लक्ष्मणपुर बाथे नरसंरहार के 20 साल : एक साथ जली थीं 58 चिताएं, लेकिन जातिवादी सिस्टम में नहीं मिल सका एक भी हत्यारा
नवीन कुमार, संपादक, पडताल
आज से 20 पहले यानि 1 दिसंबर 1997 को बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड की यादें ज़हन में आते ही सिर शर्म से झुक जाता है, इतना बड़ा नरसंहार हुआ लेकिन पकड़ा एक आदमी भी नहीं गया। अब भी उस देश को खत्म नहीं कर पाए हैं हम जहां इंसान से ज्यादा उसकी जाति अहमियत रखती है। और उस जाति व्यवस्था को जिंदा रखने और और पुष्ट करने के लिए यहां का सिस्टम लगातार सहायक बना रहता है, आखिर कितने बेहया बेशर्म हो गए हैं हम जो गरीब मजलूमों के शवों पर पर भी अपनी संवेदनशीलता नहीं जगा पाते, शायद अंदर से मर गए हैं। लेकिन जिंदा होने की गलतफहमी पाले हुए हैं।
‘रणबीर सेना’ बिहार के जमींदारों द्वारा बनाया गया एक संगठन था, जिसने लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों की सरेआम हत्या कर दी थी। इस संगठन पर बिहार में सैकड़ों दलितों के नरसंहार का भी आरोप है। इनमें बथानी टोला, शंकर बिगहा, सरथुआ, इकवारी, मियांपुर और लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार प्रमुख हैं। लक्ष्मणपुर बाथे में हुई दरिंदगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 3 महीने की बच्ची से लेकर 65 साल के बुजर्ग तक को नहीं बख्शा गया था, मरने वालों में 27 औरतें और 16 बच्चे शामिल थे, इनमें 10 महिलाएं गर्भवती थीं। लेकिन ह्त्यारों को किसी पर तरस नहीं आया। गर्भवती महिलाओं के पेट चीरकर उनके भ्रूण को त्रिशुल पर लटका दिया गया था। 3 महीने की बच्ची को हवा में उछाल कर उसकी गर्दन काट दी गई थी। इतना ही नहीं हत्यारे इतने बेखौफ थे कि कैमरे के सामने खुलेआम अपनी दरिंदगी की कहानी सुना रहे थे। और दूसरे लोगों को संभल जाने की धमकियां दे रहे थे।
पटना की विशेष अदालत में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश विजय प्रकाश मिश्र ने मामले में साल 2010 में 26 लोगों को दोषी ठहराते हुए 16 को फांसी तथा 10 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी तथा 19 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था। इस मामले में दो आरोपियों की मामले की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी। लेकिन 2013 में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में दायर याचिका की सुनवाई के बाद न्यायाधीश बीएन सिन्हा और एके लाल की खंडपीठ ने साक्ष्य के अभाव में सभी 26 अभियुक्तों को बरी कर दिया।
1 दिसम्बर 1997 बिहार को हत्यारे तीन नावों में सवार होकर सोन नदी को पार करके गांव में आ पहुंचे। उन लोगों ने सबसे पहले उन नाविकों की हत्या कर दी, जिनके सहारे उन्होंने नदी को पार किया था। इसके बाद हत्यारों ने भूमिहीन मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों को घर से बाहर निकाला और गोलियों से भून डाला। तीन घंटे तक चले इस खूनी खेल में सोन नदी के किनारे बसे बाथे टोला गांव को उजाड़ दिया। इस हत्याकांड में कई परिवारों का नामोनिशान मिट गया था।
दो दिनों तक स्थानीय लोगों ने शवों का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया था। 3 दिसंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने गांव का दौरा किया उसके बाद शवों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया। एक साथ 58 चिताएं जली थीं। उस समय राष्ट्रपति रहे के. आर. नारायणन ने गहरी चिंता जताते हुए इस हत्याकांड को ‘राष्ट्रीय शर्म’ करार दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल समेत सभी पार्टियों के नेताओं ने इस हत्याकांड की घोर निंदा की थी। उस समय मुख्यमंत्री रहीं राबड़ी देवी की तत्कालीन राजद सरकार ने रणवीर सेना के राजनीतिक संबंधों को खंगालने के लिए अमीर दास आयोग का गठन किया था, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद नीतीश कुमार ने आयोग को भंग कर दिया।
खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर वेबसाइट ‘कोबरापोस्ट’ ने साल 2015 में इस नरसंहार को लेकर एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया था, इस स्टिंग ऑपरेशन में ‘रणबीर सेना’ के कई पूर्व कमांडर ने दलितों की हत्या करने की बात स्वीकारने के साथ ही कई सनसनीखेज खुलासे किए थे। इस स्टिंग ऑपरेशन के अनुसार मुरली मनोहर जोशी, सीपी ठाकुर और सुशील मोदी जैसे बड़े राजनेताओं के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी ‘रणवीर सेना’ की प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से मदद की और और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने उनकी राजनीतिक और आर्थिक मदद की थी।
कोबरापोस्ट ने इस ऑपरेशन के दौरान जस्टिस अमीर दास से भी बात की थी, जस्टिस दास पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रहने के साथ ही लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की जांच के लिए बने आयोग के अध्यक्ष भी रहे, उनका कहना था कि शिवानंद तिवारी, सीपी ठाकुर, मुरली मनोहर जोशी और सुशील कुमार मोदी जैसे नेताओं ने जांच को प्रभावित करने की कोशिश की थी।
ऐसा कहा जाता रहा है कि लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड ने पूरे देश को हिला दिया था। लेकिन ये आज तक नहीं समझ आया कि उस घटना से आखिर कौन हिला ? पुलिस, प्रशासन, न्याय व्यवस्था, संवेदनशील भारतीय नागरिक, आखिर कौन ? अगर हिलते तो मामले में इंसाफ मिलता, सच्चाई सामने आती, पूरी दुनिया को पता चलता कि भारत जैसे सभ्य और सांस्कृतिक देश में जाति किस नफरत तक धंसी हुई है। आखिर रणवीर सेना कहां गायब हो गई, कौन लोग चला रहे थे, किसने बनाई, कौन लोग मुंह पर कपड़ा बांधकर लोगों को धमकाते दिख रहे थे और नरसंहार की कहानियां सुना रहे थे, सब गायब हो गए। क्या इन सबका पता लगाना ज्यादा मुश्किल था या फिर 58 लोगों के हत्याकांड को भुला देना ज्यादा आसान था। इसलिए आसान काम कर दिया सिस्टम ने। (साभार पडताल डॉट कॉम)
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