बुधनमा, इतिहास मत छांट
बुधनमा, इतिहास मत छांट
– नवल किशोर कुमार
आज का यह पोस्ट व्यंग्य नहीं है। खबरें हैं। बुधनमा की कोई परिभाषा नहीं है आज। वह इंसान है या कुछ और? इस सवाल का जवाब भी उसे नहीं पता। वह तो सुबह-सुबह उठता है चाय/कॉफी/पेग से अपने दिन की शुरूआत करता है। अखबार पढ़ने से पहले व्हाट्सअप देखता है। फिर वह अखबार भी पढ़ता है।
खैर, बुधनमा को इससे कोई दिक्कत नहीं है कि अखबारों में प्रकाशित कुछेक काम लायक खबरें पहले ही सोशल मीडिया पर उसे प्राप्त हो चुके होते हैं। साथ ही दुनिया भर का ज्ञान भी। उसे इस तरह के ज्ञान से भी कोई खास परहेज नहीं है। हो भी क्यों? लोगों का काम ही है ज्ञान बांटना। बांटने में विफल रहे तो सारा ज्ञान दूसरे के माथे पर बजार देना।
जैसा कि पहले ही कहा कि यह कोई व्यंग्य नहीं, खबरें हैं। सो खबरें की बात करता हूं। बुधनमा को पता ही नहीं था कि दो महत्वपूर्ण जानकारियां उसे दी ही नहीं जा रही हैं। पहली तो यह कि आपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनायी जा रही है और दूसरी यह कि राणा (महाराणा) प्रताप की कल जयंती थी।
बुधनमा को तो यह भी नहीं पता चला कि शिरोमणि अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल कल दिल्ली में नार्थ ब्लॉक गए थे। देश के नए गृह मंत्री अमित शाह से मिलने। बुधनमा समझदार है। वह अमित शाह के नाम के आगे तड़ीपार नहीं जोड़ता है। जो बीत सो बात गयी। पहले यदि कोई तड़ीपार था तो रहा होगा। उसका आज से क्या संबंध?
बुधनमा की समझ बस यहीं मार खा जाती है। वह इतिहास को एक महत्वपूर्ण विषय मानता है। आपरेशल ब्लू स्टार की बरसी पर कल जब सुखबीर सिंह बादल देश के नए रक्षक (कृपया इसे भक्षक पढ़ने की भूल न करें) से मिलने गए तो उन्होंने कई मांगें रख दी। पहली तो यह कि सरकार 1984 में स्वर्ण मंदिर में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा किए गए सैन्य कार्रवाई की जांच कराए। उनका कहना है कि तब इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी विद्रोहियों के खिलाफ कड़े कदम उठाकर पाप किया था। मंदिर परिसर में हथियार और वह भी तोप चलवाया था इंदिरा गांधी ने।
सही बात है मंदिर में आतंकवादी रह सकते हैं। देश को तोड़ने वाले विद्रोहियों को मंदिर में पनाह दिया जा सकता है। आखिर उनका उपयोग ही क्या है। मंदिर तो होते ही इसलिए हैं ताकि दो तरह के लोग रह सकें। पहले वे जो निठल्ले हैं और दूसरे वे जो इहलोक से अधिक परलोक की फिकर करते हैं।
तो आपरेशन ब्लू स्टार की बरसी से जुड़ी एक और खबर यह है कि कल एकबार फिर स्वर्ण मंदिर में जय खालिस्तान के नारे लगे। यह न तो मौजूदा सरकार की नजर में देशद्रोह है और न ही हमारी। बुधनमा कल सच ही कह रहा था कि आज के भारतीयों की आंख का पानी सूख गया है। आंखें पत्थर सी हो गयी हैं। कोई पहलू खान मारा जाता है बीच सड़क पर तब भी उसकी आंखें पत्थर रहती हैं। सरेआम पुलवामा में सीआरपीएम के 42 जवान मार दिए जाते हैं और जब जांच होती है तो मालूम चलता है कि जिस गाड़ी में विस्फोटक रखे गए थे, वह गुजरात से लायी गयी थी। फिर बालाकोट में सेना हमला करती है (यह दावा बुधनमा नहीं कर रहा है) और परिणाम यह होता है कि पाकिस्तान का तो बाल भी बांका नहीं होता भारत में लोकतंत्र हार जाता है।
बुधनमा की यह बात बड़ी खराब है। लोकतंत्र चाहता तो है लेकिन जनादेश का सम्मान नहीं करता है। उसे लगता है कि यह जनादेश इमोशनल ब्लैकमेल करके हासिल किया गया है। लेकिन बुधनमा क्या करे। जो देखता है बोलता रहता है। उसकी आंखें पत्थर ही सही, देखती जरूर हैं।
अब उसने कल भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को देख लिया। जबसे देखा है तभी से हैरान है। कल राणा प्रताप जो कि एक पराजित राजा थे, उनकी कथित जयंती के मौके पर उनकी मूर्ति पर माला पहनाने गयी थी प्रज्ञा सिंह ठाकुर। बुधनमा हैरान इसलिए है कि मालेगांव मस्जिद पर बम हमले के मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मुंबई ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अस्पताल में भर्ती है।
सच में सच वह नहीं होता जो सच होता है। सच वह है जो सच बताया जाता है। इसमें अदालत का क्या कसूर। मुंबई ट्रायल कोर्ट ने मान लिया कि मैडम प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब आतंक की आरोपी थोड़े न हैं जो झूठ बोलेंगी। वह तो माननीय सांसद बन चुकी हैं। लेकिन झूठ तो कोई भी बोल सकता है। चाहे वह देश का पीएम हो या कोई सीएम। बुधनमा यही सब नहीं समझता है।
बुधनमा इतिहास तो बिल्कुले नहीं समझता है। राणा प्रताप की मनगढंत कहानियां उसे इतिहास नजर आती हैं। आपरेशन ब्लू स्टार और खालिस्तानियों का किस्सा उसे इतिहास नहीं कहानी लगती है। गुजरात का दंगा इतिहास नहीं रहा। कितना कुछ इतिहास नहीं रहा। आने वाले समय में इतिहास तो यह होगा कि राम ने अमुक तिथि को एकदम एक्जैक्ट तारीख को रावण की नाभि में गोली मारी थी और राम ने जब बालि को मारा था तो वह पीठ पर तीर का वार नहीं था, माउजर से निकली जादुई गोली थी जो हवा में डांस करते हुए गई थी और बालि का खेला खत्म हो गया था। एकदम फिल्मी सीन के जैसे। और शंबूक का नया इतिहास होगा। वह छोट जात का तो रहेगा लेकिन अब उस पर नया मुकदमा चलाया जाएगा। संभव है कि एक नया आरोप भी कि शंबूक ने किसी द्विज कन्या के साथ गलत काम किया था। इसलिए राम ने उसका सिर तलवार के एक झटके में धड़ से अलग कर दिया था। राम को निर्दोष साबित करने के लिए मुकदमा का चलना जरूरी है।
बस कर बुधनमा। इतना कुछ कैसे इमेजिन करता है रे बुरबक। इतना तो सृष्टि के तारणहार डोनाल्ड ट्रंप और रामावतार रूपी उनके विशेष दूत नरेंद्र मोदी भी नहीं इमेजिन कर सकते।
{लेखक नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस के हिन्दी संपादक हैं}
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