भारत में सरकार का मतलब जनता को लूटने के लिए गढा गया सांचा
संजय तिवारी
एक बार भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कह रहे थे, मोदी को विरोध से कोई फर्क नहीं पड़ता। मोदी कहते हैं विरोधी अपना काम कर रहे हैं और मैं अपना। अगर विरोधियों की बात पर ध्यान दूंगा तो कभी काम नहीं कर पाऊंगा।
जो नेता ये बात बता रहे थे किसी समय मोदी उनसे मिलने का टाइम मांगते थे। लेकिन टाइम बदला। मोदी अर्श पर चले गये और नेता जी फर्श पर। लेकिन जब ये बात सुनी थी तब मोदी विरोध करनेवाला एक वर्ग विशेष ही था। ये वर्ग विशेष मोदी के बुरे कामों का ही नहीं, अच्छे कामों का भी विरोध करता था। आज भी करता है। उन्होंने विरोधियों के संबंध में संभवत: इसलिए अपनी धारणा बनायी होगी।
लेकिन उनकी ये धारणा अब एक फार्मूला बन गयी है। वो हर प्रकार के विरोध को इसी फार्मूले से डील कर रहे हैं। मोदी की जन विरोधी नीतियों का भी समर्थन करनेवाला पगलेटों का एक वर्ग है भारत में जिसे मोदी का हर काम सिर्फ मास्टरस्ट्रोक ही लगता है। उसकी अपनी सोच समझ इतनी ही है कि मोदी जो बोल दें उसे वेद वाक्य मानकर स्वीकार कर लेना है। मोदी उनके पैगंबर हैं और पैगंबर कभी कुछ गलत करता ही नहीं है।
लेकिन गलत तो है। भारत में सरकार का मतलब होता है ब्रिटिश उपनिवेश का वो ढांचा जो जनता को लूटने के लिए गढा गया था। ब्रिटिश चले गये लेकिन वो ढांचा छोड़ गये जिसे हम सरकार कहते हैं। ये सरकार दो ही लोगों का हित करती है। एक अपना और दूसरा अपने उन पूंजीपति आकाओं का जो धीरे धीरे सबकुछ अपने नियंत्रण में ले रहे हैं।
भारत में सरकार का मतलब एक ऐसे गिरोह से होता है जो जनता को लूटने की योजनाएं बनाता रहता है। ऐसे में सिर्फ नेता ही लुटियंस जोन में जनता की एकमात्र और आखिरी उम्मीद होता है। भारत का दुर्भाग्य ये हो गया है कि पहली बार नेता भी कंपनियों का कारिंदा जा बैठा है। वह कारिंदा कारीगर है। वह कंपनियों के कारोबार को जनता का विकास बताता है, और मजे की बात देखिए मोदी वाक्य को वेदवाक्य बतानेवाले समर्थक उसे ही स्थापित सत्य बताने में लग जाते हैं। इन बेचारों को क्या पता कि वो मोदी का नहीं बल्कि किसी कॉरपोरेट कंपनी का मुफ्त में पीआर कर रहे हैं।
ऐसे में कंपनीराज का विरोध भी देशद्रोह घोषित किया जा रहा है। ये अच्छे लक्षण नहीं हैं। पांच सौ रूपये लीटर पेट्रोल पीने को तैयार लोग न सिर्फ जनता के दुश्मन हैं बल्कि उस मोदी के भी दुश्मन हैं जिसके गलत को सही बताने का ठेका लिये घूमते हैं। इसकी प्रतिक्रिया होगी और जरूर होगी। हिन्दू मुसलमानों जैसे मूर्ख कभी नहीं हो सकते जो सिर्फ मजहब के नाम पर वोट करता है और नालियों में सड़ता है। हिन्दू समाज अगर किसी को सिर पर चढाता है तो उसे सिरे से खारिज करना भी जानता है।
अगर लूटपाट का यही हाल रहा तो राष्ट्रवाद के नाम पर कॉरपोरेट घरानों का ये विकास लंबा नहीं चलनेवाला है।
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