Friday, July 24th, 2015

 

बस जाति पूछो 'नेता' की

प्रसिद्ध संत कबिर कहते थे कि साधु की जाति नहीं होती। पहले राजनीति में आने वाले संत की तरह माने जाते थे। कबीर भी नहीं रहे। राजनीति में वह सेवा वाली भावना भी नहीं रही। अपने प्रदेश की राजनीति में जाति वैसे ही घुली मिली है जैसे  शरीर के नसों में रक्त का संचार होता है। भले ही समाज की शुरुआती दौर में जाति की मूल कल्पना समाज व्यवस्था के लिए की गई थी। लेकिन तब किसी को यह अहसास नहीं था कि कालांतर में यही जाति एक कैंसर कीRead More


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