क्या भाजपा में भूमिहार पर भारी पड़ने लगे हैं यादव ?
वीरेंद्र यादव
बिहार विधान सभा चुनाव की तैयारी के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा में यादव भूमिहार पर भारी पड़ रहे हैं। क्या भाजपा में भूमिहार की तुलना में यादवों को प्राथमिकता दी जा रही है। पिछले विधान सभा चुनाव के आंकड़े यही बताते हैं कि भाजपा में यादवों को प्राथमिकता दी जा रही है। हालांकि भूमिहार की अनदेखी जैसी कोई बात नहीं रही है।
पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने 21 यादव और 20 भूमिहार को टिकट दिया था। इसमें 6 यादव और 9 भूमिहार जीतने में सफल रहे थे। चुनाव में भूमिहार की तुलना में यादवों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। इसकी वजह थी भाजपा की ‘यादव पॉलिसी’। भाजपा ने यादव उम्मीदवारों का इस्तेमाल आक्रमण के लिए नहीं, बल्कि बचाव के किया था। इसी बचाव की कोशिश का खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा था। भाजपा के 21 यादव उम्मीदवार में से 11 के खिलाफ महागठबंधन के यादव उम्मीदवार थे। यादव बनाम यादव की लड़ाई में भाजपा सिर्फ बख्तिायारपुर और दानापुर जीत पायी, बाकी नौ सीट हार गयी। इसके विपरीत भाजपा के 10 यादव उम्मीदवार के खिलाफ महागठबंधन के गैरयादव उम्मीदवार थे। इन में से भाजपा 4 सीट जीतने में कामयाब रही थी। इसका आशय यह है कि राजद खेमे के गैरयादव के खिलाफ भाजपा यादव उम्मीदवार देती है, तो परिणाम बेहतर हो सकता था। दरअसल भाजपा के यादव उम्मीदवार को उन सीटों पर यादवों का ज्यादा वोट मिलता है, जिन सीटों पर राजद खेमा के गैरयादव होते हैं।
आंकड़ों के आधार पर डिहरी विधान सभा क्षेत्र का उपचुनाव को देखा जा सकता है। पिछले साल लोकसभा के साथ ही डिहरी विधान सभा का उपचुनाव हुआ था। लोकसभा में जदयू के उम्मीदवार महाबली सिंह थे और विधान सभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सत्यनारायण सिंह यादव थे। इस चुनाव में डिहरी विधान सभा क्षेत्र में महाबली सिंह को 64942 वोट मिले थे, जबकि सत्यनारायण यादव को उपचुनाव में 72097 वोट मिले थे। यानी महाबली सिंह से 7 हजार से अधिक वोट सत्यानारायण यादव को मिला था। इसी क्षेत्र से लोकसभा में उपेंद्र कुशवाहा को 45969 वोट मिले थे, जबकि उपचुनाव में राजद के फिरोज हुसैन को 38104 वोट मिले थे। मतलब उपेंद्र कुशवाहा से लगभग 7 हजार कम वोट फिरोज हुसैन को मिले।
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दरअसल डिहरी में महाबली सिंह से सत्यनारायण यादव को 7 हजार अधिक वोट मिले। यही 7 हजार वोट है, जो सत्यनारायण यादव की जातीय ताकत है। यादव वोटरों का 7 हजार वोट राजद के बजाये भाजपा के यादव उम्मीदवार को मिला। अगर डिहरी में फिरोज के बजाय राजद का कोई यादव उम्मीदवार होता हो तो भाजपा की जीत की मार्जिन कम हो सकती थी।
यादव वोटरों के लिए भाजपा का यादव उम्मीदवार अछूत नहीं है, लेकिन राजद का गैरयादव उम्मीदवार होता है, तो भाजपा उम्मीदवार की स्वीकार्यता बढ़ जाती है। डिहरी इसी बात का प्रमाण है। भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि टिकट वितरण में यादव उम्मीदवार मुड़ी गिनने के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए दें। पिछले चुनाव में भाजपा ने जिस तरह से यादवों को टिकट दिया था, उससे भूमिहार खेमे में बेचैनी जरूर बढ़ गयी होगी। पार्टी में सत्ता और संगठन के स्तर पर भाजपा को चुनौती देने वाली कोई जाति नहीं है। यदि पार्टी में यादवों का दखल बढ़ा तो भूमिहारों को परेशानी हो सकती है। हालांकि फिलहाल भूमिहारों को यादवों से कोई संकट नहीं है। वजह है कि अभी भाजपा में जो यादव सत्ता और संगठन में बैठे हैं, उन्हें यादव होने का गर्व नहीं है, बल्कि वे भूमिहार जैसा देखने में ही आह्लादित हैं।
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