वाह रे सुशासन ! माँगा वेतन तो मिला मुकदमा

वंशीधर ब्रजवासी.
बिहार में सुशासन है । चार दिनों से छपरा में अनशन पर बैठे साथियों की हालत बिगड़ गयी है । पूछने वाला कोई नहीं है । कई शिक्षिकाओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया है । पिछले दिनों हमने निदेशक प्रशासन सहित स्थानीय अफसरों का घेराव किया तो देख लीजिए सिरफिरे DEO अजीत सिंह ने हमसबों पर FIR के लिए आवेदन पुलिस को दिया है । अब इस स्थिति में यदि हम कलम के बदले हथियार की बात करेंगे तो जिम्मेवारी किसकी होगी ? ये पदाधिकारी और सरकार शिक्षकों को नक्सली बनाना चाहते हैं । बिहार दुनिया का पहला राज्य है जहां अपनी मजदूरी मांगने वालों पर मुकदमा किया जाता है । किसी की नजर में भले हीं यह व्यवस्था सुशासन दिखती हो मेरी नजर में तो यह तानाशाही की पराकाष्ठा है । मैं सोमवार को राज्यपाल और प्रधान मंत्री को ज्ञापन देकर यह मांग करूँगा कि आप शिक्षकों से जीने का अधिकार छीनना चाहते हैं तो संविधान के मौलिक अधिकार में आत्महत्या के अधिकार को भी शामिल कर दीजिए । शिक्षकों ने 33 माह से काम किया है । बिना वेतन वे कैसे जीते हैं ? वे रोज अपमान और भुखमरी झेल रहे हैं । यदि यह सरकार शिक्षकों को जीने नहीं देना चाहती है तो साफ साफ कहे कि शिक्षकों को आत्महत्या का अधिकार दे दिया गया है । मित्रों ! प्रतिदिन कहीं न कहीं हमारे नियोजित शिक्षकों की सड़क दुर्घटना में मौत होने की खबर मिलती है । विचार कीजिए इन मौतों के लिए सरकार जिम्मेवार है । वेतन के आभाव में शिक्षक मानसिक प्रताड़ना से पीड़ित हैं ।इस कारण वे विचलित रहते हैं और अफसरों और अन्य निरीक्षि पदाधिकारियों के डर से सड़कों पर ड्यूटी के चक्कर में भागम भाग झेलने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में दम तोड़ रहे हैं । इसलिय शिक्षकों की मौतों के लिए जिम्मेवार राज्य सरकार पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए । कल भी कटरा प्रखंड के हमारे दो साथी इस मास्टरी की नौकरी के चक्कर में मौत की नींद सो गए । हम ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं ।साथ हीं राज्य के सभी नेताओं और राजनैतिक पार्टियों से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील करता हूँ । 

अखबारों की खबरें चीख – चीख कर बयां कर रही हैं शिक्षकों का दर्द
सारण जिलान्तर्गत नगर पंचायत मढ़ौरा के 93 शिक्षकों को 31 माह से वेतन नहीं दिया गया ।परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 2 फ़रवरी को डी पी ओ स्थापना के समक्ष अनशन किया तो डी पी ओ ने जिलाध्यक्ष समरेंद्र बहादुरजी से लिखित समझौता कर आश्वस्त किया कि 22 फ़रवरी तक भुगतान कर देंगे लेकिन उनके वादे वादे हीं रह गए । आखिर वादे हैं वादों का क्या ?
डी पी ओ शायद भूल गए थे कि परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ ऐसे पदाधिकारियों से सख्ती से निपटना अच्छी तरह जानता है । 16 मार्च से संघ ने पुनः अनशन शुरू किया तो कायर और डरपोक डी पी ओ भागे फिर रहे है । डर से अपने कार्यालय में आने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही है । लगता है बचपन में माँ का नहीं बल्कि डिब्बे का दूध पीकर बड़े हुए हैं । पता चला कि वेतन भुगतान के लिए प्रति शिक्षक 40 हजार रु की मांग की गयी । जिन शिक्षकों को 31 माह से फूटी कौड़ी नसीब नहीं हुई उनसे पैसे की मांग करने वाला international भिखमंगा ही हो सकता है । ऐसे लोगों को अपंग बना कर भीख मांगने के लिए रेलवे स्टेशन पर बैठा देना चाहिये ।
संयोग से अनशनकारियों से मिलने शाम में मैं पहुंचा ही था कि पता चला कि छपरा में ही निदेशक प्रशासन RDDE, DEO तथा DPO स्थापना को छोड़कर अन्य सभी DPO के साथ बैठक कर रहे हैं । बस क्या था हमने सभी साथियों के साथ बैठक में उपस्थित सभी अधिकारियों का घेराव कर न्याय के लिए जिद ठान दी । घबराये अधिकारियों ने DM SP सबको सूचना देकर पुलिस बुलवाया किन्तु शिक्षकों के आक्रोश के आगे किसी की एक न चली ।विवश होकर निदेशक प्रशासन के आदेश पर DEO ने 24 घंटे के अंदर वेतन भुगतान का आदेश जारी किया । DEO की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच कमिटी बनायी गयी जिसे 48 घंटे में DPO स्थापना के विरुद्ध प्रपत्र क गठित कर निदेशक को सौंपना है ।निदेशक ने DPO स्थापना की उदासीनता की सार्वजनिक रूप से भर्त्सना की और कहा कि उन्हें निलंबित कर कड़ी कार्रवाई की जायेगी ।
हालांकि शिक्षकों ने निर्णय लिया है कि उनका वेतन उनके खाते में जाने तक अनशन जारी रहेगा । हम उनके निर्णय के साथ हैं । जल्द वेतन भुगतान नहीं हुआ तो आंदोलन और तेज किया जायेगा ।

(वंशीधर ब्रजवासी परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ, बिहार)
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