बिहार के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन हत्या के एक मामले में 11 साल जेल में रहने के बाद, ज़मानत पर रिहा हो गए हैं. पटना हाई कोर्ट ने शहाबुद्दीन को राजीव रोशन हत्या मामले में ज़मानत दी है. जमानत मिलने के बाद शहाबुद्दीन ने कहा, “सबको पता है कि मुझे फंसाया गया था. अदालत ने मुझे क़ैद किया था और अदालत ने ही मुझे रिहा किया है.” लेकिन बिहार में विपक्षी दल भाजपा ने नीतीश सरकार की कड़ी आलोचना की है और आरोप लगाया है कि यदि इस मामले में ट्रायल शुरू हो गया होता तो ज़मानत न मिलती. उधर पीड़ित परिवार के सदस्य सहमे हुए हैं और उन्होंने मीडिया से कहा है- “इनकी सरकार है, जीवित रहेने देंगे तो रहेंगे, नहीं तो क्या कर सकते हैं…?” शहाबुद्दीन लालू यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. क्या शहाबुद्दीन की रिहाई से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि पर कोई असर पड़ेगा? पढ़ें- ‘द टेलीग्राफ़’ (पटना) के सहायक संपादक नलिन वर्मा की राय- “शहाबु्द्दीन की रिहाई से बिहार की राजनीति में कोई बड़ा भूचाल नहीं आने वाला है.” लेकिन इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ज़रूर असहज हो गए होंगे, क्योंकि उन्होंने बीजेपी के साथ रहकर एक छवि बनाई थी और वो सुशासन बाबू कहे जाते थे. कुछ ही महीने पहले बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण के साथ सरकार बनी है. मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जेल से निकलते ही लालू प्रसाद यादव की प्रशंसा की और कहा कि लालू ही हमारे नेता हैं, उन्होंने नीतीश कुमार की आलोचना भी की.
लेकिन लालू प्रसाद यादव शहाबुद्दीन के साथ कहां तक खड़े होंगे, इसे शहाबुद्दीन को तय करना होगा. जेल से निकलकर शहाबुद्दीन ने अपने नेता की सरपरस्ती में बहुत कुछ कहा है और आरजेडी के कुछ लोग इससे उत्साहित होकर शहाबुद्दीन के साथ खड़े भी हो सकते हैं. लालू ख़ुद ‘एम-वाई’ (मुस्लिम- यादव) समीकरण का नेतृत्व करते हैं और शहाबुद्दीन का क़द ज्यादा बड़ा होना, लालू को ही हज़म नहीं होगा. शहाबुद्दीन की एक छवि है बाहुबली वाली उसे राजनीतिक पार्टियां और बड़े-बड़े नेता इस्तेमाल करते हैं. बिहार में ऐसे बहुत सारे नाम हैं, इसलिए मैं नहीं मानता कि शहाबुद्दीन के बाहर निकलने से कोई बड़ा राजनीतिक भूचाल आ जाएगा.
लालू प्रसाद के पास 81 सीटे हैं और वो बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता हैं. लालू के पास पहले भी बहुत वोट थे, लेकिन सीटें 24 ही थीं. इसलिए वो अकेले कुछ नहीं कर सकते, यानी उनकी ताक़त भी नीतीश से जुड़ी हई है. अब लालू अपने बच्चों लिए राजनीति कर रहे हैं और नीतीश को छोड़ने से उन्हें बहुत ज़्यादा कुछ हासिल होने वाला नहीं है. दूसरी तरफ जब नीतीश कुमार, बीजेपी के साथ थे, तो क़ानून व्यवस्था बेहतर थी. इस नए गठबंधन के आने के बाद से बिहार में क़ानून व्यवस्था बिगड़ रही है, इसलिए शहाबुद्दीन के रिहा होने से नीतीश असहज होंगे. लेकिन नीतीश के पास भी फिलहाल कोई रास्ता नहीं है और जिस तरह से बीजेपी से उनका रिश्ता टूटा है, अभी उसमें वापसी की भी संभावना नहीं दिख रही है. इसलिए नीतीश को अभी इसी स्थिति में रहना पड़ेगा, फिलहाल उनके पास कोई रास्ता नहीं है. (with thanks from bbchindi.com)
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