बिहार के बाद क्या होगा?
वेद प्रताप वैदिक
बिहार में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। मैं आज इस स्थिति में नहीं हूं कि कोई भविष्यवाणी कर सकूं। आज यह नहीं बताया जा सकता कि कौन जीतेगा। यदि जातीय समीकरण प्रबल हो गए तो निश्चित ही नीतीश-लालू गठबंधन जीत जाएगा और यदि मोदी का जादू चला तो इस गठबंधन का जीतना ज़रा मुश्किल होगा। आज तो ऐसा लग रहा है कि हार-जीत बहुत कम वोटों से होगी। मोदी ने बिहार के मुंह में इतने बड़े रसगुल्ले रख दिए हैं कि उनको चबाना भी मुश्किल हो रहा है।
इसमें शक नहीं है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उक्त गठबंधन के दलों का सूंपड़ा साफ कर दिया था। उसकी लहर उन्हें बहा ले गई थी लेकिन दिल्ली राज्य के चुनावों ने सिद्ध किया है कि मोदी की लहर नीचे उतरती जा रही है। इसके बावजूद भाजपा को काफी वोट मिलने की संभावना इसलिए बन रही है कि नीतीश के कंधे पर लालू की सवारी हो रही है। यदि नीतीश अकेले लड़ते तो वे शायद मोदी पर शुरु से ही भारी पड़ जाते। उनके मोर्चे से मुलायम का टूटना भी उनके लिए कुछ न कुछ घाटे का सौदा जरुर बनेगा। इस मोर्चे का अब अखिल भारतीय बनना लगभग असंभव है। बिहार में यदि मोर्चा किसी तरह जीत गया तो प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का पानी उतर जाएगा। बिहार की हार दिल्ली की हार से बहुत मंहगी पड़ेगी। बिहार के इस प्रांतीय मोर्चे के दिमाग में अखिल भारतीय सपने जगने लगेंगे। कई अन्य प्रांतीय पार्टियां और वामपंथी दल भी आ जुटेंगे। यदि उस माहौल में मोदी की चाल अभी की तरह बेढंगी ही रही तो मानकर चलिए कि देश में निराशा अपने चरमोत्कर्ष पर होगी। दो साल पूरे होते हुए मोदी हटाओ अभियान शुरु हो जाएगा। इस अभियान को अनेक असंतुष्ट भाजपाई और संघ भी छद्म रुप से समर्थन देने लगें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसीलिए इस सरकार के लिए बिहार का चुनाव जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। मोदी के लिए बिहार जीतना तो जरुरी है ही, अपनी सरकार के वादों को पूरा करना भी उतना ही जरुरी है। बिहार की हार जितनी खतरनाक हो सकती है, उसकी जीत उससे भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकती है। बिहार जीतने पर सरकार का माथा फूल सकता है और वह उसके कारण खुद को काफी छूट दे सकती है। यह छूट ही उसके लिए प्राणलेवा सिद्ध हो सकती है। nayaindia.com
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