हिंदी के नाम पर अंग्रेजी का बोलवाला
प्रो.कृष्ण कुमार गोस्वामी
पेरिस विश्वविद्यालय, फ्रांस के एक संस्थान राष्ट्रीय प्राच्य भाषा एवं सभ्यता संस्थान (INALCO) ने विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से 14 सितंबर, 2016 से 16 सितंबर, 2016 तक अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन पेरिस में संस्थान के परिसर में किया। इसमें हिन्दी भाषाविज्ञान, हिन्दी साहित्य और विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण विषय रखे गए थे। इस सम्मेलन में लगभग 24 देशों के लगभग 120 हिन्दी विद्वान और विभिन्न विश्वविद्यालयों के हिन्दी अध्यापक पधारे थे। भारत, फ्रांस, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, मारिशस, टर्की, जापान, ईरान, दक्षिण कोरिया,ताजिकस्तान के अतिरिक्त यूरोप के जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, हंगरी आदि कई देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य और हिन्दी शिक्षण के विभिन्न पहलुओं पर प्रपत्र प्रस्तुत किए गए और चर्चा-परिचर्चा हुई। इस परिचर्चा में तरुण विजय, नरेंद्र कोहली, कमल किशोर गोयनका, कृष्ण कुमार गोस्वामी (भारत), हर्मन वॉन ओल्फन, पीटर हुक, तेज कृष्ण भाटिया (अमेरिका), विजय कौल,प्रदीप कुमार दास (दक्षिण कोरिया), पीटर फ्रिडलैंडर (आस्ट्रेलिया), लिंडमिला खोख्लोवा (रूस), कृष्ण कुमार झा (मारिशस), राम प्रसाद भट्ट (जर्मनी) आदि कई विद्वानों ने सक्रिय भाग लिया।
14 सितंबर 2016 को उद्घाटन सत्र में सम्मेलन के संयोजक प्रो. घनश्याम शर्मा ने सम्मेलन का परिचय देते हुए कहा कि हिन्दी आज वैश्विक स्तर पर पहुँच गई है इसलिए इसके विभिन्न पक्षों पर विचार करने और भावी योजना बनाने के लिए यह सम्मेलन अधिक उपयोगी होगा। संस्थान की अध्यक्षा प्रो. (श्रीमती)मेनयुल फ्रैंक ने अपने अध्यक्षीय भाषण फ्रेंच भाषा में देते हुए विद्वानों का स्वागत किया और हिन्दी तथा फ्रेंच भाषाओं के महत्व को बताया। फ्रांस में भारत के माननीय राजदूत श्री मोहन कुमार ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में हिन्दी की महत्ता पर अपने विचार रखे। भारत सरकार के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य श्री तरुण विजय और डॉ. कमल किशोर गोयनका ने भी हिन्दी सम्मेलन की प्रासंगिकता और महता पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
सम्मेलन कई दृष्टियों से अच्छा रहा। इससे हिन्दी के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप की जानकारी मिली। विदेशी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य पर जो शोध कार्य हुए अथवा हो रहा है,उसका परिचय प्राप्त हुआ। विदेशी विद्वान बड़ी लगन और परिश्रम से हिन्दी भाषा, साहित्य और शिक्षण के संदर्भ में जो कार्य कर रहे हैं, वह सराहनीय है। लेकिन सम्मेलन में प्रपत्र-वाचन अधिकतर अंग्रेजी भाषा में होना दु:खद था। सम्मेलन में लगभग 115 प्रपत्र पढ़ने का अनुमान है जिनमें दो-तिहाई प्रपत्र अंग्रेजी में ही पढ़े गए। इस सम्मेलन में जो सारांश-पुस्तिका वितरित की गई थी, उसके आँकड़ों के अनुसार 142 प्रपत्र प्राप्त हुए थे। इनमें 98 प्रपत्र अंग्रेजी में थे और 44 प्रपत्र हिन्दी में थे। सत्रों में अंग्रेजी का वातावरण मुख्य रूप से दिखाई दे रहा था। प्रपत्र-वाचन तो अधिकतर अंग्रेजी में था, चर्चा-परिचर्चा भी अधिकतर अंग्रेजी में हुई। आश्चर्य की बात है कि अधिकतर भारतीय विद्वान और उनमें भी भारतीय-अमेरिकन विद्वान अंग्रेजी में बोले और अधिकतर विदेशी विद्वान हिन्दी में बोले। इस संबंध में जब आयोजकों से बात हुई तो उनका उत्तर था कि यह हिन्दी का सम्मेलन नहीं है बल्कि भाषाविज्ञान, साहित्य और भाषा शिक्षण का सम्मेलन है। जब उनसे यह पूछा गया कि आपने तो हिन्दी सम्मेलन लिखा है और इसमें भाषाविज्ञान, साहित्य और भाषा शिक्षण की दृष्टि से केवल हिन्दी पर चर्चा हो रही है तो वे इधर-उधर हो गए। कई विद्वानों ने बताया कि उन्हें प्रपत्र अंग्रेज़ी में लिखने के लिए कहा गया था जबकि वे हिन्दी में अच्छी तरह लिख सकते थे। इस संबंध में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष को बताया गया कि आपके समक्ष हिन्दी सम्मेलन में अंग्रेज़ी में प्रपत्र पढे जा रहे हैं और आप इस बारे में कुछ नहीं कर रहे तो उन्होंने अपनी विवशता जताते हुए कहा कि आपकी बात तो ठीक है लेकिन हम क्या कर सकते हैं। कई विद्वान तो इससे नाराज़ और दु:खी थे। भारत सरकार ने हिन्दी के प्रचार और प्रसार के लिए पैसा दिया लेकिन हिन्दी का सम्मेलन अंग्रेज़ी में हुआ। इसके अतिरिक्त कई प्रपत्र स्तरीय नहीं थे। लगता है आयोजकों ने बिना परीक्षण किए सभी प्रपत्र स्वीकार कर लिए थे। वैसे सम्मेलन की व्यवस्था लगभग ठीक थी। (- प्रो.कृष्ण कुमार गोस्वामी, महासचिव एवं निदेशक, विश्व नागरी विज्ञान संस्थान, गुरुग्राम_)
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