जीडीपी तक पहुंची पॉल्युशन की मार

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पॉल्युशन से होने वाली बीमारियां जेब काट कर ले रही जान, 2019 में गई 17 लाख की मौत, सरकारी निवेश से जीवन रक्षा का है समाधान
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संजय स्वदेश

देश में कोरोना के प्रकोप से लगे लॉकडाउन में एयर पॉल्युशन का लेवल इतना कम कर दिया कि हर ओर ऐसे ही एनवायरमेंट बनाये रखने की बातें होने लगी. अब अनलॉक्ड में पॉल्युशन के हालात फिर से लॉकडाउन के पहले जैसे होने लगे हैं. फिजाओं में पॉल्युशन का जहर फेंकडें को कमजोर कर रहा है. कोरोना के लड़ने वाले हमारे इम्युनिटी पॉवर के लिए ब्रेकर बन इसे कमजोर कर रहा है. इसी बीच यह नई रिपोर्ट है कि लगभग 1.7 मिलियन यानी 17 लाख लोगों की जान प्रदूषण के कारण गई है. औसतन हर महीने 1 लाख 41 हजार से ज्यादा लोग अकाल काल के गाल में समा गये जिसका कारण एयर पाल्युशन से उपजी बीमारियां थीं.
आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने जो रिपोर्ट दी है वह निश्चय ही भयावह है. 2019 में देश में होने वाली सभी मौतों में 17.8 % यानी हर सौ मौतों में से 17 या 18 लोग की मौत का कारण यह पॉल्युशन ही बना.आईसीएमआर ने इस पर चिंता जताते हुए देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पाल्युशन कंट्रोल में सहयोगात्मक प्रयास की अपेक्षा की है. लेकिन ये संस्थाएं कितनी सीरियस हैं, इसके लिए उनके पहले की अपनी रिपोर्ट उन्हें स्वयं जारी करनी चाहिए जिससे दूसरे भी प्रेरित हों. रिपोर्ट में यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि पॉल्युशन से पब्लिक केवल बीमार ही नहीं हो रही है, बल्कि पॉल्युशन के प्रकोप का इंफेक्शन इकोनॉमी पर भी लग गया है. पॉल्युशन के कारण होने वाली बीमारी से जो नुकसान हो रहा है, वह जीडीपी का 1.4 % है.
एयर पॉल्युशन के कारण समय से पहले होने वाली मौतों और बीमारी के कारण जो आर्थिक नुकसान हो रहा है वह इस डेटा से समझिए दिल्ली में जो नुकसान हो रहा है वह जीडीपी का प्रतिशत 1.08% था. जीडीपी को सबसे अधिक नुकसान लगभग 2.6% उत्तर प्रदेश द्वारा दर्ज किया गया, इसके बाद बिहार में 1.9% है. यह अच्छी बात है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में पॉल्युशन से होने वाली बीमारियों से आर्थिक नुकसान में कमी आई और यह फिलहाल 1.7% पर है. अध्ययन से पता चलता है कि एयर पॉल्युशन के कारण 40 % रोग का बोझ फेफड़ों के रोगों से है, शेष 60 % इस्केमिक हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और जन्म से पूर्व नवजात मृत्यु से है. एक और आंकड़ा जो गौर करने लायक है, एयर पॉल्युशन से होने वाली मौतों का औसत आंकड़ा यह है कि 1990 से 2019 के बीच प्रति 1,00,000 जनसंख्या में मृत्यु दर में 64 % की कमी आई है, इस अवधि के दौरान बाहरी वायु प्रदूषण से मृत्यु दर 115 % बढ़ी है. स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान की यह दर पहले के अनुमान से अधिक हैं.
आईसीएमआर की यह रिपोर्ट निश्चयह ही भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी जैसी है. इस रिपोर्ट की गुणवत्ता को इसलिए भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रिसर्च अकेले में किसी हवा हवाई बातों की आधार पर तैयार नहीं किया गया है. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए जो आईसीएमआर की रिसर्च टीम थी उसमें पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन और ऐसे ही अन्य करीब संस्थानों के 300 से अधिक शोधकर्ता शामिल रहे हैं. हालांकि ऐसी रिसर्च रिपोर्ट पहले भी तैयार होती रही हैं और उसका डेटा हर राज्य के पॉलिसी बनाने वाले जिम्मेदार अफसरों को सचिवालय में उपलब्ध कराया जाता रहा है. लेकिन मौत के आंकड़ें इस बात की गवाही देते हैं कि इन रिपोर्टों के कोई मायने नहीं हैं. यदि इस पर जिम्मेदार पॉलिसी मेकर्स की ओर से सीरियसनेस दिखाई गई होती तो निश्चय ही सेहत और आर्थिक नुकसान के बढ़ने का ग्राफ उपर नहीं जाता. स्टडी दल के मेहनत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने निष्कर्ष में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में उच्च प्रदूषण वाले राज्यों में वायु प्रदूषण के कारण प्रति व्यक्ति आर्थिक नुकसान तक का अनुमान लगाया है.
ऐसी बात नहीं है कि राज्य और केंद्र की सरकारों ने एयर पाल्युशन के कंट्रोल के लिए कई पहल किये हैं. लेकिन जो देश के कम विकसित राज्यों में इसका प्रभाव ज्यादा हैं. इन राज्यों की प्राथमिकता में वहां के दूसरी समस्याओं की लंबी लिस्ट हैं, जिसमें एनवायरमेंट की प्राथमिकता उपेक्षित है. इसको समझने के लिए केंद्र सरकार के बजट में इस समस्या के आवंटन राशि का का हिसाब किताब समझिए. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के लिए बजटीय आवंटन में पिछले वित्त वर्ष से 2020-21 के लिए लगभग पांच प्रतिशत की वृद्धि तो की, लेकिन प्रदूषण उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन कार्य योजना को आवंटित राशि में कोई बदलाव नहीं किया गया. पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण के नाम पर 3100 करोड़ रुपये आवंटित किए, जिसमें से 460 करोड़ रुपये प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आवंटित किए गए, जो पिछले 2019-21 के बजट में प्राप्त धन के बराबर ही है.
सवाल यह कि एक अवधि तक लॉकडाउन पीरियड में जो शानदार एनवायरमेंट देखा गया था, अनलॉक्ड के दौरान एयर पॉल्युशन का जहर फिर तेजी से घुममिल गया है, उसका समाधान क्या है. सरकार चाहे केंद्र की हो या किसी राज्य की उन्हें यह समझना चाहिए कि एनवायरमेंट को बेहतर रखना हर किसी की जिंदगी से जुड़ा मसला है. इसको अहसास व्यक्ति विशेष को तब होता है जब उसकी जीवन लीला खत्म पाल्युशन के कारण खत्म हो हो रही होती है. अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य और समुचित आर्थिक विकास हर राज्य की प्राथमिक दायित्वों में से है. इसे पॉलिसी मेकर्स को गंभीरता से समझना चाहिए कि कि बेहर एनवायरमेंट के लिए किया गया खर्च फ्युचर के बेहतर जनजीवन के लिए एक इनवेस्टमेंट की तरह से है, जिसका रिटर्न भविष्य में पब्लिक की बेहतर सेहत और उससे होने वाले आर्थिक नुकसान से होने वाली बजट के कारण जीडीपी में मजबूती के रूप में दिखेगा.






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