युवा राजनीति के आवारा

दिपक द्विवेदी. गोपालगंज.  आज के समय में अग़र कोई युवा नेतागिरी कों अपना एक मात्र लक्ष्य बना ले तो परिवार वाले उसे घोषित आवारा की उपाधि से नवाजते हैं । तथा पैसे की बर्बादी परिवार से कोई लगाव न होने का पूरा पूरा आरोप मिलता है ।सबसे बड़ा अत्याचार तो तब होता है जब घर पर कोई पारिवारिक कार्यकर्म होता है और पूरा खानदान इकठा होता है तब तो और जिलत झेलनी पड़ती है ।कोई डॉ कोई इंजिनियर या कोई बैंकर हो भाई या बहन तो बस घरवालों को िउ चालू हो जाता हैं नाक कटवा दी परिवार की तूने तो । पता नहीं मेरे किसी साथी के साथ ऐसा होता है या नहीं पर मेरे साथ हमेशा होता है ।साल में एक बार खानदानी बेजती तो पकी हैं ।।। वाह रे नेता जी न घरवाले खुश न बाहर वाले खुश…

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