भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता कब!

bhojpuri bhasa
अजीत दुबे
हित्य अकादमी ने 10 मार्च, 2015 को अंग्रेजी सहित 24 भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादमी के अध्यक्ष ने की; उद्घाटन हिंदी के वयोवृद्ध साहित्यकार ने किया तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध हिंदी कवि थे। गौर करने वाली बात है कि इन सभी विद्वानों की मातृभाषा भोजपुरी है लेकिन साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों में भोजपुरी के किसी रचनाकार का नाम नहीं था। इसका कारण संभवत: यही है कि भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है। अगर भोजपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में होती तो निसंदेह वह साहित्य अकादमी की भी मान्यता प्राप्त भाषा होती और भोजपुरी साहित्य को भी प्रचार-प्रसार व उत्थान में साहित्य अकादमी का सहयोग व समर्थन मिलता तथा भोजपुरी के साहित्यकारों को भी इस प्रकार के सम्मान व पुरस्कार प्राप्त होते। परंतु वर्तमान में तो इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है।यूनेस्को के आह्वान पर हर वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष उक्त अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने देश के प्रमुख समाचार पत्रों में अपना संदेश दिया और संदेश का वाक्य था- ह्यह्यपहला भाव मातृभाव, पहली भाषा मातृभाषाह्ण। यह संदेश संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भारतीय भाषाओं में अंकित था। चूंकि भोजपुरी आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है, अत: यहां से भी वह नदारद रही। समाज में सूचना प्रौद्योगिकी के दायरे को बढ़Þाने के लिए भारतीय भाषाओं में उपयोगकतार्ओं के अनुकूल टूल्स और तकनीकों की उपलब्धता की आवश्यकता को देखते हुए संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 22 भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है जो सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है। भोजपुरी की मौजूदगी यहां भी नहीं है क्योंकि वह संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है। 16वीं लोकसभा में सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान बिहार के सांसद राजीव प्रताप रूडी जब शपथ लेने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने कहा कि ह्यह्यअध्यक्ष महोदय, मैं अपनी मातृभाषा भोजपुरी में शपथ लेना चाहता हूं, लेकिन मजबूरी यह है कि इस भाषा को संविधान मान्यता नहीं देता, इसलिए मैं चाहकर भी अपनी भाषा में शपथ नहीं ले पा रहा हूं, जिसका मुझे दुख है।ह्णसंवैधानिक मान्यता प्राप्त न होने की वजह से भोजपुरी जो पीड़ा झेल रही है उसकी एक छोटी-सी तस्वीर उपरोक्त उदाहरणों से उभर कर सामने आती है, पर पूरी तस्वीर बहुत बड़ी है। दुखद है कि हिंदी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी भाषा तथा दुनिया भर में 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी, जिसे मारीशस जैसे देश में तो संवैधानिक मान्यता प्राप्त है, पर अपने ही देश में आज तक वह संवैधानिक मान्यता से वंचित है। जबकि इस मान्या के लिए अपेक्षित सभी खूबियां इसमें विद्यमान हैं। उत्तर प्रदेश के 17 जिलों, बिहार के 9 जिलों, झारखंड और मध्यप्रदेश के 2-2 जिलों सहित दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू और चेन्नई जैसे महानगरों समेत देश के सभी बड़े शहरों में भोजपुरी भाषी बहुत बड़ी संख्या में विद्यमान हैं। विदेश की बात करें तो मारीशस, फिजी, त्रिनिदाद एवं टोबैको व सुरीनाम आदि देशों में भी भोजपुरिया लोगों की भारी संख्या मौजूद है। भोजपुरी उन लोगों की भाषा है जिन लोगों ने देश की प्रगति और समृद्धि के हर क्षेत्र में हमेशा से अपना बहुमूल्य योगदान दिया है । मंगल पांडेय, वीर कुंवर सिंह जैसे भारत के स्वाधीनता संग्राम के बड़े सेनानी भोजपुरी क्षेत्र से थे। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और दो पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और चंद्रशेखर भी भोज
