीजेपी समर्थित नितीश कुमार की सरकार हैं. अगर अभी मिडिया द्वारा कथित जंगल राज मतलब नीतीश+लालू प्रसाद की सरकार होती तो मिडिया आप सभी एक-एक टीचर के घर जाकर आपके मुंह पर माइक और कैमरा लगा-लगा कर बिहार टॉपर रूपी रॉय की तरह आपके मेधा की जांच कर रहा होता. मगर यह क्या सुशासन बाबू की सरकार ने आनन-फानन में पटना हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देनी की बात करके नियोजित शिक्षकों के ख़ुशी पर पानी फेर दिया.
अब इस पोस्ट का असली मकसद पर आते है. इस फैसले से शायद जितना ख़ुशी किसी नियोजित शिक्षक को होगा उससे हजार गुना ख़ुशी हमें हुआ है. मगर जल्द ही लोगो ने उतना ही दु:खी भी कर दिया. दुःख इस बात का कतई नहीं कि बिहार सरकार इस फैसला को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट जा रही. बल्कि दुःख तो इस बात का है कि इस फैसले के 92 पेज सबने पढ़े, यहां तक की वकील के माद्यम से भी लोगों ने पढ़ा होगा मगर जो हमें दिखा वो शायद न किसी संघ को दिखा होगा और न ही शिक्षक को. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हमें ऐसा क्या दिख गया कि जो बांकी लोगों को नहीं दिखा? इस मांग के लिए 13 याचिकार्ताओं के अलग अलग तिथि को केस लगाने के वावजूद सारे अपील का एक ही आर्डर दिया गया. इससे एक तरह से “यूनिटी” का एक सन्देश उभरा जो शायद कम लोगों ने ही गौर किया होगा. माननीय कोर्ट ने स्पष्ट भी किया हैं कि सभी की मांग एक ही हैं. अरे भाई जब जज साहब ने ही आपके अलग-अलग लड़ाई को एक दिशा दे दिया तो फिर आप अभी भी अलग-अलग लड़ कर उस महान व्यक्ति के फैसले का अपमान क्यों कर रहे हैं।
पिछले 3 दिन से सोशल मीडया में देख रहा हूं कि आज फलाना नेता दिल्ली पहुंचकर केवियट फ़ाइल करने वाले हैं, तो आज फलाना नेता राजधानी ट्रेन से दिल्ली जा रहे हैं, तो आज फलाना नेता हवाई जहाज से जा रहे तो कोई बस से जा रहे हैं. सबसे पहले यह बता दें कि केवियट फाइल करने का मतलब क्या है? “अगर किसी व्यक्ति को इस तरह की भी आशंका हो सकती है कि किसी मामले को ले कर उस के विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई वाद या कार्यवाही संस्थित करके अथवा पहले से संस्थित किसी वाद या कार्यवाही में कोई आवेदन प्रस्तुत कर कोई आदेश प्राप्त किया जा सकता हो. ऐसी अवस्था में उस व्यक्ति के पास एक मार्ग तो यह है कि आशंका में जीते हुए उसे सच या मिथ्या होने की प्रतीक्षा करे या फिर अदालत में खुद व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 148-अ के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करे. इस आवेदन को केवियट (caveat) कहा जाता है”. खैर सरकार ने अभी तक पटना हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती नहीं दिया है.
अब भले ही सब अलग-अलग ही जा रहे मगर मंजिल सबकी दिल्ली ही हैं. दिल्ली में और कहीं नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट ही है. उससे भी बड़ी बात कल अगर सुनवाई होती है तो एक ही कोर्ट में सुनवाई भी होगी. अगर सब साथ में जाते तो कोई परेशानी तो नहीं थी. चलिए अगर साथ नहीं गए तो कोई बात नहीं मगर लड़ाई तो साथ लड़ा जा सकता है. मानता हूं सभी का संघ का नाम, बैनर अलग-अलग होगा, मगर सभी का लक्ष्य और उद्देश्य तो एक ही है. आप ही सोचिये की जब देश की लड़ाई होती है तो सारे सैनिक अलग-अलग लड़ते हैं या एक साथ? अब सोचिये कि अगर राजपूताना रेजिमेंट अगल, गोरखा रेजिमेंट अलग, अलाना-फलाना, इमका-ढिमका अलग-अलग लड़े तो क्या लड़ाई जीती जा सकती है?
