छोटा बच्चा जान के हमको मत समझाना रे…
संजीव चंदन
यह एक खूबसूरत तस्वीर है-फ्रेम में कैद यह भाव मात्र नहीं है परिघटना है।
तेजस्वी एकमात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने ‘सवर्ण आरक्षण’ को सीधे-सीधे, बिना ईफ़-नो-बट के खारिज किया है। हां सवर्ण आरक्षण को ही-आर्थिक आरक्षण को नहीं, जैसा कहने की जिद्द कुछ लोग कर रहे हैं, जबकि यह सही मायने में सवर्ण आरक्षण है, आर्थिक होता तो इससे एससी, एसटी और ओबीसी बाहर नहीं होते। हलांकि कभी उनकी पार्टी ने वर्तमान आरक्षण से अलग सवर्ण गरीबों के लिए आरक्षण की मांग रखी थी लेकिन तेजस्वी की पार्टी ने अपने पुराने स्टैंड को छोड़ दिया है।
इस तस्वीर को इसी पृष्ठभूमि में देखना चाहिए। यह बहुजन-बयार बहाने की कोशिश का हिस्सा है। तेजस्वी इस बार उसी वोट बैंक को ठोस करने की राजनीति कर रहे हैं-जो कि उत्तरप्रदेश में एक हद तक आकार ले चुकी है। बहन जी और उनकी पार्टी बसपा का बिहार में भी जनाधार है। महागठबंधन में यादव-मुसलमान-मांझी-कुशवाहा और चमार-मल्लाह जाति के बेस वोट बैंक पर अति पिछड़ा और अन्य बहुजन जातियों का समर्थन मिल जाये तो क्या लगता है आपको भाजपा इस नुकसान को किसी भी कवायद से पूरी कर सकती है?
लखनऊ की यात्रा पर छोटा बच्चा नहीं गया है, हालांकि उम्र में खुद को सबसे छोटा कहकर तेजस्वी विनम्र राजनीति की एक मिसाल पेश कर रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल का नेता सिर्फ किसी दूसरे राजनीतिक दल के लिए ऐसी कवायद नहीं करता है-जैसा कि मीडिया में खबर है कि वे कांग्रेस के लिए मायावती-अखिलेश यादव को मनाने गये हैं। ऐसा होता है तो भी तेजस्वी और खासकर लालू जी के राजनीतिक/वैयक्तिक भविष्य के लिए अच्छा है। लेकिन पहली प्राथमकिता तो तेजस्वी की या राजद की खुद की पार्टी को मजबूत बनाने की ही होगी न-ज्यादा सीटें जीतने की। लखनऊ यात्रा के तीर में निशाने कई हो सकते हैं-छोटा बच्चा जान के हमको मत समझना रे।
(संजीव चंदन के फेसबुक टाइम लाइन से साभार )
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