‘अपनों’ से ही महफूज नहीं ‘आधी आबादी’ की आबरू

हर्र्षवर्धन प्रकाश
इंदौर। देश में महिलाओं की अस्मत के सबसे बड़े दुश्मन कोई गैर नहीं, बल्कि उनके सगे..संबंधी और जान..पहचान के लोग बने हुए हैं। समाज में नैतिक गिरावट और मानसिक विकृतियों के खतरनाक स्तर पर पहुंच जाने की ओर इशारा करते हुए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकडेÞ बताते हंैं कि वर्र्ष 2015 में बलात्कार के 95.5 प्रतिशत पंजीबद्ध मामलों में आरोपी पीड़ित महिलाओं के परिचित थे। एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट ‘भारत में अपराध 2015’ के मुताबिक देश में पिछले साल भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 376 के तहत बलात्कार के कुल 34,651 मामले दर्ज किये गये। इनमें से 33,098 मामलों के आरोपी पीड़ित महिलाओं के परिचित थे यानी हर 100 मामलों में से 95 में महिलाओं के जानने वालों पर ही उन्हें हवस का शिकार बनाने के इल्जाम लगाये गये। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में बलात्कार के 488 मामलों में महिलाओं के साथ उनके दादा, पिता, भाई और बेटे ने कथित तौर पर दुष्कर्म किया, जबकि 891 प्रकरणों में उनके अन्य नजदीकी संबंधियों पर उनकी अस्मत को तार-तार करने के आरोप लगे।
पिछले साल 1,788 मामलों में बलात्कार के आरोपी पीड़ित महिलाओं के रिश्तेदार थे, जबकि 9,508 मामलों में उन्होंने अपने पड़ोसियों पर दुष्कृत्य की प्राथमिकी दर्ज करायी। नियोक्ताओं और सहकर्मियों पर 557 मामलों में बलात्कार का आरोप लगाया गया। महिलाओं के लिव इन जोड़ीदारों, पतियों और पूर्व पतियों पर 705 मामलों में दुष्कृत्य के प्रकरण पंजीबद्ध हुए। शादी का वादा कर महिलाओं से बलात्कार के 7,655 मामले दर्ज किये गये। वर्ष 2015 में बलात्कार के अन्य 11,506 मामलोें में भी आरोपी पीड़ित महिलाओं से किसी न किसी तरह परिचित थे।
वरिष्ठ महिला अधिकार कार्यकर्ता और मध्यप्रदेश महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. सविता इनामदार कहती हैं, ‘यह बात एक सभ्य समाज के लिए बेहद शर्मनाक है कि महिलाओं से उनके सगे संबंधी भी बलात्कार कर रहे हैं। हमारा समाज लड़कियों और महिलाओं को तो तथाकथित मर्यादा में रहने के ढेरों नैतिक उपदेश देता है। लेकिन ज्यादातर लड़कों और पुरच्च्षों को इस मामले में खुली छूट दे जाती है। इस स्थिति में बदलाव कर लड़कों और पुरुषों को महिलाओं के प्रति ज्यादा जिम्मेदार बनाया जाना चाहिये। उन्होंने सुझाया कि बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिये कानून को और कड़ा बनाये जाने की जरूरत है। इसके साथ ही, अदालतों को बलात्कार के मुकदमों मेें जितनी जल्दी हो सके सुनवाई पूरी करनी चाहिये और फटाफट फैसले सुनाने चाहिये।
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