डिजिटल साहूकारों के पीछे किसकी ताकत
डिजिटल साहूकारों के पीछे छिपी ताकतों की पहचान जरूरी
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ये कंपनियां कर्जदार के नाम पर किसी भी बैंक या एनबीएफसी से कर्ज ले सकती हैं. मिनटों में फर्जी कंपनियां खड़ी कर सकती हैं, जिनकी आड़ में धोखाधड़ी का अंदेशा बना हुआ है.
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राजेश जोशी
बिना किसी गारंटी, अच्छे सिबिल स्कोर या ढेर सारे दस्तावेजों के बिना फटाफट कर्ज देने वाले मोबाइल ऐप का संचालन कर रही कंपनियों के बारे में हो रहे खुलासे डराने वाले हैं. आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में इन मोबाइल एप कंपनियों की धमकियों और प्रताड़ना के चलते जब कर्जदारों ने खुदकुशी करना शुरू किया, तब पुलिस की नींद खुली.
आसानी से कर्ज देने वाले इन एप को चला रहे लोगों के बारे में जो जानकारी अब तक सामने आई है, उससे एक बात तो साफ है कि इसके पीछे साइबर अपराधियों का पूरा गैंग है. इसका विस्तार कहां तक है, अब तक सामने आना बाकी है. इसमें चीनी और इंडोनेशियाई नागरिकों और कंपनियों का हाथ भी सामने आया है. जिस तरह के लेन-देन इन मोबाइल एप के माध्यम से हुए हैं, उससे बहुत गहरे षड्यंत्र का भी अंदेशा है. आशंका है कि यह केवल कर्ज देने और वसूलने का मामला नहीं है. दो दिन पहले ही फ्रैंकफर्ट होते हुए चीन भागने की कोशिश कर रहे चीनी नागरिक की गिरफ्तारी के बाद जो खुलासे हुए हैं, वह पुलिस अधिकारियों के होश उड़ाने के लिए काफी हैं. उसके लैपटॉप को खंगालने के बाद पुलिस को चार मोबाइल लोन एप से जुड़ी जानकारियां मिली. पिछले एक से सवा साल के अंदर इन चार एप के माध्यम से हुए करीब डेढ़ करोड़ ट्रांजेक्शन के विवरण पुलिस को मिले हैं. इसमें 21 हजार करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ. कुछ भुगतान डिजिटल करंसी बिटकाइन के माध्यम से भी किया गया.
बहुत सारे सवाल हैं. इतनी बड़ी रकम कहां से आई, किसलिए आई? यह भी कहा जा रहा है कि जो खुलासे हुए हैं, वह इस आपराधिक नेटवर्क का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है. एेसे 84 से ज्यादा मोबाइल एप देश में काम कर रहे हैं. ज्यादातर संदिग्ध एप का संबंध कहीं ना कहीं चीनी कंपनी या चीनी नागरिकता वाले लोगों से है. इसमें से किसी ने रिजर्व बैंक या सरकार से साहूकारी का लाइसेंस नहीं लिया है. एप जिन कंपनियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, उनका पंजीयन किसी और काम के लिए हुआ है पर कर रहे हैं डिजिटल साहूकारी. इससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाला है एप के काम करने का तरीका. एप को मोबाइल फोन पर इंस्टाल करने के बाद ये ढेर सारी परमिशन मांगते हैं. इसमें कर्जदार के फोन की कांटेक्ट लिस्ट, एसएमएस को पढ़ने की अनुमति, फोटो तक पहुंच समेत ढेर सारी अनुमति शामिल हैं. जिनके बारे में कर्जदार को पता भी नहीं चलता. अंदेशा यह भी है कि एप के साथ कर्जदार के फोन में कई सारे मालवेयर या खुफिया प्रोग्राम भी डाल दिए जाते हैं, जो फोन में छिपे रहते हैं. इनका क्या और कब इस्तेमाल किया जाएगा, किसी को पता नहीं.
बड़ी चिंता एप के माध्यम से कर्जदार की पहचान की चोरी है. कर्जदार के आधार नंबर, पैन कार्ड, बैंक खाते समेत सारी जानकारी एप चला रही कंपनी के पास होती है. इतनी सारी जानकारी के साथ ये कंपनियां कर्जदार के नाम पर किसी भी बैंक या एनबीएफसी से कर्ज ले सकती हैं. मिनटों में फर्जी कंपनियां खड़ी कर सकती हैं, जिनकी आड़ में धोखाधड़ी किए जाने का अंदेशा बना हुआ है. एेसा हुआ, तो कुछ हजार या लाख रुपए के लिए इन कंपनियों के जाल में फंसे कर्जदार को एेसे अपराधों की सजा मिलेगी, जो वास्तव में उसने किए ही नहीं हैं. ज्यादातर एप में दर्ज सूचनाएं विदेशी सर्वर में है, जिन तक हमारी पुलिस की पहुंच ही नहीं है. अगर इसमें डार्कनेट का इस्तेमाल कर रहे अपराधी हुए, तो असली चेहरे तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाएगा. तेलंगाना पुलिस की अब तक की जांच में धड़ाधड़ कर्ज बांट रही इन कंपनियों के असल मकसद का पता नहीं चला है.
30 से 40 फ़ीसदी तक ब्याज लेने वाली इन कंपनियों को नियंत्रित करने के लिए देश में अभी तक कोई पुख्ता कानून ही नहीं है. भारतीय रिजर्व बैंक ने इन ऐप के बारे में लोगों को आगाह करके छुट्टी पा ली है. हजारों करोड़ रुपए के लेन-देन वाले इस अवैध कारोबार को लेकर सरकारी जांच एजेंसियों भी गंभीर नहीं दिखतीं. इन डिजिटल लोन एप कंपनियों के शिकंजे में फंसे लोगों का सवाल भी यही है कि अगर सरकार आंतरिक सुरक्षा का खतरा बताकर पब्जी जैसे एप को प्रतिबंधित कर सकती है, तो इससे कहीं ज्यादा खतरनाक लोन एप पर क्यों चुप्पी साधी जा रही है. गूगल प्ले स्टोर से लेकर सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर धड़ल्ले से इन एप का प्रचार चल रहा है. कोरोना से पस्त अर्थव्यवस्था में समाज का एक तबका गंभीर आर्थिक संकट में है. उसके पास छोटे-मोटे खर्चों को पूरा करने के लिए भी पैसों की कमी है. यही मुश्किल लोगों को मोबाइल ऐप से कर्ज लेने पर मजबूर कर रही है. एक बार इनके जाल में फंसने के बाद वह कभी नहीं निकल पाता. जीएसटी और प्रोसेसिंग के नाम पर कर्ज की लगभग 35 फ़ीसदी रकम एप कंपनी तुरंत काट लेती है.
सरकार को टैक्स के रूप में इसका एक धेला नहीं मिलता. आज जरूरत इस बात की है कि सरकार इन अवैध डिजिटल साहूकारों के खिलाफ त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करे, ताकि इनकी जाल में फंसे हजारों लोगों को राहत मिले. हजारों लोग मूल राशि से कई गुना ज्यादा पैसा पटाने के बावजूद न केवल कर्जदार बने हुए हैं बल्कि रोज एप कंपनियों के एजेंटों से धमकियां सुन रहे हैं.
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