बिहार में किसके संरक्षण में फलफूल रहा अवैध हथियार का धंधा

gunसंजीव कुमार सिंह

बिहार में अवैध हथियार बनाने का धंधा किसके संरक्षण में फलफूल रहा है। यह एक यक्ष प्रश्न है? शायद इसका जबाब न तो बिहार पुलिस के पास है और न ही सरकार के पास है। कारण कि इस अवैध धंधे पर पूर्णतया अंकुश लगा पाने में प्राय: अबतक की सभी सरकारें विफल रहीं है। हां एक बात है कि इन अवैघ हथियारों की बरामदगी में बिहार पुलिस का योगदान सराहनीय रहा है। सूत्र बताते है कि अवैध गन फैक्टी से हजारों हथियार अब भी सप्लाई होते है। विगत दिनों भी पुलिस ने अवैध रूप से हथियार बनाने वाले एक गन फैक्टी का भंडाफोड़ किया है। 2001 से लेकर 2016 के मई माह तक 570 अवैध हथियार बनाने वाले अड्डों का उद्भेदन किया गया है।
आंकड़ें बताते है कि वैसै अवैध हथियार जो फायर किए गए है। तकरीबन 38523 की बरामदगी इन वर्षो में की गई है। जबकि नियमित चलाए जाने वाले हथियार की बरामदगी भी 2183 के करीब है। तकरीबन 6000 बम की बरामदगी हुई है। आंकड़े बताते है कि बिहार में आर्म्स बनाने का गोरखधंधा परवान है। इस पर पूर्णतया रोक लगा पाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इन बंदूकों में प्रयोग में लाए जाने वाली गोली की मात्रा भी तकरीबन दो लाख के करीब है। अब आप अपने आप में चिंतन करें की अपराध को रोक पाना कितना आसान है, जब सूबे में अवैध गन बनाने के अड्डों को रोक पाने में सरकार विफल हो रहीं हो तो अपराध कम करने का ढ़िढ़ौरा पीटने से भला क्या होने वाला है।
हर साल इतना बरामद
आंकड़े बताते है कि अपराध के बाद अपराधियों को पकड़ने के दौरान हथियारों की बरामदगी हर वर्ष दो से तीन हजार के करीब है। 2001 में 2992, 2002 में 2574, 2003 में 2440, 2004 में 2692, 2005 में 3516, 2006 में 2999, 2007 में 2264, 2008 में 2110, 2009 में 2356, 2010 में 2272, 2011 में 1848, 2012 में 2227, 2013 में 1981, 2014 में 2243, 2015 में 3169, 2016 में अब तक 840 हथियारों की बरामदगी की गई है।  सबसे आश्चर्य जनक पहलू है कि यह सभी अपने क्षेत्र के ही बने हथियार है, जो अपराध की घटना को अंजाम देने में प्रयोग में लाए जा रहे है।
क्या यह पुलिस की बहादुरी है?
हथियारों की बरामदगी बिहार पुलिस की काबिलियत को दर्शाती है, लेकिन बहादुरी तब होगी जब इस पर पूरी तरह से अंकुश लगे। वर्तमान सरकार का यह तीसरा कार्यकाल है। सोलह वर्षो का यह आंकड़ा अपने आप में सबकुछ कह रहा है कि अब बिहार की वर्तमान सरकार को इस बारे में सोचना है।






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