समृद्ध विरासत को चाहिए सारथी

king dharbhanga maharaja darbhanga biharदरभंगा उत्तर बिहार का अकेला जिला है, जहां दो-दो विश्वविद्यालय हैं। यहीं पर उत्तर बिहार का सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज है। इग्नू का रीजनल सेंटर, इंजीनियिरग कॉलेज और आईटीआई का जाल है। मिथिलांचल की सांस्कृतिक और दरभंगा राज की ऐतिहासिक विरासत भी यहीं बसती है। फिर भी दरभंगा शांत, ठहरा और ठिठका हुआ है। असीम संभावनाओं वाले इस जिले को जरूरत के मुताबिक नहीं मिला।  संजय कटियार की रिपोर्ट।

दरभंगा को मिथिलांचल की हृदयस्थली भी कहा जाता है,बंगाल का द्वार भी। इसकी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत जबर्दस्त है। ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर यहां से होकर गुजरता है, समस्तीपुरसीतामढ़ी से जोड़ने वाले राजकीय राजमार्ग भी फर्राटा भरते हैं। यह उत्तर बिहार का अकेला जिला है, जहां दो-दो विश्वविद्यालय हैं। यहीं पर उत्तर बिहार का सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज है। इग्नू का रीजनल सेंटर है, इंजीनियरिंग कॉलेज है, आईटीआई का जाल है। मिथिलांचल की सांस्कृतिक और दरभंगा राज की ऐतिहासिक विरासत भी यहीं बसती है। फिर भी दरभंगा शांत, ठहरा और ठिठका हुआ है। अपनी मेधा के लिए ख्यात इस जिले से मेधा का ही पलायन हो रहा है। वास्तव में असीम संभावनाओं वाले इस जिले की जरूरतें भी बड़ी हैं, उतना उसे मिल नहीं सका है।

पिछले पांच सालों में दरभंगा की सड़कें सुधरी हैं। बिजली भी बेहतर मिलने लगी है, लेकिन इससे ज्यादा और कुछ नहीं हुआ। शहर में पहुंचते ही सबकुछ अस्त-व्यस्त सा लगता है। सड़कें अच्छी हैं, पर उन पर बोझ उनकी क्षमता से ज्यादा है। बस स्टैंड शहर के मुहाने पर है और जाम यहां रोज की बात है। घोषणाएं और वादे यहां दम तोड़ते नजर आते हैं। ऐतिहासिक विरासतों और परंपराओं को बचाने की कोशिशें भी नहीं दिखतीं। कहने को दरभंगा के पास बहुत कुछ है, मगर सब पर बदहाली का साया है। उत्तर बिहार का सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज डीएमसीएच है, लेकिन उसमें सुपर स्पेशियलिटी सेवा नहीं है। ललित नारायण मिथिला विवि और संस्कृत विवि जैसे दो-दो विवि हैं, लेकिन इनमें संस्कृत विवि लगातार विवादों में बना हुआ है। तीन-तीन इंडस्ट्रियल एस्टेट बेला, धर्मपुर और दोनार हैं, पर कल-कारखाने बहुत कम हैं। अशोक पेपर मिल में ताला लटका हुआ है। सैकड़ों को रोजगार देने वाली रैयाम चीनी मिल से प्रोड्क्शन शुरू होने का लोगों को अभी तक इंतजार है। चीनी मिल को भी खोलने की बात हो रही है, पर उम्मीद के मुताबिक इस चुनाव के पहले ये नहीं खुल सकी। चीनी मिल तक जाने वाले एनएच 105 की कहानी भी ऐसी ही है। 2006 में इसे दुरुस्त करने का काम भी शुरू हुआ पर सड़क जस की तस है। राजमार्ग में भूमि अधिग्रहण का पेच फंसा है। रैयाम चीनी मिल के पहले ही दो-दो पुलियों का निर्माण अधूरा पड़ा है। ये सड़क केवल मिथिला को नेपाल से ही नहीं जोड़ती है, बल्कि इससे बेनीपट्टी स्थित उच्चठ भगवती स्थान व रहिका के कपिलेश्वर स्थान जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों पर भी जाना आसान करती है। ये सड़क दुरुस्त हो तो दरभंगा नेपाल व भारत के बीच व्यापार का बड़ा गेट वे साबित हो सकता है। नेपाल के रास्ते मिथिलांचल में पर्यटन के रास्ते भी खुल सकते हैं।