पुरी भाषी थे। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जहां से सांसद हैं, उनका लोकसभा क्षेत्र बनारस भी भोजपुरी भाषी क्षेत्र है।भोजपुरी भाषा और साहित्य करीब एक हजार साल का सफर तय कर चुका है। कबीर, जिन्हें आदि कवि माना जाता है, उनकी मूल भाषा भोजपुरी थी। इस भाषा का अपना एक इतिहास, संस्कृति, व्याकरण और परंपरा है। भोजपुरी में औषधि, वास्तु, ज्योतिष, संगीत, नृत्य, कला, नाटक, योग, दर्शन, तंत्र-मंत्र और व्याकरण आदि हर तरह का साहित्य विद्यमान है। लगभग आठ विविद्यालयों में भोजपुरी भाषा में पढ़ाई हो रही है। इग्नू की तरफ से फाउंडेशन कोर्स शुरू किया गया है। देश-विदेश में सैकड़ों की संख्या में भोजपुरी की पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है, भोजपुरी की अनेक वेबसाइटें चल रही हैं, भोजपुरी में अनेक ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। भोजपुरी की उपयोगिता और दिन पर दिन उसके बढ़Þ रहे प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब अपने विज्ञापन भोजपुरी में भी बना रही हैं। भोजपुरी के कई टीवी चैनल चल रहे हैं । यहां तक कि हिंदी के चैनल भी खास अवसरों पर भोजपुरी के सुप्रसिद्ध कलाकारों को कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित कर रहे हैं। अभी हाल ही में होली एवं विश्व कप क्रि केट के दौरान लगभग सभी प्रमुख हिंदी समाचार चैनलों पर भोजपुरी के कलाकारों को कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए देखा गया। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को कड़ी टक्कर दे रही है और लाखों लोगों के रोजगार का साधन भी बनी है। यह सब भोजपुरी की ताकत और उसकी लोकप्रियता का जीता-जागता प्रमाण है। भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने के बारे में पिछली सरकार ने पांच बार आश्वासन दिया, लेकिन उसके शासनकाल में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने का बिल तक पेश नहीं किया गया। अपने पिछले 10 साल के शासनकाल में बार-बार आश्वासन देने के बाद भी कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार ने 20 करोड़ लोगों की भाषा के साथ केवल मजाक ही किया। लेकिन अब देश में एक ऐसी सरकार बनी है जो भारतीय भाषाओं की पक्षधर है। अब तक अनेक उदाहरणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मोदी जी को भारतीय भाषाओं से विशेष लगाव है। अपनी चुनावी सभाओं में उन्होंने हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का ही प्रयोग किया। विदेश यात्राओं के दौरान भी वह ज्यादातर हिंदी में ही बोलते देखे जाते हैं। 12 मार्च 2015 को अपनी मारीशस यात्रा के दौरान विश्व हिंदी सचिवालय भवन के निर्माण के आधारशिला समारोह में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ह्यह्यदिल से निकलती है मातृभाषाह्ण। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो दो नवम्बर 2014 को मारीशस में अप्रवासी दिवस पर अपने संबोधन की शुरुआत ही भोजपुरी से की थी। ए तय इस बात को प्रमाणित करते हैं कि इस सरकार का भारतीय भाषाओं से गहरा लगाव है। पिछली एनडीए सरकार ने वर्ष 2004 में संविधान के 92वें संशोधन के माध्यम से चार भाषाओं बोडो, डोगरी, संथाली और मैथिली को आठवीं अनुसूची में शामिल इन भाषाओं को जो मान-सम्मान दिया, वर्तमान सरकार से उसी मान-सम्मान की उम्मीद भोजपुरी को भी मिलने की उम्मीद लोग लगाए बैठे है।






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