जिनके लिए नफ़रत और हिंसा रोजी-रोटी का मसअला है
जिनके लिए नफ़रत और हिंसा रोजी-रोटी का मसअला है
Vineet Kumar के फेसबुक टाइमललाइन से साभार
अभी जो जेएनयू के नाम पर अपनी टाइमलाइन पर लगातार जहर फैलाने का काम कर रहे हैं, ऐसे दर्जनों लोगों को मैं पर्सनली जानता हूं. मैंने उन्हें अपनी आंखों के सामने जेएनयू के उन्हीं वामपंथी-लिबरल प्रोफेसरों के आगे चिरौरी और जी-हुजूरी करते देखा है जिन्हें अब वो खत्म कर देने/मिटा देने की कोशिश में लगे हैं.
मैंने देखा है कि कैसे वो सी ग्रेड किताबें, कुंजी/दुग्गी टाइप की चीज लेकर उनके आगे-पीछे करते और उस पर किसी न किसी तरह पक्ष में लिखवाकर ही दम लेते. दुर्भाग्य से प्रो. नामवर सिंह ऐसे लोगों की चपेट में ज्यादा आए. लोगों ने उनके बुजुर्ग होने और इधर-उधर के संबंध होने का लाभ उठाया.
मैंने अपनी आंखों से देखा है कि ऐसे ही वामपंथी-लिबरल प्रोफेसरों के साथ रिसर्चर करने के लिए ये लोग एड़ी-चोटी एक कर देते और कईयों ने किया भी है. मुझे नहीं पता कि अपने ऐसे छात्रों की नफरत और हिंसा से भरी पोस्ट पढ़कर प्रोफेसर अफसोस करते हैं नहीं ?
वो कल तक वामपंथी-लिबरल लेखकों से अपनी किताब के लिए इसलिए लिखवाना चाहते थे कि इससे लेखन की दुनिया में थोड़ी-बहुत जान-पहचान बन पाती. वो लेफ्ट-लिबरल माने जानेवाले प्रोफेसर के साथ इसलिए रिसर्च करना चाहते कि उनके नाम की टैग से उनके करिअर में संभावना बनती. अब वो संभावना कम हो गयी है.
ये सब करते हुए भी बतौर एक लेखक-शिक्षक अपनी पहचान नहीं बना पाए. ऐसे कुंठा के शिकार लोगों को मैंने अपनी आंखों के सामने देखा है. ये इस मोर्चे पर हारे हुए लोग रहे हैं.
अब उन्होंने सोच के स्तर पर नफरत और हिंसा फैलाने के काम को बतौर रोजगार के तौर पर चुन लिया है. इनकी रोजी-रोटी लोगों के बीच डर, आतंक और आशंका पैदा करने से जुड़ी है. ये प्रेम,ज्ञान,सौन्दर्य और संघर्ष की तरफ नहीं जा सकते. वो पहले सबकुछ चमचई करके हासिल करना चाहते रहे और अब खौफ पैदा करके.
इनसे आप पलटकर पूछिए कि जब वामपंथी-लिबरल लेखक-प्रोफेसर देश के खिलाफ सोच रखते हैं तो फिर आप उनसे क्यों जुड़ना चाहते थे, सर्टिफाय होने की हसरत बनी रही ? उनके पास जवाब नहीं होगा. ऐसा इसलिए कि उन्हें कभी ईमानदार और पेशेवर जीवन जीने में यकीं रहा ही नहीं. वो प्रोफेसर की गलती पर सवाल उठाने का कभी साहस ही नहीं रखते.
आज वो भले ही वो एक खास संगठन और विचारधारा के प्रति समर्पित दिख रहे हों लेकिन जो अपनी जिंदगी से धोखा करते आए हों, उनकी डिक्शनरी में समर्पण शब्द कहां होगा भला ? ऐसे लोग हर सुंदर, उम्मीद और संभावना के खिलाफ होते हैं. ऐसे लोग की दुश्मनी अच्छाई से है.
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