बिहार में सुशासन पर दाग : सीएम नहीं डरते पुलिस अफसर!

bihar-crime-आज बिहार अगर अपराधियों और दुराचारियों की शरणस्थली बना नजर आ रहा है तो इसके सबसे बड़े दोषी पुलिसवाले हैं. विपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार कहते, बिहार का पुलिस प्रशासन कलम घिस्ससुओं का एक गिरोह नजर आता है. वे बड़ी बेशर्मी से आंकड़ों के पीछे छुप जाते हैं.
अमिताभ श्रीवास्तव/पटना
एक महिला से दुराचार की कोशिश के बाद उस पर जानलेवा हमला होता है और बाद में उसकी मौत हो जाती है. यह घटना अगर धरती के किसी भी कोने में और किसी भी युग में घटती तो प्रशासन का पसीना छूट जाता और हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस धरती-आकाश एक कर देती. लेकिन बिहार की बात अलग है. यहां किसी भी युग में ऐसा शायद ही हो पाए.
एक बार फिर यह बात बीते दिनों में साबित हो गई, जब आरजेडी विधायक सरोज यादव की बहन शैल देवी की हत्या के मुख्य आरोपी आॅटोचालक मिथिलेश कुमार और उसके सहयोगी संतोष सिंह ने आराम से आरा की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जबकि भोजपुर के पुलिसवाले उनकी तलाश में अंधेरे में हाथ मारते रह गए. इस घटना के तीन अन्य आरोपी अब भी फरार हैं.
दोनों आरोपियों ने शैल देवी की मौत के एक दिन बाद आत्मसमर्पण किया. शैल देवी आरजेडी विधायक सरोज यादव की इकलौती बहन थीं. शनिवार रात उनसे दुराचार की कोशिश की गई थी, जिसका विरोध करने पर उन पर हमला किया गया और तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई. भोजपुर में चंडी थाने के अंतर्गत केशोपुर निवासी 40 वषीर्या शैल देवी शनिवार को एक आयुर्वेद चिकित्सक के यहां से दवा लेकर घर लौट रही थीं, जब एक आॅटोरिक्शा में बैठे पांच लोगों ने उनसे छेडखानी की. उन्होंने यह कहते हुए विरोध किया कि वे सत्ताधारी दल के विधायक की बहन हैं. इसके बाद हमलावरों ने लोहे की एक छड़ से उनके सिर पर वार किया और आॅटो से बाहर फेंक दिया. पटना से 60 किमी दूर भोजपुर के जिला मुख्यालय आरा तक जाने वाली सड़क पर कुछ राहगीरों ने उन्हें पड़ा पाया. उनके सिर से खून रिस रहा था. आनन-फानन में उन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से पटना भेज दिया गया. तीन बच्चों की मां शैल ने मौत से तीन दिनों तक जंग लड़ी. अंतत: मंगलवार को उनका निधन हो गया.
एक वरिष्ठ आइएएस अफसर कहते हैं, राज्य में होने वाली हर आपराधिक घटना के लिए पुलिस पर दोष मढ़ना ठीक नहीं है, लेकिन विधायक की बहन के साथ जो हुआ, उसे रोका जा सकता था, अगर पुलिसवाले नियमित गश्त पर होते. बिहार में पुलिस प्रशासन में जवाबदेही का घोर अभाव है. अफसर के मुताबिक, आला अधिकारियों से भी कोई यहां सवाल नहीं करता.
सरोज यादव ने जब बिहार के पुलिस प्रशासन पर सवाल उठाया तो ऐसा लगा कि वे आम आदमी के भय को स्वर दे रहे हों. उन्होंने आक्रोश में कहा, मेरी बहन पर हमला इस बात का साफ सबूत है कि बिहार में कानून व्यवस्था चरमरा चुकी है. अगर ऐसा हादसा एक विधायक की बहन के साथ हो सकता है तो एक आम आदमी की जिंदगी कितनी असुरक्षित होगी. आज बिहार अगर अपराधियों और दुराचारियों की शरणस्थली बना नजर आ रहा है तो इसके सबसे बड़े दोषी पुलिसवाले हैं. विपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार कहते, बिहार का पुलिस प्रशासन कलम घिस्ससुओं का एक गिरोह नजर आता है. वे बड़ी बेशर्मी से आंकड़ों के पीछे छुप जाते हैं.
