90 के दशक का बिहार और लालू यादव
अमित कुमार
बिहार में 90 के दशक में जहाँ एक तरफ़ दबे कुचले प्रताड़ित उपेक्षित वर्गों के लिए मान सम्मान के साथ समाज में रहने का और सड़क पर सीना तानकर चलने का अधिकार हासिल हुआ था वही दूसरी तरफ़ सामंती वर्गों ने अपना राजनीतिक अस्तित्व समाप्त होता देख बिहार को जंगल राज की संज्ञा देकर मीडिया और फ़िल्मों के माध्यम से पूरे देश में ख़ूब बदनाम किया, इनके विरोध का मुख्य केंद्रबिंदु लालू जी थे क्योंकि लालू जी ने सामंतियो से सीधी लड़ाई लड़कर इनके राजनीतिक एकाधिकार को ध्वस्त कर दिया था, लालू जी इस वक़्त आपार जनसमर्थन के वजह से पूरे जोश खरोश के साथ अपने राजनीतिक जीवन के सबसे उच्च शिखर पर थे, उनका मानना था की सामाजिक न्याय एक सशक्त हथियार है समाज में वर्तमान अन्याय ज़ुल्म एवम् भ्रष्टाचार की सामाजिक संरचना के ख़िलाफ़ लड़ने का, लालू जी ने संकल्प लेते हुए कहा था”मैं करोड़ों दलित पिछड़े शोषित,अल्पशंख़यक,अकलियत जमात के लोगों का औज़ार बनूँगा चंद मुट्ठी भर लोगों का नही” लालू की है यह पहचान सारे मजहब एक समान, लालू जी ने उस वक़्त तमाम प्रताड़ित,वंचित दबे कुचले लोगों को एक उम्मीद की किरण दिखाई थी, वो दौर वंचित समाज के लिए आत्मसम्मान के साथ सामाजिक परिवर्तन का था। जिस लालू यादव के नेतृत्व को पूरी दुनिया ने सराहां वही भारतीय मीडिया जिसपर पूरी तरह से कुछ ख़ास वर्गों का जन्मजात क़ब्ज़ा है इसने लालू जी को हमेशा एक मज़ाक़िया लहजे में प्रचारित किया, नस्लीय कार्टून बनवाए, मानो उनका कोई अपना मान सम्मान नही हो, लालू जी देश के उसी संवैधानिक प्रक्रिया से चुनकर आए थे जिससे चुनकर जगन्नाथ मिश्रा आए थे लेकिन मिश्रा जी वाला सम्मान लालू जी को यहाँ की मीडिया और अभिजात्य वर्ग के लोगों ने कभी नही दिया,हमेशा लालू जी को इनलोगो ने लालुआ ही कहा, लेकिन लालू जी को जितना सामंती वर्ग ने तिस्कृत किया उससे जायदा दबे कुचले लोगों ने अपना प्यार और समर्थन दिया।90 के दशक में बिहार की विकास की गति वंचितो की भागीदारी के साथ आगे बढ़ रही थी,लालू जी मज़बूती के साथ राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त नेता के तौर पर उभर रहे थे, अपने पहले ही कार्यकाल में छपरा में जयप्रकाश विश्वविध्यालय,मधेपुरा में बी एन मंडल विश्वविध्यालय,आरा में वीर कुँवर सिंह विश्वविध्यालय,दुमका में सिद्धू कानु विश्वविध्यालय,हज़ारीबाग़ में विनोवाभावे विश्वविध्यालय,और पटना में मज़रूहल हक़ अरबी फ़ारसी विश्वविधालय,साथापना करवाई, लालू जी के शासनकाल में जग्रनाथ मिश्रा के शासनकाल से 10% बिहार का साक्षरता दर बढ़ा,उर्दू भाषा को राज्य लोकसेवा आयोग में मान्यता मिली, उर्दू में लिखने की सुविधा मिली,अल्पसंख्यक आयोग को क़ानूनी अधिकार देने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना।सर पर मैला ढोने को अपराध घोषित किया गया। लालू जी ने कामगारों ग़रीब मज़दूर किसान के बच्चे को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए आह्ववॉन किया था अो गाय चराने वाले, घोंघा चूनने वाले, मछली पकड़ने वालों पढ़ना लिखना सीखो, इसीलिए उन्होंने चरवाहा विद्यालय जैसा अनोखा योजना चलवाया जिसकी प्रसंशा यूनीसेफ़ तक ने की थी, लालू यादव के नेतृत्व की गतिशीलता को ख़ारिज करने की कोशिश इतिहास की रफ़्तार को नकारने जैसा था, लालू जी ने जिस आरक्षण नीति को नेतृत्व दिया उसकी प्रशंसा नेलसन मंडेला ने की थी,तब जापान जैसे विकसित देश के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र ओसाका विश्वविधालय के साउथ ऐशिया केंद्र में समकालीन भारतीय इतिहास के अंतर्गत पाठ्यक्रम में लालू जी के जीवन सामाजिक राजनीतिक विचारों को पढ़ाया जा रहा था, इससे ज़ाहिर होता है की देश विदेश में यह आम राय बन रही थी की पिछड़ो दलितों अल्पसंख्यको की शक्ति को संगठित करके उसको परवान चढ़ाने का काम लालू जी के शासनकाल में यानी की 90 के दशक में हुआ था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत कम ही मुख्यमंत्री लालू जी के तरह रहे होगे जिसने दबे कुचले लोगों की बस्तियों में जाकर उनसे पेड़ के नीचे बैठकर संवाद कर रहा हो उन्हें नहलवा धुलवा रहा हो बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा हो,इसी सामाजिक पृष्ठभूमि से आने के कारण लालू जी इन सारी समस्याओ से भलीभाँति परिचित थे। अपराधी सामंती और साम्प्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ के चौतरफ़ा हमले का मुँहतोड़ जबाब लोकतांत्रिक ताक़तो के बल पर लालू जी ने ही दिया है। इसीलिए लालू जी अपने संबोधनो में लोहिया जी पंक्ति कहा करते है, जब वोट का राज होगा तो छोट का राज होगा यानी छोटे लोगों का राज होगा। 90 का दशक वंचितो के लिए सामाजिक परिवर्तन का रहा है,इसको इसी रूप में आने वाली पीढ़ी याद रखेगी। (अमित कुमार,जवाहरलाल नेहरु विश्वविध्यालय (JNU) में शोधार्थी हैं तथा यूनाइटेड ओबीसी फ़ोरम के संस्थापक सदस्य है।)
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