बाल विवाह के खिलाफ जनजागरण छेड़ेगा बाल आयोग

नई दिल्ली। भारत भले ही आजादी की 70वीं वर्षगांठ की दहलीज पर पहुंचकर अपने विकसित होने का डंका दुनियाभर में बजाने को चल निकला हो। लेकिन इसके सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में मौजूद बाल विवाह की प्राचीन कुरीति विकास की इस चमक-दमक को साफ फीका करती हुई नजर आ रही है। इसी की वजह से दशकों बीत जाने के बाद भी देश के कई हिस्सों में बड़ी तादाद में कम उम्र में लड़के, लड़कियों का बाल विवाह किया जा रहा है। जबकि कानूनन यह अपराध है। लेकिन यहां तो कानून लागू करवाने वाले से लेकर पालन करने वाले तक को कोई चिंता ही नहीं है। इसे देखते हुए देश में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था राष्टÑीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बाल विवाह के मामले पर 18 अक्टूबर को एक ‘राष्टÑीय कार्यशाला’ करने का निर्णय लिया है। इसमें देशभर के 50 से ज्यादा गैर-सामाजिक संगठन, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि और संयुक्त राष्टÑ संघ (यूएनओ) के महिला विंग के प्रतिनिधि और प्रसिद्ध बाल विशेषज्ञ शामिल होंगे।
बाल आयोग के सदस्य यशवंत जैन ने बताया कि यह पहला ऐसा मौका है जब राष्टÑीय बाल आयोग ने इस नकारात्मक सामाजिक प्रथा के खिलाफ ब्लॉक से लेकर केंद्र स्तर तक लोगों में जनजागरण लाने का फैसला लिया है। इससे पहले कमीशन की ओर से इस मामले को कभी नहीं उठाया गया था। आयोग की स्थापना वर्ष 2007 में हुई थी। उसके बाद करीब 9 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर आयोग की तरफ से कोई सार्थक पहल नहीं की गई। कार्यशाला में शामिल बिंदुआें में एक बिंदु यह भी रहेगा कि जिसमें आयोग उन राज्यों के एससीपीसीआर के अधिकारियों के साथ व्यापक चर्चा करेगा जहां बाल विवाह की समस्या ने विकराल रूप धारण किया हुआ है। आयोग उन्हें बताएगा कि वो ऐसे मामलों में स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कैसे कार्रवाई करे।
वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से देश के 13 राज्यों के 70 जिलों में बड़ी तादाद में बाल-विवाह के मामले देखने को मिल रहे हैं। इसमें हरियाणा, मध्य-प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तर-प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम, पश्चिम-बंगाल, कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, अरूणाचल-प्रदेश और असम शामिल हैं। बाकी राज्यों की तुलना में राजस्थान में सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले देखने को मिल रहे हैं। 2016 की जनगणना के हिसाब से राजस्थान में 2.56 फीसदी लड़कियों और 4.69 फीसदी लड़कों की ही सही उम्र में शादी होती है। देश में बाल विवाह को रोकने के लिए ‘प्रोहिबशन आॅफ चाइल्ड मैरेज एक्ट-2005’ कानून है। लेकिन इसकी पालन होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। कानून के हिसाब से देश में लड़के की शादी 21 साल और लड़की की 18 वर्ष के बाद की जानी चाहिए।

 






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