नए साल के आरंभ में बिहार के पुलिस महानिदेशक पी.के. ठाकुर ने पिछले तीन साल के अपराध संबंधी आंकड़ों का हवाला देते हुए इस बात का खंडन किया था कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति कमजोर है.
उस वक्त ठाकुर ऐसी चीज का बचाव कर रहे थे, जो तकरीबन असंभव थी. विधानसभा चुनावों के बाद अपराध में जो इजाफा हुआ था, उस पर विपक्ष ने सरकार की तीखी आलोचना की थी. ऐसा नहीं है कि कि अकेले विपक्ष ने ही बिहार के पुलिस प्रशासन के नाकारेपन की ओर उंगली उठाई थी, बल्कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद पुलिस व्यवस्था पर अपनी नाखुशी जाहिर की थी, जबकि उनकी पार्टी सत्ताधारी महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक है.
हालिया दो कुख्यात घटनाओं में बिहार पुलिस का जो रवैया रहा है, उसने उसकी लापरवाही का खुला सबूत दे दिया है. एक मामले में खुद एक नेता पर दुराचार का आरोप है तो दूसरा मामला बलात्कार से जुड़ा है.
जनवरी में जब जेडी(यू) के निलंबित विधायक सरफराज आलम से औपचारिक जवाब-तलब किया गया और संक्षिप्त हिरासत में लिया गया था, उसके बाद पुलिस ने दो अन्य आरोपियों-उनके सुरक्षाकर्मी और मित्र-के साथ निजी मुचलके पर उन्हें छोड़ दिया था. आलम पर आरोप था कि उन्होंने 17 जनवरी को डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस में एक महिला यात्री का यौन उत्पीडऩ किया था. दूसरी घटना में आरजेडी के नवादा से निलंबित विधायक राज बल्लभ यादव को पुलिस एक महीने तक गिरफ्तार नहीं कर सकी, बाद में उन्होंने खुद आत्मसमर्पण किया. उनके ऊपर एक अवयस्क के बलात्कार का आरोप था.
बिहार में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के मुताबिक, आंकड़े खुद अपनी कहानी कह रहे हैं. बिहार पुलिस हाल में हुई सनसनीखेज हत्याओं के मुख्य आरोपी को पकड़ने में नाकाम रही है. वसूली की रकम दिए जाने से इनकार करने पर दो इंजीनियरों की हत्या करने वाले मुकेश पाठक से लेकर पटना के एक जौहरी की हत्या के मास्टरमाइंड दुर्गेश शर्मा तक, सभी अहम अपराधी फरार चल रहे हैं. बीजेपी नेता विश्वेश्वर ओझा की हत्या के दो आरोपी भी फरार हैं.
अकेले विपक्ष ही पुलिस पर लापरवाही का आरोप नहीं लगा रहा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब कानून व्यवस्था की समीक्षा के लिए 28 दिसंबर को पुलिस के आला अधिकारियों से मुलाकात की तो उन्होंने उनकी बनाई पावर पॉइंट प्रस्तुति को देखने से इनकार कर दिया. नीतीश ने साफ कहा था कि वे चौकस हो जाएं.
एक वरिष्ठ आइएएस अफसर की मानें तो दिक्कत यह है कि मुख्यमंत्री की विनम्रता अधिकारियों में भय पैदा नहीं कर पा रही. इसलिए फिलहाल सलाह यही है कि अगर आप महिला हैं और बिहार में रह रही हैं तो बेहतर होगा कि अकेले घर से बाहर न निकलें, जब तक कि नीतीश कुमार अपने पुलिस महकमे को दुरुस्त नहीं कर देते. from indian today






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