आखिर नाबालिग उम्र के बच्चों को कौन सिखलाता है कि किस (जाति) के लोगों के साथ मित्रता रखनी है

Ratan Lal

मैं मुजफ्फरपुर (बिहार) का रहने वाला हूँ, मेरी स्कूली शिक्षा इंग्लैंड में नहीं बल्कि मुज़फ्फरपुर में ही हुई. दिवंगत रघुनाथ पांडे द्वारा बनवाए गए- विद्या बिहार स्कूल में. दसवीं तक वहीँ पढ़ा. जाहिर है, उम्र नाबालिग थी और मेरे साथ पढ़ने वाले छात्र भी नाबालिग थे. लेकिन ज्यादातर नाबालिग छात्रों में जातिगत सोच कूट-कूट कर भरी हुई थी. आखिर नाबालिग उम्र के बच्चों को कौन सिखलाता है कि किस (जाति) के लोगों के साथ मित्रता रखनी है, किसके साथ बैठना है इत्यादि .. जाहिर है यह ट्रेनिंग घर से ही मिलती होगी. कई बार मैंने कई अभिवावकों को यह भी कहते सुना कि फलां छोटी जात का है, उसके साथ मत रहो इत्यादि. मुजफ्फरपुर लंगट सिंह कॉलेज का छात्र हुआ, जातिवाद का एक खूुनी, भयावह कॉलेज. बचपन से विद्रोही प्रवृति का था, आप समझ ही गए होंगे. इसलिए पिताजी नाम कटवाकर मोतिहारी के मुंशी सिंह कॉलेज ले गए, वहां भी कमोबेश वही आलम. उबकर दिल्ली चला आया, देशबंधु कॉलेज, यहाँ भी पहले दिन जाति पूछी गई. यही नहीं सवर्णों की आपसी जातिगत गुटबंदी भी थी. फिर एम. ए. और उससे आगे, दिल्ली विश्वविद्यालय, उत्तरी परिसर, हॉस्टल भी सवर्ण जातियों ने आपस में बाँट लिया था और बिहार की तरह ही गुंडई का केंद्र. कौन कहता है, बच्चों को जाति का ज्ञान नहीं होता ? स्कूल से लेकर बी.ए., कितनी उम्र होती है, सोलह से अठारह साल, कहाँ से सीखता है बच्चा जातीय ज्ञान, नफरत और भेदभाव ? – निःसंदेह परिवार ही पहली पाठशाला है. कहानी और भी है, धीरे-धीरे विस्तार से बयां करेंगे….

Santosh Singh lekin lage hantho ap ye bhi bataiye bhaiya ki kai sawarn sath khare rahen hain hamjoli bankar…unke bhratrtva ko ap ek hi jhatke me kaise kharij kar dete hain

3 और जवाब देखें

Santosh Singh
Santosh Singh हमलोग तो भैया..दिखावे के लिए नहीं लेकिन समय आने पर ऐसे किसी भी व्यवस्था के लिए बागी हैं,जहां अपने साथ दिन रात रहने वालों,पढ़ने वालों के साथ कोई इस आधार पर भेदभाव करे और उत्पीड़न करे। समय पर बड़ी तीखी चोट करते रहे हैं,बस बिना बात नहीं बोलते।

Aftab Alam

Aftab Alam Thats the ugly reality of our society. LS College, a particular caste’s fiefdom. I know it very well.

 

Gagan Rajanaik
Gagan Rajanaik बच्चा जातिगत व्यवस्था से पूर्णतः वाकिफ होता है।खासकर सवर्णों के पूत इसी जाति-विज्ञान में जन्मजात PHD होल्डर होते हैं।मुज़फ्फरपुर शायद भूमिहार-वर्चस्वी शहर है और अपने बिहार में जिस जाति के खून में सबसे ज्यादा जातिवादी जहर है वह भूमिहार ही है।खैर यह खासकऔर देखें

 

Dhruva Singh
Dhruva Singh क्या दलित और तथाकथित पिछड़े जाति के पदाधिकारी आज तथाकथित सवर्णो के साथ दुर्भावना नही रखते ?

 

Santosh Patel
Santosh Patel अक्षरश: सहमत हूँ । मान्यवर।

 

Jayantibhai Manani
Jayantibhai Manani
ये कड़वा सच है.. एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के बच्चे को इनका एहसास होता ही है..

 

Jai Shankar Kumar
Jai Shankar Kumar Saja do dila skte hai sushan Babu kade se kade kanoon ka pravdhan kre

 

S Shanker Ravi
S Shanker Ravi जाति के नाम पर मलाई काटने वाले को सिर्फ मलाई काटते वक्त जाति दिखती है बाकी वो सच्चे मानवता के पुजारी होते है

 

Deepak Kumar Sah
Deepak Kumar Sah बिलकुल सहमत हूं आपसे

 

Umesh Rajak
Umesh Rajak Plzz come at remedies.

 

Haricharan Atal
Haricharan Atal Sir ye manubdai log apne bachcho ko jativad ki shiksha dete hi phir ye bhi samaj me akar jativad dikhate ha ye ochhi man sikta haianu bad ki

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