नदियों को विकसित करने की जरूरत

संजय जोशी
केन्द्र सरकार को उत्तर प्रदेश सरकार से कहना चाहिये की वह गंगा की तर्ज पर यमुना को भी विकसित करने का योजना बनाये यह इसलिये भी जरूरी है कि अगर यह काम हो जाता है तो उत्तर प्रदेश के कई लाख बेरोजगार इस काम में रोजगार पा सकेगें । इसके लिये कुछ खर्च करने की जरूरत भी नही है लोग खुद विकास का अलख जगायेंगे और सरकार को भी भारी राशि का मुनाफा टैक्स के रूप में होगा।इसी तरह मप्र में नर्मदा का किनारा व अन्य राज्यों की प्रमुख नदियों के किनारे को संरक्षित किया जा सकता है । इससे एक ओर जहां पर्यावरण ठीक होगा वही दूसरी ओर प्रदूषण से भी निजात मिलेगी।
देखा जाय तो उप्र में यमुना का किनारा 990 किमी तक है और आस पास की जमीन हरियाली से पूर्ण है इसी तरह देश के कई हिस्से है जहां इसी तरह की हरियाली है। यदि इस नदी के दोनों तरफ हाइवे बनाया जाय तो वह प्रदुषण से मुक्त होगा और कम से इस किनारे से जुडे कई लाख लोगों को रोजगार देगा क्योंकि जब लोग हाइवे पर चलेगें तो खाये पियेगें भी ,गाडियों की मरम्मत भी होगी । स्वस्थ पर्यावरण होने के कारण लोगों को बीमारी से निजाद मिलेगा और शांत मन से लोग यात्रा के साथ साथ पर्यावरण का आनंद ले पायेगें। नदी के भीतर गहराई होने के कारण स्टीमर चलाई जा सकती है और वह माल ढुलाई के साथ साथ यात्रियों को भी गतंव्य जगह तक पहुचा सकेगी। इसके अलावा मत्सय पालन का काम हो सकता है , गोशाला बनायी जा सकती है। हाइवे के दोनों तरफ फलदार वृक्ष को लगाकर फसल तैयार की जा सकती है और पर्यटक को आर्कषित कर आय का साधन भी बनाया जा सकता है।
दूसरी सबसे बडी बात यह है कि जिन किनारों पर हरियाली नही है वहां सोलर प्लांट लगाकर बिजली पैदा की जा सकती है । इससे एक ओर जहां सौन्दर्य को बढावा मिलेगा वहीं देश को बिजली भी मिलेगी। जमीन भी जो खाली पडी है वह काम में आयेगी। इस काम में भी लाखों लोग लगाये जा सकते है और बिजली का लाभ लोगों तक पहुंच सकता हैं। दूसरी बात यह है जमीनों पर भी फसल तैयार हो सकती है बांस के पेड ,बबूल के पेड व झाड वाले पेड लगाये जा सकते है। जिससे सरकार को आय की प्राप्ति हो सकती है। सबसे बडी बात की पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है जिससे उस हिस्से के अलावा अन्य देश के हिस्सों को भी लाभ मिल सकता है। इन किनारों पर तालाबों को विकसित किया जा सकता है जहां वर्षा जल को संरक्षित कर फौब्बारा व कृतिम झील बनायी जा सकती है जैसे कि बग्लौर में वृन्दावन गार्डन है।
तीसरी बात यह है कि हर राज्य के पास अपना फिल्म सिटी होना चाहिये और यह क्षेत्र उसे विकसित करने में मदद करेगा , इसका एक कारण यह भी है कि जिस प्रदेश का कलाकार अपनी पहचान देश स्तर पर बनाता है वह चाहता है कि जिस प्रदेश का है वहां के लोग भी आगे आयें। इस तरह की फिल्म सिटी बनाने के लिये सरकार को पैसे नही लगाने होते , जमीन मुहैया करानी पडती है इसके बाद लोग उसे खुद विकसित कर सरकार को टैक्स देने लगते है। लोगों को रोजगार मिलता है और प्रतिभायें आगे आती है। क्योंकि फिल्म सिटी रहती है तो कलाकार भी जूनियर तौर पर चाहिये और जूनियर आटिस्ट को कोई अपने साथ नही लेता वहीं से लेता है जहां फिल्म सिटी होती है।यह आय का अच्छा साधन है और इसे सरकार को करना चाहिये।
हैदराबाद जिसकी आबादी दस लाख के आस पास है वहां अपनी फिल्म सिटी है , मद्रास से फिल्में बनती है , कनाटक में बनती है और खूब चलती है । वहां के कलाकार निरंतर आगे बढ रहे है लेकिन उप्र ,मप्र व बिहार के लोग पीछे है । कला के क्षेत्र में क्षितिज पर होने के बावजूद अभी तक विस्तार नही पा सके। इनमें अगर फिल्म सिटी बनायी गयी होती तो लाभ मिलता लेकिन प्रतिनिधियों ने इस पर ध्यान न देकर स्मारको पर ध्यान दिया । जिसके कारण यह पीछे रह गया। अगर इन राज्यों में फिल्म सिटी बनती है तो यहां की प्रतिभा का विकास होगा । इस पर सरकार को ध्यान देते हुए काम करना चाहिये।






Comments are Closed

Share
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com