जय कारा पर सियासत
सुभाष चंद्र/मधुबनी
मशहूरो मारुफ फिल्मकार के. आसिफ जब मुगले आजम में नायक सलीम से कहलवाते हैं, मेरा दिल, आपका हिंदुस्तान नहीं, जिस पर आप हुकूमत कर सकें, तो यह संवाद सीधे तौर पर मुगल सल्तनत के बादशाह अकबर को चुनौती थी। हिंदुस्तान के बादशाह के इकबाल पर सवालिया निशान भी। कोई भी राजा है और उसका इकबाल बुलंद नहीं, तो उसके कद को आखिर कौन मानेगा? अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भी यदि संघीय सरकार का इकबाल बुलंद नहीं हो, तो एक नहीं, कई समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी होगी। हाल ही सहिष्णुता और असहिष्णुता का मसला उठा। अभी भारत माता की जय बोलने पर राजनीति की जा रही है।
जय बोलें या नहीं, इसपर हिंदू और मुस्लिम संगठनों की ओर से बराबर प्रतिक्रिया आती रही हैं। दारुल उलूम ने भारत माता की जय बोलने के मसले पर गुरुवार यानी 31 मार्च को फतवा जारी किया। दारुल उलूम ने कहा कि जिस तरह वंदे मातरम नहीं बोल सकते इसी तरह भारत माता की जय भी नहीं बोल सकते। दारूल उलूम देवबंद ने भारत माता की जय के खिलाफ फतवा देते हुए कहा कि इंसान ही इंसान को जन्म दे सकता है, तो धरती मां कैसे हो सकती है? संस्था ने यह भी कहा कि मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं कर सकता, तो भारत को देवी कैसे माने? फतवे में कहा गया है कि मुसलमानों को खुद को इस नारे से अलग कर लेना चाहिए।
दारूल उलूम के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी कहते हैं कि भारत को मूर्ति की शक्ल देकर उसकी जय करने की बात आ रही है, उस पर देवबंद ने फतवा दिया है कि भारत माता की जय बोलना इस्लाम में नहीं आया है, इसलिए हम ए नही बोलेंगे। जहां तक वतन से मोहब्बत का सवाल है, तो हम अपने वतन से मोहब्बत करते हैं और हिंदुस्तान जिÞंदाबाद का नारा लगा सकते हैं, लेकिन भारत को मूर्ति मानकर जय नहीं बोल सकते। इसके साथ ही दारुल उलूम फिरंगी महली के प्रवक्ता मौलाना सूफियान निजामी का कहना है कि ए आरएसएस विरोधी फतवा हो सकता है, लेकिन हिंदुस्तान विरोधी नहीं है। हम शरीयत के दायरे में रहकर किसी पर फतवा दे सकते हैं या नहीं देंगे। इस्लामी विचारधारा के नजरिए से देखें, तो ए जायज फतवा है।
दूसरी ओर, विश्व हिंदू परिषद ने इसका प्रतिकार किया है। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन का कहना है कि अब किसी को कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि देवबंद की वहाबी विचारधारा ही आतंकवाद की जननी है। पहले ए वंदे मातरम का इसीलिए विरोध करते थे कि इसमे मूर्तिपूजा की बू आती है। अब वे इसी आधार पर उस नारे का विरोध कर रहे है, जो आजादी की लड़ाई में करोड़ो देशभक्तों का प्रेरणास्रोत रहा है। आज भी देशभक्त भारतीय इस जयकारे से प्रेरणा लेते है और हमारे सैनिक देश की रक्षा का संकल्प लेकर जान तक न्यौछावर कर देते है। इस नारे में पूजा नहीं, वल्कि भारत की विजय का संकल्प लिया जाता है। सुरेंद्र जैन ने तो यहां तक कह दिया कि अब और स्पष्ट कर दिया है कि वे अल्लाह के सिवाय किसी की विजय की कामना नहीं कर सकते। अल्लाह की विजय का काम आतंकवादी कर ही रहे है। इसका मतलब साफ है कि वे आतंकवाद का खुलकर समर्थन कर रहे है। इससे पहले के कुछ फतवे केवल अपने इरादों पर पर्दा डालने की कोशिश भर हैं, कुछ और नहीं। यह फतवा प्रधानमंत्री के उस बयान का सीधा जवाब है, जिसमें उन्होंने कहा था कि धर्म को आतंकवाद के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए। अब उन्होंने साफ कह दिया है कि जब जेहादी इस्लाम का नाम लेकर नरसंहार करते हैं, तो वे गलत नहीं करते। अब बिल्ली थैले से बाहर आ गई है। किसी को संदेह नहीं रहना चाहिए।
ऐसे में बरबस ही यह सवाल उठता है कि जिस धरती पर हम रहते हैं, उसकी पूजा करना, जय-जयकार करना क्या गलत है? इन शब्दों और भारत को अपनी मां के रूप में स्वीकार न करने से तो नि:स्संदेह यही प्रतीत होता है कि हम भारत में रहकर राष्ट्रवाद को पीछे छोड़ रहे हैं। हम उन महान योद्धाओं का उपहास उड़ा रहे हैं, जिन्होंने भारत को अपनी माता समझकर देश के दुश्मनों का जुल्म सहा है। जिन्होंने लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दी। हम उपहास उड़ा रहे हैं और मनोबल गिरा रहे हैं, सरहद पर दिन-रात देश की रक्षा करने वाले उन जिंदा-दिल जवानों का, जो भारतमाता की जय-जयकार कर सीने पर गोलियां खाने को तैयार रहते हैं।
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