छत्तीसगढ़ में बड़ी राजनीति कर गए नीतीश बाबू !
रुचिर गर्ग
हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब परसतराई में शराब का विरोध करते हुए शराबबंदी की बात की और साथ में यह भी कहा कि ये मेरी राजनीतिक यात्रा नहीं है, तब वह जानते थे कि छत्तीसगढ़ में आज शराबबंदी बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. नीतीश कुमार ने बिहार का चुनाव एनडीए के खिलाफ लड़ा था. कांग्रेस बिहार में आज उनकी राजनीतिक सहयात्री है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी का खुला समर्थन करने के बाद से यह चर्चा होने लगी थी कि क्या नीतीश एनडीए के नजदीक जा रहे हैं? चर्चा यह भी थी कि क्या नीतीश महागठबंधन की राजनीति में खुद को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में प्रस्तुत करने की रणनीति पर चल रहे हैं? इन चर्चाओं के बीच नीतीश कुमार की छत्तीसगढ़ यात्रा पर सबकी नजरें थीं. वे सामाजिक कार्यक्रम में आए थे, जिसके मंच पर पूर्ण शराबबंदी का बड़ा सा बैनर लगा था. उनके साथ बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी थे, वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के घर लंच पर गए और फिर बीजेपी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी उनके निवास पर चाय पर मिले. लगा कि नीतीश ने राजनीति से दूरी रखी, लेकिन दरअसल नीतीश संतुलन साधते हुए भी बड़ी राजनीति कर गए.
नीतीश कुमार ने जब छत्तीसगढ़ आने का निमंत्रण स्वीकार किया था तब वे जानते थे कि शराब बंदी को लेकर कुर्मी समाज के जिस सामाजिक मंच पर उन्हें बोलना है उसका राजनीतिक संदेश क्या होगा? नीतीश कुमार जानते थे कि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी शराब नीति, शराब के धंधे के सरकारीकरण की नीति, को लेकर विपक्ष के निशाने पर हैं. वे यह भी जानते थे कि छत्तीसगढ़ में शराबबंदी गैरराजनीतिक मुद्दा नहीं है, हो भी नहीं सकता, फिर भी वे शराब के खिलाफ इस कार्यक्रम में ना केवल आए बल्कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के घर लंच का न्यौता भी स्वीकार किया. इतना ही नहीं अपने साथ अपने जिस सहयोगी मंत्री अशोक चौधरी को लेकर आए वे बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. राजनीतिक प्रेक्षक इसे रेखांकित तो करना ही चाहेंगे, खासतौर पर तब जब अपने भाषण में उन्होंने अशोक चौधरी का जिक्र करते हुए कहा कि ये नहीं आते तो मैं (नीतीश कुमार ) भी नहीं आता. स्पष्ट है कि ना तो नीतीश कुमार छत्तीसगढ़ में अराजनीतिक थे और ना उनका संदेश राजनीति से दूर था. बल्कि नीतीश कुमार शराब के खिलाफ मुहिम को हवा ही दे गए. उनकी यह यात्रा बीजेपी से जुड़े उन सामाजिकजनों के लिए जरूर असुविधाजनक रही होगी, जो अपनी सरकार की शराब नीति के कारण शराब के खिलाफ किसी आंदोलन या कार्यक्रम का मुखर हिस्सा नहीं हो सकते थे. कार्यक्रम कुर्मी समाज का था इसलिए सांसद रमेश बैस या विजय बघेल जैसे पार्टी नेता इस मंच से दूरी तो नहीं बना सकते थे, लेकिन इस मंच से निकले संदेश को पढ़ा तो उन्होंने भी होगा.
हाँ! मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से चाय पर मुलाकात कर नीतीश कुमार ने अपनी ओर से सत्ता के शिष्टाचार का पालन भरपूर किया, लेकिन इस बारे में भी उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जब वे डॉ. रमन सिंह से मिलेंगे तो उन्हें शराबबंदी के फायदे बताएंगे. और खुद रमन सिंह भी कह चुके हैं कि उन्होंने बिहार मॉडल का अध्ययन करवाया है. इसलिए यहाँ मतभेद भी कुछ नहीं था.
नीतीश कुमार देश के ऐसे मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं, जिनके हर बयान, हर कदम पर इन दिनों दिलचस्पी के साथ नजर रखी जा रही है. उनकी राजनीति के प्रेक्षक मानते हैं कि उनका छत्तीसगढ़ दौरा भले ही सधा हुआ नजर आता हो, लेकिन एक नजर में इसका लाभ, राजनीतिक लाभ, तो बीजेपी विरोधी राजनीति के खाते में जाता दिखता है. इसे राष्ट्रीय मंचों पर तो ऐसे ही महसूस किया जाएगा. हो सकता है कि नीतीश कुमार 2019 में महागठबंधन की तैयारी के मद्देनजर छत्तीसगढ़ में जनता दल यू को रोपने की तैयारी कर रहे हों, लेकिन राज्य की जमीन अभी इसके लिए तैयार नहीं दिखती. वे बीजेपी प्रदेश में बीजेपी सरकार की एक घोषित नीति के खिलाफ संदेश दे गए. हालांकि इस सन्देश को नरेंद्र मोदी से उनके ताजे रिश्ते से जोड़ कर देखना तो शायद दूर की कौड़ी होगी. लेकिन इसे इस रूप में जरूर देखना चाहिए कि गुजरात में हार्दिक पटेल के आंदोलन का समर्थन करना हो या छत्तीसगढ़ में शराब विरोधी मुहिम को ताकत देना हो, नीतीश की आकांक्षाएं देश का चेहरा बनने की जरूर हैं. और इसके लिए शराब के विरोध से अच्छा मुद्दा क्या होगा? एक बात और – प्रेक्षकों की नजर में उनका यह दौरा भूपेश बघेल के लिए भी संजीवनी साबित हुआ. राजनीतिक तौर पर भी और कुर्मी समाज के एक दिग्गज नेता के रूप में भी. (लेखक नवभारत, रायपुर के संपादक हैं, यह आलेख नवभारत से साभार लिया गया है)
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