…तो इस तरह से होगा जाति का विनाश!
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अरुण कुमार
जाति के विनाश का आन्दोलन उसी समय से चल रहा है जब से जाति बनी। इसके बावजूद आज भी जाति का अस्तित्व उतनी ही मजबूती से बना हुआ है। जाति के विनाश के आन्दोलन भी कई तरीके से चले। आज भी लगभग सभी लोगों का मानना है कि जाति का विनाश होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि जाति पर बात नहीं करने से जाति खत्म हो जाएगी। कुछ लोगों ने अंतरजातीय विवाहों में जाति के विनाश के बीज देखे तो कुछ लोगों ने माना कि हिन्दू धर्म को छोड़ देने से जाति का विनाश हो जाएगा। हमारे पास अंतरजातीय विवाहों और धर्म परिवर्तन के बहुत सारे उदाहरण हैं लेकिन ये उदाहरण इस बात का इशारा नहीं करते कि जाति का विनाश हो गया है।
मेरा मानना है कि जाति का विनाश करने के लिए उन कारकों को खत्म करना होगा जिनके कारण किसी को किसी विशेष जाति में जन्म लेने के कारण या तो लाभ होता है या फिर हानि। उदाहरण के रूप में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के अस्सिस्टेंट प्रोफेसर संजय यादव पर हमले की घटना को ले सकते हैं। संजय यादव पर आरोप है कि उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में फेसबुक पर गलत ढंग से लिखा। अटल जी के प्रशंसक सभी जाति और वर्ग के लोग हैं लेकिन संजय यादव की पोस्ट को पढ़कर गुस्सा या उनपर जानलेवा हमला करने का भाव राहुल पांडेय और अमन तिवारी के मन में आता है तो इसका कारण उनकी जाति है। इन दोनों को यह अच्छी तरह से पता है कि पुलिस-प्रशासन में बैठे उनकी जाति के लोग उन्हें बचा लेंगे। भारत में सवर्ण लोग अधिक भ्रष्टाचार करते हैं तो इसका भी सबसे बड़ा कारण उनकी जाति ही है। जिस दिन किसी को भी उसकी जाति के कारण फायदा मिलना बंद हो जाएगा उसी दिन जाति का विनाश हो जाएगा। इसके लिए सबसे अधिक जरूरत है आरक्षण आदि से संबंधित सामाजिक न्याय की नीति को अधिक से अधिक लागू किया जाए ताकि व्यवस्था में जातिगत विविधता दिखाई दे। (अरुण कुमार बिहार के हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं )
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