पूरे जिले की तरह दरभंगा राज की समृद्ध विरासत भी यहां हाशिए पर है। राज का किला पूरी तरह जर्जर हो चुका है, जहां दरभंगा महाराज का आवास था, वहां की अधिकतर जमीन बिक चुकी है। बेला पैलेस को केंद्र सरकार ने खरीद लिया है, जहां पोस्टल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट चल रहा है। नरगौना पैलेस ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के हवाले है। सैकड़ों पांडुलिपियां बिना संरक्षण के नष्ट होने की कगार पर हैं। चंद्रधारी संग्रहालय में दरभंगा महाराज की कई धरोहर हैं, लेकिन रखरखाव पर किसी का ध्यान नहीं है। मखाना व मछली उत्पादन को बढ़ावा देने की बात भी घोषणा से आगे नहीं बढ़ सकी।

देश में मछली का हब माने जाने वाले कुशेश्वरस्थान में भी अब आंध्रप्रदेश की मछली पहुंच चुकी हैं। हर चुनाव में यहां मखाना व आम के लिए प्रसंस्करण ईकाई लगवाने के वादे हुए, लेकिन मखाना के इस गढ़ को न तो प्रसंस्करण ईकाई मिली न बाजार। यहां से मखाना जाता तो पूरे देश में है, पर बिचौलियों के जरिए। उत्पादकों को इसकी कीमत नहीं मिल पाती, न इसके बारे में कोई सोचता है। शहर के विशालकाय हराही, दिग्घी व गंगा सागर तालाबों को जोड़कर सौंदर्यीकरण की योजना बनाई गई थी, लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं है। ये तालाब तो अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। शहर में एक भी पार्क का निर्माण नहीं हो सका। हराही तालाब के तट पर हाल में बना थीमेटिक पार्क भी बदहाल है। मास्टर प्लान भी लागू नहीं हो सका है।

भाजपा को बचानी होगी प्रतिष्ठा
जिले की 10 विस सीटों पर 2010 में छह पर भाजपा और दो-दो सीटों पर जदयू और राजद ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी भाजपा ने अपने छह उम्मीदवार दिए हैं। इनमें दरभंगा शहर से संजय सरावगी, केवटी से अशोक यादव, जाले से जीबेश कुमार, अलीनगर से मिश्री लाल यादव, बहादुरपुर से हरि सहनी व बेनीपुर से गोपालजी ठाकुर शामिल हैं। दरभंगा ग्रामीण हम के खाते में है। यहां नौशाद अहमद प्रत्याशी हैं। तीन सीटें हायाघाट, गौडमबौराम और कुशेश्वरस्थान पर लोजपा के प्रत्याशी हैं। महागठबंधन में जदयू के कोटे से पांच और राजद के कोटे से पांच उम्मीदवार हैं। पिछली बार छह सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए इस बार कड़ी चुनौती है। दरअसल, नीतीश कुमार और भाजपा में दूरी बढ़ने के बाद जिले के कुछभाजपा विधायकों की दूरी भी अपने ही दल से बढ़ने लगी। सबसे पहले जाले के विधायक विजय कुमार मिश्रा भाजपा से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हुए। हायाघाट के विधायक अमरनाथ गामी भाजपा छोड़ जदयू में शामिल हो गए। हायाघाटसीट से उन्हें जदयू ने अपना उम्मीदवार बनाया है। कुशेश्वरस्थान (सु.) सीट से भाजपा विधायक शशिभूषण हजारी चुनाव की घोषणा होने के बाद भाजपा से दूरी बनाने लगे। वे जदयू से टिकट लेकर वहां महागठबंधन के उम्मीदवार बने। जिले में बागी उम्मीदवारों की भी चर्चा की जाये तो भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष जगदीश साह ही नजर आते हैं। वे शहरी सीट से लड़ रहे हैं। भाजपा को मिल रही चुनौती के अलावा राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के कारण भी दरभंगा के चुनाव पर सबकी नजर लगी है।

from livehindustan.com






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