इस लेख के माध्यम से हम कतई यह नहीं बताना चाहते है कि इससे जीत नहीं मिलेगी, मगर जरा सोचिये जो सरकार नियोजित शिक्षक की सैलरी 20 हजार होने पर 3-3 महीने तक नहीं दे पाती. क्या वह सरकार एक नियोजित शिक्षक को 25-25 लाख एरियर देने के बाद महीने का 40 हजार दे पायेगी? और क्या इस हक़ को हम अलग-अलग खिचड़ी पका कर पा सकते हैं. भाई हमें तो नहीं लगता. एक तरह से देखे तो एक शिक्षक का 25 लाख तो 4 लाख शिक्षक का 100 लाख रुपया देने में ही सरकार बम बोल जायेगी. इसको देने से बचने के लिए हर साजिश रचने की कोशिश करेगी.
बहुत से लोगों को शायद पता हो, या ना भी हो कि केंद्र की वर्तमान में मोदी सरकार श्रम सुधार के नाम पर श्रम कानून में बदलाव की तैयारी में है. इसके तहत हमारे पूर्वजों के खून पसीने की लड़ाई से बनी देश के 44 श्रम कानून को समाप्त कर मजदूर विरोधी 4 कानून बनाने की साजिश रच रही है. (इसके बारे में भैया तभी तो कानूनी लड़ाई लड़ पाइयेगा.
आपकी यह लड़ाई सरकार के निति के खिलाफ है. अब आपको जाति-धर्म, पार्टी से ऊपर उठकर सोचना होगा. यह हो सकता है कि आप में से कुछ लोग, कोई बीजेपी, कोई कांग्रेस, तो कोई जदयू, तो कोई राजद का समर्थक हो. हम इसके लिए मना नहीं कर रहे. मगर जब आपके हित का सवाल हो और अगर आपकी पार्टी आपके साथ खड़ी न हो तो फिर आपका उस पार्टी को समर्थन देना भी किस काम का? याद रखिये दोस्त, एक तरह से “समान काम का वेतन समान” की मांग उठाकर आप लोगों ने सरकार के निति को चुनौती दे डाली है. जबकि वर्तमान केंद्र और राज्य की सरकार निजीकरण के वैशाखी पर चल है. इस सरकार का लक्ष्य पीपीपी मॉडल है. मोदी योगी सरकार के तर्ज पर नितीश सरकार द्वारा शिक्षकों को 50 वर्ष में जबरन रिटार्ड की खबर आपसे छुपी नहीं है और तो और योगी जी के सत्ता संभालते ही यूपी के शिक्षामित्रों का हाल भी पता ही होगा.
बिजनेश स्टैण्डर्ड के खबर के अनुसार नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित इंडिया पीपीपी समिट-2017 का संबोधित करते हुए कहा कि सरकार को जेलों, स्कूलों और कॉलेज इन सभी को भी प्राइवेट सेक्टर को सौंप देना चाहिए. अब अगर कल को सुप्रीम कोर्ट से भी हम जीत भी जाएं और उसके बाद सरकार ने रेलवे स्टेशन की तरह स्कुल को निजी हाथों को बेच दिया तो?
हम इस लेख के माध्यम से हम न तो किसी को डराने की कोशिश कर रहे, न ही कोई नेगेटिविटी फैला रहे हैं बल्कि वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए केवल और केवल नियोजित शिक्षकों को एकजुट होने की बात कर रहे हैं. अगर आप ही चाहेंगे तो अपने संघ के नेताओं के ऊपर दबाब बनाकर इनको एक मंच पर लाने के लिए झुका सकते हैं. आप शिक्षक ने ही हमें स्कूली दिनों में पढ़ाया है कि “एकता में ही बल है”. बस हम उसी को स्मरण करना चाहते हैं. याद रखिये दुश्मन बहुत ताकतवर है. उनके पास सत्ता है, पुलिस है, कानून है, ताकत है और हमारे पास केवल आप मजदूर यानि शिक्षकों की एकता है।






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