जब तक जाति-धर्म पर वोट पड़ेंगे, किसानों की सुध कोई नहीं लेने वाला

डा. सुरजीत कुमार सिंह
किसान आत्महत्या आज देश के सामने सबसे बड़ा प्रश्न है। जब भी कोई किसान आत्महत्या करता है, तो एक मेहनतकश इंसान बहुत ही पीड़ा में, अपने जीवन को समाप्त करता है । काश कि हमारे राजनेता और अधिकारी, उस किसान आत्महत्या के बारे में समझ पाते । आगे आने वाले दिनों में भारत में किसान हाशिए पर चले जाएंगे। क्योंकि देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में, जिले की जिला पंचायतों में, क्षेत्र के विकास खंडों में आपके द्वारा लखपति और करोड़पति जनप्रतिनिधि चुने जा रहे हैं । किसी समय देश के अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि आय से हुआ करता था । लेकिन अब भारत की अर्थव्यवस्था में, उसकी जीडीपी में खेती किसानी का हिस्सा निरंतर घटता जा रहा है और किसान हाशिए पर चले जा रहे हैं । यही हालात रहे तो एक तरफ मौसम की मार है, दूसरी तरफ बाढ़ , बारिश , अकाल , सिंचाई की समस्या और धरती के बढ़ते तापमान के कारण वाटर लेवल का नीचे चला जाना किसानी समस्याओं को बहुत बढ़ा देता है।
जब तक भारत का किसान चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का हो, किसी भी क्षेत्र का रहने वाला हो, जब तक वह जाति, धर्म, क्षेत्र और आर्थिक प्रलोभन के आधार पर वोट देकर सरकार बनाता रहेगा । तब तक इस देश में किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं होगा । भारत के किसानों को एक बहुत बड़ा व्यापक आंदोलन करना होगा। लेकिन दुर्भाग्य हमारे देश का कि भारत में राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी किसान यूनियन बना दी है। जो कि सरकारों के बदल जाने के हिसाब से अपनी प्रतिबद्धताएं तय करती हैं। जैसे कि अभी मध्यप्रदेश में मंदसौर की घटना में भारतीय जनता पार्टी की किसान यूनियन इस घटना पर इतनी अधिक रोष व्यक्त नहीं कर रही है। जितना की दूसरी किसान यूनियन कर रही है। हमारे देश में किसानों की समस्याओं को लेकर हमेशा से ही संकट रहा है। पहले देश में अकाल पड़ते थे, जमीन की सिंचाई की समस्या थी, उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध नहीं थे, बेहतर कृषि उपकरण नहीं थे और कृषि उपज का उचित मूल्य भी ना मिलना कारण थे । लेकिन अब ऐसी समस्या नहीं है।

(डॉ सुरजीत कुमार सिंह, प्रभारी निदेशक, बौद्ध अध्ययन केन्द्र, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र)
अब आप किसी भी तरीके से किसानी कीजिए लेकिन कृषि आज घाटे का ही सौदा है। यह हमारे किसान भाइयों ने नहीं सोचा है, सोचा है तो फिर उस पर बहुत ही शांति से, तरीके से विचार नहीं किया है। आज सबसे बड़ी समस्या है हमारे देश के और राज्यों के कृषि मंत्रालयों की है । जहां पर देश की सरकार और राज्यों की सरकारें कृषि मंत्रालय को सबसे गया गुजरा मंत्रालय मानती है । और वहां पर जो नौकरशाह तैनात किए जाते हैं। वे नौकरशाह जोकि आराम करने के लिए जाते हैं या उनको दंडित करने के लिए कृषि विभाग भेज दिया जाता है । हमारे देश में कृषि अनुसंधान को और उसके वैज्ञानिकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। कोई मान सम्मान नहीं है । तब फिर किसान की हैसियत ही क्या है । किसान इस देश का अशिक्षित है , कम पढ़ा लिखा है, अनपढ़ है, निरक्षर है , वह गूंगा है , वह विकलांग है। वह अपने घर परिवार की समस्याओं में निरंतर उलझा रहता है। (डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, वर्धा स्थित महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि के डा. भदंत आनंद कौशलयायन बौद्ध अध्यन केंद्र के प्रभारी निदेशक हैं)
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